टीएनपी डेस्क : सावन के इस पवित्र महीने में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करना शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि जो भी भक्त इस महीने में भगवान शिव की आराधना करते हैं उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं जो देश के कोने कोने में स्थापित है. सभी ज्योतिर्लिंगों के अपने अपने महत्व और मान्यताएं हैं. इससे पहले वाले आर्टिकल में हमने आपको पहले ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया था और आज हम बताएंगें आपको दूसरे ज्योतिर्लिंग यानी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के महत्व और उसकी उत्पत्ति के बारे में. पहले ज्योतिर्लिंग के बारे में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का अर्थ
मल्लिकार्जुन में मल्लिका का अर्थ माता पार्वती और अर्जुन का अर्थ भगवान शिव है. भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ही मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में विराजमान हैं. यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में पवित्र शैल पर्वत पर स्थापित है.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति
भगवान शिव, माता पार्वती और उनके दोनों पुत्र भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय से जुड़ी है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय के बीच सबसे पहले विवाह करने के लिए बहस हो गई थी. इस बहस को रोकने के लिए भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों की एक परीक्षा ली और कहा जो भी पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा कर पहले वापस आएगा उसका विवाह पहले होगा. भगवान शिव की बात सुनकर भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठ कर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल गए. लेकिन स्थूल शरीर और वाहन में मूषक होने के कारण भगवान गणेश सोच में पड़ गए और बुद्धि के देवता ने कैलाश पर्वत पर आसान में बैठे भगवान शिव और माता पार्वती को ही पूरा संसार बताते हुए दोनों की सात परिक्रमा कर ली. भगवान गणेश की इस सूझ बुझ को देख कर भगवान शिव और माता पार्वती दोनों प्रसन्न हो गए और भगवान गणेश का विवाह पहले करवा दिया. लेकिन जब भगवान कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगा कर वापस लौटे तो भगवान शिव के निर्णय से क्रोधित होकर कैलाश पर्वत छोड़कर क्रौंच पर्वत पर चले गए.
इस वजह से लिया भगवान शिव ने ज्योति का रूप
सभी देवी देवता क्रौंच पर्वत पर पहुंचकर क्रोधित भगवान कार्तिकेय को वापस कैलाश पर्वत लौटने के लिए मनाने लगे. लेकिन भगवान कार्तिकेय नहीं लौटे. वहीं, जब भगवान शिव और माता पार्वती भगवान कार्तिकेय को मनाने के लिए क्रौंच पर्वत पर गए तो माता पिता के आने की खबर सुन कर भगवान कार्तिकेय वहां से और दूर चले गए. अंत में पुत्र के दर्शन के लिए भगवान शिव को ज्योति का रूप धरण करना पड़ा और इस ज्योति में माता पार्वती भी विराजित हो गई. तब से यह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व
पुराणों में कहा गया है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. क्योंकि, इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ही विराजित हैं. ऐसे में भक्तों को एक साथ शिव और शक्ति दोनों के ही दर्शन हो जाते हैं. इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन व पूजा करने से भक्त को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है और उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और वह पाप मुक्त कर हो जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से व्यक्ति को सुख समृद्धि के साथ साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.