टीएनपी डेस्क(TNP DESK):29 जून गुरुवार के दिन देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. आषाढ़ मास में मनाई जानेवाली एकादशी को आषाढ़ एकादशी के भी कहा जाता है. एकादशी दो शब्दों से मिलकर बना है. जिसमे देव का मतलब भगवान भगवान विष्णु और शयनी का मतलब निद्रा या आराम से है. यानी सृष्टी के संचालक भगवान बिष्णु चार महीने के लिए भगवान शिव को सृष्टि की जिम्मेदारी सौंपकर निद्रा अवस्था में चले जाते हैं. इस चार महीने की अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता हैं.
29 जून को रखा जाएगा देवशयनी एकादशी का व्रत
साल 2023 में 29 जून को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जायेगा. एकादशी तिथि की शुरुआत 29 जून को सुबह 3 बजकर 18 मिनट पर होगा. तो वहीं इसका समापन 30 जून को रात के 2 बजकर 42 मिनट पर होगा. वहीं इसका पारण 30 जून को 1 बजकर 48 मिनट से शाम 4 बजकर 36 मिनट तक किया जा सकता है.
इस विधि से पूजाकर करें भगवान बिष्णु को खुश
देवशयनी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके पीले वस्त्र पहनना चाहिए. और भगवान विष्णु का ध्यान धरते हुए पूजा-अर्चना कर जलाभिषेक कराना चाहिए. पूजा के दौरान भगवान बिष्णु का नए वस्त्र और आभूषणों से श्रृंगार करना चाहिए. इसके बाद चंदन और नैवेद्य अर्पित करके अक्षत, फूल और फल चढ़ाना चाहिए. इसके बाद भोग लगाकर विष्णु स्तुती का पाठ करना चाहिए. पूजा और व्रत से श्रीहरि विष्णु की कृपा मिलती है.
देवशयनी एकादशी के दिन ना करें ये चीजें
पूजा-पाठ के साथ देवशयनी एकादशी के दिन व्रतधारियों को बहुत सारे नियमों को पालना करना जरुरी होता है. इसमे झूठ बोलना, मांस-मछली का सेवन करना, पलंग पर सोना, संभोग करना, शहद खाना और दूसरे की दी हुई दही-भात खाना, भोजन करना, बैंगन और मूली का त्याग करना चाहिए.
भगवान बिष्णु चार महीने के लिए निद्रा अवस्था में चले जाते हैं
वहीं हिंदू शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी या देव सोनी एकादशी के शुरुआत से चार महीने के लिए 16 संस्कारों नहीं किये जाते है. भगवान बिष्णु को सृष्टी का मालिक कहा जाता है. जब वो निद्रा अवस्था में होते हैं तो उनकी गैर मौजूदगी में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है. जिसमे शादी विवाह और गृह प्रवेश आदि पर रोक लगा दी जाती है. वहीं पूजा-पाठ अनुष्ठान, वाहन और आभूषण खरीदा जाता है.