टीएनपी डेस्क(TNP DESK):भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सावन में भक्ति न जाने कितने तारीकों से उनकी पूजा-पाठ करते हैं, और कई जतन करते हैं कि भगवान की कृपा उनके ऊपर बनी रहे. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं जिसको जानकर आप बहुत सारी परेशानियों से अपने आप को भगवान के क्रोध से बचा सकते हैं.
भूलकर भी ना चढ़ायें भोले बाबा पर ये चीजें
आपको बताये कि भगवान शिव को चीजें अतिप्रिय है, तो वहीं कई चीजों से उन्हें नफरत है. जिसको चढ़ाने से आप पर उसका उल्टा प्रभाव पड़ता है, और भगवान शिव आपसे नाराज हो जाते हैं, तो आज हम बात करेंगे कुछ ऐसी चीजों के जिसको आपको भगवान शिव के ऊपर कभी नहीं चढ़ाना चाहिए. वरना आप भगवान शिव के क्रोध के प्रकोप से नहीं बच पाएंगे.
इस वजह से केतकी का फूल शंकर भगवान को नहीं है पसंद
इसमें सबसे पहले नंबर पर केतकी का फूल आता है. केतकी का फूल देखने में बहुत ही सुंदर होता है. वो सफेद और पीले का बहुत अच्छा कॉन्बिनेशन है. लेकिन केतकी का फूल कभी भी भगवान शिव पर नहीं चढ़ाया जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव और और ब्रह्मा जी के बीच श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई, कि आखिर श्रेष्ठ कौन है
तभी एक भयावह शिवलिंग प्रकट हुआ, और शर्त रखी गई की जो इस शिवलिंग की छोर को सबसे पहले जो छूएगा, वो श्रेष्ठ कहलायेगा. दोनों ने शर्त को मानकर शिवलिंग के छोर को ढूढ़ना शुरु किया, लेकिन भगवान शिव और ब्रह्मा दोनों को शिवलिंग का छोर नहीं को खोज पाये और लौट आये. लेकन इसके बाद ब्रह्मा जी ने भी वापस आकर भोलेनाथ से झूठ बोल दिया कि उन्होने छोर छू लिया है. इस बात की पुष्टि के लिए उन्होंने केतकी की फूल को गवाह बना था. भगवान शिव के सामने केतकी के फूल ने झूठी गवाही दी थी. इसको लेकर भोलेनाथ ने उसे श्राप दे दिया कि तुझे कभी मेरा स्पर्श का सौभाग्य नहीं मिलेगा. इसी वजह से केतकी का फूल चढ़ाने से भगवान शिव नाराज होते हैं.
शंख से भोलेनाथ को नहीं होता है जलार्पण
हिंदू रीति-रिवाज में देवी देवताओं की पूजा के समय बहुत सारे नियम धर्म होते हैं. जिसमें शंख बजाना भी शामिल होता है. एक तरफ जहां शंख श्री हरि विष्णु को अतिप्रिय है, तो वहीं भगवान शंकर शंख बजाने से रुष्ट हो जाते हैं. इसके पीछे बहुत पुरानी एक कथा प्रचलित है, जिसका प्रमाण शिव पुराण में मिलता है.
शिव पुराण की कथा की माने तो दैत्यराज दंभ निसंतान था. उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की. जिससे खुश होकर भगवान विष्णु ने उनसे वर मांगने को कहा, तब दैत्यराज दंभ में वरदान में महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा. भगवान विष्णु ने उसे ये आशीर्वाद दे दिया. जिसके बाद दैत्यराज दंभ के घर एक पुत्र जन्म हुआ. जिसका नाम शंखचुड़ रखा गया.
बड़ा होकर शंखचुड़ ने पुष्कर में ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए खूब तपस्या की. जिससे खुश होकर ब्रह्मा देव ने उन्हें देवताओं पर अजेय होने का वर दिया. इसके साथ ही ब्रह्मा जी ने शंखचुड़ को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी. जिसके बादतुलसी और शंखचूड़ का विवाह संपन्न हुआ. लेकिन ये सब प्राप्त होने के बाद शंखचुड़ ने तीनों लोकों में अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया. शंखचूड़ से परेसान होकर सभी देवी देवताओं ने विष्णु जी के पास जाकर मदद मांगी. लेकिन भगवान विष्णु ने खुद ब्रह्मपुत्र का वरदान दिया था. तो वो कुछ भी मदद नहीं कर पायें.
जिसकी वजह से उन सभी देवी देवता भगवान भोले शंकर के शरण में पहुंचे. लेकिन शिवजी भी श्री कृष्णकवच और तुलसी के पतिव्रता धर्म की वजह से शंखचुड़ का वध में सफल नहीं हो पा रहे थे. जिसके बाद विष्णु जी ने ब्रह्म रूप धारण कर शंखचुड़ से श्रीकृष्ण कवच दान में मांग लिया. इसके बाद भगवान ने अपने त्रिशूल से शंखचुड़ का वध किया. ऐसी मान्यता है कि उसकी हड्डियों से शंकर का जन्म हुआ, और वो विष्णु जी का प्रिय भक्त था. यही वजह है कि भगवान विष्णु को शंकर से जल चढ़ाना शुभ माना जाता है. जबकि भगवान शंकर ने उसका वध किया था. जिसकी वजह से उनकी पूजा में शंकर का प्रयोग वर्जित है.
भगवान भोलेनाथ पर नहीं चढ़ता तुलसी का पत्ता
इसके साथ ही भगवान भोलेनाथ पर तुलसी का पत्ता नहीं चढ़ाया जाता है. वैसे तो तुलसी के पत्ता को बहुत ही पवित्र माना जाता है, और हर पूजा-पाठ में इसके पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन भगवान शंकर की पूजा में तुलसी पत्ता का प्रयोग नहीं किया जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. जिसके अनुसार जलंधर नाम का एक राक्षस था. जिसकी पत्नी का नाम वृंदा था. एक तरफ जलंधर जहां उपद्रवी था, तो वहीं दूसरी तरफ उसकी पत्नी बहुत ही धार्मिक थी. और पतिव्रता थी. उसकी पत्नी की पतिव्रता की वजह से भगवान शंकर उसका वध नहीं कर पा रहे थे. तब भगवान शंकर ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वो जलंधर का रूप धरकर वृंदा के पास जाएं, और उसका पतिव्रता धर्म नष्ट कर दें. तब भगवान विष्णु ने ऐसा ही किया. जब वृद्धा को ये बात पता चली कि ये उसके पति नहीं बल्कि भगवान विष्णु ,थे तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया, और भगवान शंकर को कहा कि मेरे पत्ते को कभी भी भगवान शंकर के ऊपर नहीं चढ़ाया जायेगा, वरना इसका उल्टा परिणाम होगा. इसकी वजह से भगवान विष्णु भगवान शंकर को कभी भी तुलसी का पत्ता नहीं चढ़ाया जाता है.
भोले बाबा को कुमकुम या सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता है
आपको बताएं कि भगवान शिव पर कभी भी कुमकुम या सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता है. भगवान भोले को वैरागी माना जाता है. जो अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं. वो विंध्वंसक के रुप में पूजे जाते हैं. और सिंदूर स्त्रियों की सुहाग का प्रतीक होता है.. भगवान शिव को सांसारिक सुखों से कोई से जुड़ी चीजों से कोई लगाव नहीं है. भगवान शिव एक तपस्वी भी है, जो सांसारिक सुख से दूर कैलाश में निवास करते हैं. यही वजह है कि भगवान शंकर के ऊपर कभी भी कुमकुम या सिंदूर नहीं चढ़ाना चाहिए.
भगवान शंकर को हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए
भगवान शिव एक तपस्वी है, जो सांसारिक सुखों से दूर रहते हैं. इसी वजह से उनके ऊपर कोई भी सौंदर्य की सामग्री ना चढ़ने की सलाह दी जाती है. भगवान शंकर पर कभी भी हल्दी नहीं चढ़ाया जाता है. हल्दी सौंदर्य का प्रतीक होता है, और ये कुमकुम से मिलकर बना होता है. इसकी वजह से भगवान शंकर पर हल्दी नहीं चढ़ाया जाता है.