टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : पेसा कानून (Panchayat Extension to Scheduled Areas (PESA) Act) की झारखंड में लंबे समय से मांग चली आ रही है. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि आखिर ये झारखंड के आदिवासियों के लिए इतना जरूरी क्यों है. इसी पेसा कानून की उलझन में झाखंड के खूंटी जिले में 2018-2019 में पत्थलगड़ी आंदोलन शुरू हुआ था, जो बाद में हिंसक हो गया. हालांकि प्रशासन और सरकार की सूझबूझ से इसे शांत कर दिया गया.
झारखंड में आदिवासियों के लिए लिए क्यों जरूरी है पेसा कानून
PESA कानून, जिसे 1996 में लागू किया गया. अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों को उनकी सांस्कृतिक पहचान, संसाधनों और स्वशासन का अधिकार प्रदान करने के लिए बनाया गया है. झारखंड में लगभग 32% जनसंख्या आदिवासी है, और राज्य का बड़ा हिस्सा अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आता है.
आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा
PESA कानून आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन (जल-जंगल-जमीन) पर स्वामित्व का अधिकार देता है. यह उनके पारंपरिक अधिकारों की रक्षा करता है, जो बाहरी हस्तक्षेप और शोषण से खतरे में रहते हैं.
सामाजिक और सांस्कृतिक संरक्षण
यह कानून आदिवासी समुदायों की पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं और परंपराओं को संरक्षित करता है.
स्वशासन का अधिकार
PESA ग्राम सभाओं को सशक्त बनाता है, जिससे विकास योजनाओं और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का निर्णय आदिवासी समुदाय स्वयं ले सके.
खनिज संसाधनों की लूट को रोकना
झारखंड में खनिज संसाधनों की प्रचुरता है, लेकिन इसका लाभ आदिवासी समुदाय को कम मिलता है. PESA कानून उन्हें खनिज संपत्ति पर स्वामित्व का अधिकार प्रदान करता है.
24 सालों के बाद भी सरकार क्यों नहीं कर पायी इसे लागू, समझिए कहां फंसा पेंच
झारखंड सरकार ने PESA कानून को लागू करने के लिए कदम तो उठाए हैं, लेकिन इसके कार्यान्वयन के लिए अधिसूचना जारी नहीं हुई है. विपक्ष और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि सरकार खनिज और भूमि अधिग्रहण में कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही है. आदिवासी संगठनों की मांग है कि ग्राम सभाओं को शक्तियां दी जाएं. यहां यह भी कहना गलत नहीं होगा कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक सुस्ती के कारण यह लंबित है.
झारखंड में PESA कानून लागू क्यों नहीं हो पाया?
झारखंड में PESA कानून 1996 में बनने के बावजूद अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया है. इसके पीछे कई कारण हैं:
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
राज्य सरकारों ने आदिवासियों को सशक्त बनाने के लिए इस कानून को प्राथमिकता नहीं दी.
कानूनी और प्रशासनिक देरी
PESA को लागू करने के लिए ग्राम सभाओं को मजबूत करने की जरूरत है, लेकिन ग्राम पंचायत और ग्राम सभा के अधिकारों के बीच स्पष्टता का अभाव है.
खनन और औद्योगिक हित
झारखंड में खनन और औद्योगिक परियोजनाओं में निवेश करने वाले बड़े कॉर्पोरेट घरानों के हित PESA कानून से प्रभावित हो सकते हैं. इसलिए इसे लागू करने में रोड़ा डाला जा रहा है.
नीतिगत पेच
PESA को लागू करने के लिए राज्य सरकार को अनुसूचित क्षेत्रों के लिए अपने स्थानीय कानूनों में संशोधन करना होता है. झारखंड सरकार इस प्रक्रिया को अब तक पूरा नहीं कर पाई है.
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी
केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानून को राज्य स्तर पर प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए समन्वय की जरूरत होती है, जो झारखंड में कमजोर रहा है.
निष्कर्ष
PESA कानून झारखंड के आदिवासी समाज के लिए एक बड़ा सामाजिक और आर्थिक सुधार साबित हो सकता है. इसे लागू करने के लिए सरकार को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी और स्थानीय समुदायों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना होगा, क्योंकि इसके ग़ैरहाज़िरी में आदिवासी समाज कई उलझनों में में है. ग्रामसभा निष्क्रिय है पंचायती राज व्यवस्था इन इलाको में फेल है. ज़ाहिर है कि आदिवासी समाज कब तक उपेक्षित रहेगा.
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