टीएनपी डेस्क(TNP DESK): आज 6 फरवरी है, इस दिन को पुरी दुनिया में International Day of Zero Tolerance for Female Genital Mutilation के नाम से मनाया जाता है. इसका उद्देश्य महिला खतना की कुप्रथा को पर विराम लगाना है. दुनिया की आधी आबादी को इस पीड़ा से मुक्ति दिलवानी है. इस दिन को शुन्य सहनशीलता दिवस के रुप में मनाने की शुरुआत वर्ष 2003 में हुई थी. तब से प्रतिवर्ष महिलाओँ के जननांग विकृति के खिलाफ इस दिन पर विशेष आयोजन किये जाते हैं. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी आज भी दुनिया के कई देशों में यह कुप्रथा आज भी जारी है. इस आधुनिक युग में भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं को इस अमानुषिक परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा है.
प्रतिवर्ष 20 करोड़ महिलाओं को इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के 92 देशों में यह कुप्रथा जारी है. हर वर्ष करीबन 20 करोड़ महिलाओं को इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है. आधुनिकता के तमाम दावों के बावजूद आज भी समाज पर पुरुषवादी नजरिया हावी है और आज भी महिलाएं इस विभित्सिका को झेलने को अभिशप्त हैं. लेकिन, इसके साथ ही पूरी दुनिया में इस क्रुरता के खिलाफ अभियान जारी है, हालांकि 2030 से पहले तक इस कुप्रथा को खत्म करने की वचनबद्धता दुहराई गयी है.
वजाइना में चीरा लगाकर किया जाता है महिलाओं का खतना
दरअसल महिला खतना में छोटी-छोटी बच्चियों का प्राईवेट पार्ट(वजाइना) के एक हिस्से पर चीरा चलाकर खतना किया जाता है. इस दौरान उन्हे असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है, काफी रक्तस्राव भी होता है. पहले के जमाने में तो इस रक्तस्राव को रोकने के लिए गर्म राख लगा दिया जाता था, लेकिन आज कल कई तरह की दवाओं का प्रयोग किया जाता है. कई बार तो बच्चियों के दोनों पैरों को बांधकर एक सप्ताह से उपर तक रखा जाता है. इस दौरान कइयों की मौत हो जाती है. इस कुप्रथा का प्रचलन भारत में भी है. भारत में बोहरा समुदाय की छोटी-छोटी बच्चियों की इस त्रासदी से गुजरना पड़ता है.
महिला खतना “काम की भावना” को नियंत्रित करने की अमानवीय प्रथा
माना जाता है कि महिलाओं को खतना करवाने से उनके अन्दर की सेक्शुअल डिजायर (काम की भावना) काफी नियंत्रित हो जाती है, इस प्रकार समाज में सामाजिक विकृति नहीं फैलती, लेकिन सामाजिक विकृति रोकने के नाम पर हम उससे भी बूरा सामाजिक विकृति को सामाजिक स्वीकृति प्रदान कर देते हैं.
भारत में बोहरा समुदाय में है यह कुप्रथा
वैसे यहां यह भी बता दें कि जिस बोहरा समुदाय में यह कुप्रथा प्रचलित है, वह बोहरा समुदाय भारत के मूलवासी नहीं है. बोहरा समुदाय भारत में यमन से आया है, और यह मूल रुप से यमन की संस्कृति है, एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बोहरा समुदाय के बीच सात वर्ष की उम्र तक करीबन 75 फीसदी बच्चियों का खतना कर दिया जाता है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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