टीएनपी डेस्क(TNP DESK): भारत में चुनावों के दौरान कुछ मुद्दों को सबसे ज्यादा उठाया जाता है. कई पार्टियां उसे अपने घोषणा पत्र तक में शामिल करती हैं तो कई चुनावी सभाओं में उसे मुखर होकर आगे रखती हैं. हम आज हम एक ऐसे मुद्दें की बात करेंगे जो पिछले कुछ सालों में हर चुनाव के दौरान उठाया जाता है और इस मुद्दे को उठाने वाली पार्टी का नाम है भाजपा. अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि आखिर वो मुद्दा क्या है तो हम आपको वो भी बताते है. दरअसल, मुद्दा है समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का.
भाजपा अपनी शुरुआती राजनीति के समय से ही कुछ मुद्दों पर मुखर रही है. जैसे जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना, राम मंदिर और यूसीसी. देश से धारा 370 हट चुकी है और राम मंदिर बनना शुरू हो गया है. ऐसे में अब भाजपा आने वाले समय में यूसीसी को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाना चाहती है. और इस ओर भाजपा ने कदम बढ़ा दिया है. कई भाजपा शासित राज्य में इसकी कवायद भी शुरू कर दी गई है. लेकिन फिलहाल भारत का एकमात्र राज्य गोवा है जहां यूसीसी लागू है. यहां 1961 में गोवा की आजादी से ही कॉमन सिविल कोड लागू है. गोवा में पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है.
क्या राज्य के पास लागू करने का है अधिकार?
विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य सरकार अपने घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करती हैं. ऐसे में आपके मन में भी सवाल आता होगा की क्या केवल राज्य सरकार चाह जाए तो यूसीसी लागू करा सकती है? तो हम आपको बता दें कि केवल राज्य सरकार इसे लागू नहीं करा सकती है. दरअसल, संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य को समान नागरिक संहिता लागू करने की आजादी देता है, लेकिन अनुच्छेद 12 के अनुसार 'राज्य' में केंद्र और राज्य सरकारें शामिल हैं. इसके लिए उसे केंद्र से भी सहमति मिलनी जरूरी है.
लागू होने से छीन जायेगा धार्मिक आधिकार?
दरअसल, समान नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा विरोध मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता है. इसका कहना है कि इसे हमारे ऊपर थोपा जा रहा है और इससे उनकी धार्मिक आधिकार छीन जायेगी. सभी लोगों को हिंदु कानून मानना होगा, लेकिन असल में ऐसा होगा नहीं. जानकारों की मानें तो यूसीसी हर धर्म के लोगों को एक समान कानून के दायरे में लायेगा, जिसके तहत शादी, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामले शामिल होंगे. इससे धार्मिक मान्यताओं के मानने के अधिकार पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
भाजपा शासित राज्य ने शुरू कर दी है कवायद
दरअसल, यूसीसी के लिए उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश ने कवायद शुरू कर दी है. दोनों ही राज्यों में कमेटी का गठन कर दिया गया है और सर्वे की जा रही है. वहीं, हिमालच प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र भाजपा ने यूसीसी को शामिल किया है. दोनों राज्यों में भाजपा ने सत्ता में वापसी पर यूसीसी लागू करने की बात कही है. इसके बाद से ही इसकी चर्चा काफी तेज हो गई है.
UCC अधिक से अधिक राज्यों में करेंगे लागू : नड्डा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गुजरात चुनाव के दौरान एक बयान दिया है जो काफी चर्चा का विषय बना हुआ है. उन्होंने कहा कि देश के अधिक से अधिक राज्यों में यूसीसी लागू करेंगे. इस बयान के बाद चर्चा का माहौल गर्म है कि केंद्र की मोदी सरकार भाजपा शासित राज्यों के माध्यम से धीरे-धीरे इसे दोनों सदन में कानून पास कराकर पूरे देश में लागू कर देगी. हालांकि, ये इतना आसान नहीं है.
यहां होगी सरकार को परेशानी
भारत विविधताओं में एकता वाला देश है. यहां हर धर्म में अलग-अलग मान्याताएं तो हैं ही लेकिन हर क्षेत्र के हिसाब से ये थोड़ा और बदल जाता है. उदाहरण के लिए दक्षिण भारत में सगा मामा अपनी सगी भांजी से शादी कर सकता है, लेकिन वहीं उत्तर और उत्तर पूर्वी भारत में ऐसा नहीं होता. ऐसे में ये कानून पूरे देश में लागू करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
न्यायालय भी जा सकते हैं राज्य
जानकारों की मानें तो केंद्र सरकार अगर राज्यसभा और लोकसभा से इसे पारित करा देती है और राष्ट्रपति के साइन के बाद ये कानून बन जाता है. फिर भी राज्य सरकार के पास रास्ता बचा हुआ है. जो राज्य इसे लागू नहीं करना चाहता हो किसी भी कारणवस वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है और मामले को सुनने के बाद न्यायालय कुछ समय तक के लिए उस राज्य में इसे लागू करने से रोक सकती है.
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