पटना(PATNA): एक तरह जहां भाजपा मुकेश सहनी को वाई प्लस कैटेगरी की सुविधा प्रदान कर अपने पाले में लाने की जुगत बिठा रही है, वहीं दूसरी ओर सन ऑफ मल्लाह अपना पता खोलने को तैयार नहीं है. 2022 में घटी राजनीतिक घटनाओं का जिक्र करते हुए मुकेश सहनी बड़े कायदे से अपनी पीड़ा का सावर्जनिक इजहार अपने समर्थकों को लामबंद करने की रणनीति बना रहे हैं, तो दूसरी ओर अपने साथ हुई राजनीतिक घोखाधड़ी का बयान कर बिहार की दोनों ही प्रमुख राजनीतिक खेमों को उहापोह की स्थिति में बनाये रखने का राजनीतिक कौशल दिखा रहे हैं.
पानी भी पीता हूं तो उसे चार बार फूंकता हूं
अपने ताजा तरीन बयान में मुकेश सहनी ने कहा है कि 2022 की घटनाओं के बाद किसी भी राजनीतिक खेमें पर उनका कोई विश्वास नहीं है, हालत यह हो गयी है कि पानी भी पीता हूं तो उसे चार बार फूंकता हूं. एक बारगी किसी पर विश्वास करने की स्थिति में नहीं हूं.
कर्पूरी ठाकुर ने अति पिछड़ी जातियों को दिखलाया राह
भविष्य की अपनी राजनीतिक योजनाओं पर कुछ स्पष्ट खाका खींचने के बजाय उन्होंने कहा कि कर्पूरी ठाकुर ने पहली बार बिहार में अति पिछड़ी जातियों को स्वाभिमान जीना सिखाया और इस बात का विश्वास दिलाया कि अति पिछड़े अपने पैरों पर राजनीति कर सकते हैं. बिहार में अति पिछड़ी जातियों की आबादी करीबन 33 फीसदी है, इतनी बड़ी आबादी राजनीतिक रुप से लाचार नहीं बनाया जा सकता. ये जातियां सरकार बनाने और गिराने का खेल पहले से ही करती रही हैं और भविष्य में भी करेगी. किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए इन जातियों को हल्के में लेना खतरनाक साबित हो सकता है. हमारी पूरी कोशिश बस अति पिछड़ी जातियों के सपनों को पूरा करने की है. यह सही समय है जब कर्पूरी ठाकुर के बाद एक बार फिर से किसी अति पिछड़े के पास बिहार की कमान हो.
अति पिछड़ों का भविष्य सामाजिक न्याय की शक्तियों के साथ
दरअसल गृह मंत्रालय के द्वारा मुकेश सहनी की सुरक्षा बढ़ाये जाने के फैसले के बाद राजनीतिक हलको में इस बात की चर्चा है कि वह जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं. लेकिन मुकेश सहनी अपना पत्ता बंद कर एनडीए और यूपीए दोनों के लिए अपने दरवाजे खुले रख रहे हैं. जहां वह एक ओर यह कह रहे हैं कि हर जख्म एक समय के बाद भर जाता है, वहीं दूसरी ओर यह भी कह रहे हैं कि अति पिछड़ों का भविष्य सामाजिक न्याय की शक्तियों के साथ रहने में है.
मुकेश सहनी के तीनों विधायकों को अपने में शामिल कर भाजपा ने दिया था जख्म
यहां बता दें कि नीतीश सरकार में मंत्री रहे मुकेश सहनी की विकासशील इंसाफ पार्टी के तीनों विधायकों को भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल करवा लिया था, जिसके बाद उन्हे नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि माना जाता था तब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनका इस्तीफा लेने के पक्ष में नहीं थें, यही कारण है कि मंत्री पद जाने के बाद भी नीतीश कुमार की सरकार ने उनसे उनका बंगला खाली नहीं करवाया था.
मुकेश सहनी को लेकर दोनों ही प्रमुख राजनीतिक खेमों में उलझन
अब जब मुकेश सहनी अपनी राजनीति को लेकर बिहार की दोनों ही प्रमुख राजनीतिक खेमों को उलझा कर रख दिया है, माना जा रहा है कि उनकी कोशिश कुछ महीनों तक बिहार के सियासी समीकरण का जमीनी मुल्याकंन करने की है, जिसके बाद ही उनके द्वारा अपना पता खोला जायेगा. यही कारण है कि वह लालू यादव की भी प्रशंसा कर रहे हैं, नीतीश कुमार की राजनीति पर चुप्पी साधे हुए हैं, साथ ही भाजपा के दिये जख्म को समय के साथ भरने की बात कह रहे हैं, वह 2024 के महासमर के पहले अपना पता बचा कर रखना चाहते हैं.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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