टीएनपी डेस्क(TNP DESK): राजनीति भी अजीब चीज है, यहां कोई स्थायी दोस्त और चिरस्थायी दुश्मन नहीं होता, सिर्फ समय की बात होती है, राजनीतिक जरुरत और वक्त के तकाजे के अनुसार कल तक के घोर विरोधी भी एक दूसरे को गले लगाने से परहेज नहीं करते. कुछ यही कहानी है आज त्रिपुरा की. करीबन 35 वर्ष तक त्रिपुरा में कांग्रेस और वामपंथियों की जंग चलती रही, कांग्रेस की ओर से सत्तारुढ़ सीपीआई-एम पर तानाशाह और अलोकतांत्रिक होने का आरोप लगाया जाता है, वहीं सीपीआई-एम की ओर से कांग्रेस को बुर्जुआ पार्टी बताया जाता रहा है, लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आंधी में सीपीआई-एम का 35 वर्षों का शासन एक झटके में ही उखड़ गया, तब यही सीपीआई-एम और कांग्रेस एक दूसरे को गले लगाने को तैयार हो गये.
फासीवादी ताकतों को रोकने के लिए कांग्रेस से दोस्ती
करीबन 20 वर्षों तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे और पूरे देश में अपनी बेहद ईमानदार छवि रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार कहते हैं कि इस वक्त हमारे सामने फासीवादी ताकत खड़ी है, यही कारण है कि एक दूसरे के विरोधी हम एक साथ खड़े नजर आ रहे हैं. हमारी कोशिश देश में एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक वातावरण का निर्माण करने की है, संविधान का सम्मान करने की है, लोगों का रोजगार और भोजन की व्यवस्था करने की है.
संकट में है देश में लोकतंत्र
आज हालत यह है कि देश में लोकतंत्र को कुचला जा रहा है. आम लोगों को अपना मत डालने से रोका जा रहा है, विपक्षी दलों की राजनीतिक गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जा चुका है, पिछले पांच सालों में मीडिया पर कई हमले हुए हैं. सिर्फ एक पार्टी की तानाशाही रही है. हमारी ओर से सभी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों से भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक साथ आने की अपील की गयी, और कांग्रेस का साथ मिला, अब हम दोनों मिलकर इस फासीवादी ताकत के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ेंगे.
सीपीआई 60 और 13 सीटों पर कांग्रेस का उम्मीदवार
60 सीटों वाली त्रिपुरा में सीपीआई- एम-43, कांग्रेस -13 और भाकपा, फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी को एक एक सीट दी गयी है. जबकि भाजपा 55 सीटों उसकी सहयोगी आईपीएफटी पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
विपक्षी मतों में विखराव को रोकने की कोशिश
वामपंथी और कांग्रेस ना सिर्फ साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, इनके द्वारा विपक्षी मतों के विभाजन को रोकने की रणनीति भी बनायी गयी है, दोनों टिपरा मोथा "ग्रेटर टिपरालैंड" के नेता प्रद्योत देब बर्मा के संपर्क में भी है. कांग्रेस और वाम को मदद के सवाल पर देब बर्मा ने "मैंने चौधरी, सिन्हा और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे क्योंकि वे अच्छे लोग हैं. मैं चाहता हूं कि अच्छे लोग चुनाव जीत कर विधान सभा में जायें, साफ है कि दोनों दल विपक्षी मतों को विभाजित होने की रोकने की जुगाड़ भी लगा रहे हैं. बावजूद देखना दिलचस्प होगा कि जीत का सेहरा किसके माथे बंधता है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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