TNP DESK: 2024 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की खूब चर्चा है. संदेशखाली के बहाने बंगाल में महिलाओं की सुरक्षा के सवाल उठाए जा रहे हैं .संदेशखाली में जिस महिला की शिकायत पर केस दर्ज हुआ, उस महिला को भाजपा ने प्रत्याशी बनाकर लोगों का ध्यान खींचा है.तृणमूल कांग्रेस ने भी उम्मीदवार बदल दिया है.बशीरहाट लोक सभा क्षेत्र में यह इलाका आता है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी तीसरी बार विधायक हैं. यह अलग बात है कि वाम मोर्चे से पश्चिम बंगाल का शासन छीनने के लिए ममता बनर्जी को कड़े संघर्ष करने पड़े.
कैसे बंगाल की मुख्यमंत्री बनी ममता बनर्जी
ज्योति बसु के बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य बंगाल के मुख्यमंत्री रहे. इसी के बाद पहली बार 2011 में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी. 34 वर्षों तक वाम मोर्चा का पश्चिम बंगाल में शासन रहा, लेकिन इस सत्ता परिवर्तन का अगर कारण ढूंढा जाए तो सिंगुर कांड के बाद परिस्थितिया बदली. सिंगूर आंदोलन के बीच से उठी हवा राज्य की सत्ता में लगभग अपराजेय बने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नीत वाममोर्चा गठबंधन को 2011 में उखाड़ दिया. तब से लेकर अभी तक वाम मोर्चा को नेतृत्व दे रही माकपा और उसके सहयोगी दल बंगाल की सियासत में लगातार कमजोर होते गए हैं. दरअसल राज्य की तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने टाटा मोटर्स की नैनो कार परियोजना के लिए सिंगूर में ही जमीन अधिग्रहण करना शुरू किया था. कारखाना के लिए लगभग 997 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था .सिंगूर की जमीन काफी उपजाऊ होने के कारण किसान जमीन देने को राजी नहीं थे. इसके बाद वहां आंदोलन शुरू हो गया, जिसका नेतृत्व ममता बनर्जी ने किया. इस आंदोलन में ममता बनर्जी को कई लोगों का साथ मिला. जमीन अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे आंदोलन में ममता बनर्जी ने लगातार 26 दिनों तक अनशन कर देशभर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था. बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, ने टाटा से बात कर नैनो कार परियोजना को अपने राज्य में ले लिया. जो कारखाना सिंगूर में लगाना था, वह गुजरात चला गया. इस आंदोलन के बाद ममता बनर्जी की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ने लगा. 2011 की विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों से जारी वाम मोर्चे के शासनकाल को खत्म कर दिया और उसके बाद से वाम मोर्चा लगातार बंगाल में कमजोर पड़ता चला गया.
तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव कोयलांचल में भी
धनबाद से सटे होने के कारण तृणमूल कांग्रेस का प्रभाव कोयलांचल में भी कुछ दिखता रहा है. कांग्रेस के पूर्व सांसद ददई दुबे को जब धनबाद लोकसभा से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने तृणमूल कांग्रेस से ही चुनाव लड़ा था. यह अलग बात है कि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
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