पीएम मोदी की US यात्रा का क्या है एजेंडा, डोनाल्ड ट्रंप भी कर रहे इंतजार, जानिए

TNP DESK- अमेरिका में ट्रंप शासन है और ट्रंप के राष्ट्रपति बने हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ ऐसे निर्णय लिए हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव डालने वाले हैं. सबसे बड़ा निर्णय अपने देश के हितों की रक्षा के लिए अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है. डोनाल्ड ट्रंप ने टेरिफ को रिवाइज किया है. नॉन फेवरेट कंट्रीज के खिलाफ टैरिफ बढ़ाया जा रहा है जिससे वहां से आयात होने वाले प्रोडक्ट्स महंगे हो जाएंगे. यह काम शुरू भी हो गया है. कनाडा और मेक्सिको के खिलाफ Tarrif वार जारी है. चीन पर भी इसका निशान साधा जा रहा है. भारत भी सूची में है. लेकिन फिलहाल बचा हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस अमेरिका यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंध और मजबूत होंगे ऐसी उम्मीद की जा रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा के खास एजेंडा को जरूर जानिए
भारत के लाखों लोग अमेरिका में रहते हैं, रोजगार करते हैं. वहां की आईटी इंडस्ट्रीज में भारतीयों का दबदबा है. भारत अपने देश के मानव संसाधन को महत्व देने के लिए कुछ कड़े कदम उठा रहा है. वीजा नियमों को जटिल किया जा रहा है ताकि वहां पर जो भी भारतीय जाए वह बहुत दिनों तक नहीं रह सके. अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि वर्तमान स्थिति में अमेरिका दयालु नहीं बन सकता है. उसका हिट सर्वोपरि है इसलिए वह अपने देशवासियों की भलाई को बड़ा लक्ष्य मानते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 फरवरी को दो दिवसीय अमेरिका यात्रा पर रवाना होंगे. उनके साथ एक प्रतिनिधिमंडल भी रहेगा. अमेरिका में नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के बीच इंडो पेसिफिक से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा होगी. आपसी व्यापार रक्षा क्षेत्र में सहयोग जैसे विषय पर परस्पर चर्चा होगी. इसके अलावा ग्रैंड पैलेस में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समिट में भी वे हिस्सा लेंगे.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दोनों नॉन फेवरेट कंट्रीज के खिलाफ टैरिफ वर लग रहे हैं कनाडा और मेक्सिको के खिलाफ उन्होंने इसे लागू भी कर दिया है. चीन पर भी लागू करने की तैयारी है. इधर अमेरिका में बसे अवैध प्रवासियों को बाहर भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
अमेरिका ने अपने एक प्रोजेक्ट उस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के तहत विभिन्न विकासशील देशों को आर्थिक मदद देना भी बंद कर दिया है. इस प्रोजेक्ट के तहत भारत भी सहायता प्राप्त करता था.परंतु यह मात्रा बहुत कम थी. रक्षा उपकरणों की खरीद बिक्री जैसे विषय अमेरिका महत्वपूर्ण मानता है. भारत अमेरिका से रक्षा क्षेत्र से जुड़े उपकरण खरीदता रहा है लेकिन घरेलू उत्पादन बढ़ने से यह मात्रा बहुत घटी है. अमेरिका को यह भी अच्छा नहीं लग रहा है. दूसरी तरफ अमेरिका यह भी चाहता है कि उसके डॉलर का अंतरराष्ट्रीय बाजार में दबदबा बना रहे.कोई अन्य वैकल्पिक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा को पनपते वह नहीं देखना चाहता है.
4+