Patna-कभी नीतीश कुमार के सियासी मिजाज और राजनीतिक विश्वसनीयता पर हास्य-परिहास करते हुए भरी संसद में लालू यादव ने अपने ठेठ गंवई अंदाज में कहा था कि आदमी का मुंह में दांत होता है, लेकिन नीतीश का तो पेट में दांत है. लेकिन अब नीतीश के इसी दांत में मांझी रुपी हड्डी फंसती नजर आ रही है और बिहार की सियासत के चाणक्य माने जाने वाले सीएम नीतीश के लिए इस मांझी रुप हड्डी को निकाल बाहर करना एक टेढ़ी खीर बनता नजर आने लगा है.
हर दिन एक नये सपने के साथ शुरु होती है मांझी की शुरुआत
दरअसल मुश्किल यह है कि मांझी हर दिन एक नये सपने के साथ अपनी सुबह की शुरुआत कर रहे हैं. कभी एक रोटी से पेट नहीं भरने का उलाहना और दो रोटी की चाहत होती है, तो दोपहर होते-होते पूरी ताकत के साथ पीएम मोदी के साथ अपनी वफादारी का एलान. लेकिन एक बार फिर रात होते-होते मांझी के सामने सीएम की कुर्सी खड़ी नजर आने लगती है. हालांकि जीतन राम मांझी आज राजनीति के जिस मुकाम पर खड़े हैं, उसका सबसे बड़ा कारण नीतीश कुमार का खुद का सियासी असमंजस और डांवाडोल नजरिया है. कभी मोदी से ईष्या, तो कभी मोदी के साथ यारी वाली उनकी सियासत ने बिहार और बिहारियों की किस्मत बदली हो या नहीं, लेकिन जीतन राम मांझी की सियासत में एक धार जरुर पैदा कर दिया, नहीं तो जीतन राम मांझी आज भी दूसरे दलित नेताओं की तरह अपने लिए मंत्री बनने का जुगाड़ लगा रहे होंते, या फिर अपने बेटे-बेटी लिए टिकट का गुहार.
नीतीश की सियासत ने मांझी को गुमनामी से बाहर निकलने का रास्ता दिखलाया
लेकिन नीतीश की उस राजनीतिक असमंजस ने उन्हे उस मुकाम तक पहुंचा दिया कि आज उनके सामने सीएम की कुर्सी पर खड़ी है, और बेटे और समधन के लिए मंत्री का पद भी, फैसला जीतन राम मांझी को लेना है कि वह किस डगर पर आगे बढ़ना पसंद करते है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सियासत में आज क्या हासिल हो रहा है, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है, भविष्य किसी के हाथ में नहीं है, और यदि भविष्य इतना आश्वस्तकारी और वादे इतने ही टिकाई होते तो आज तेजस्वी यादव को “खेला होगा” का हुंकार नहीं लगाना पड़ता. और तो और वह नीतीश जो अभी चंद दिन पहले तक इंडिया गठबंधन का चेहरा माने जा रहे थें, इतनी आसानी के साथ मोदी की शरणम गच्छामि नहीं होंते, नीतीश कुमार जिस अंदाज में पिछले कई दशकों से राजनीतिक वचनबद्धता और सियासी प्रतिबद्धता का कत्ल करते रहे हैं, उस हालत में कम से कम नीतीश तो जीतन राम मांझी से किसी सियासी प्रतिबद्धता की आशा नहीं कर सकतें और यदि मांझी अपनी प्रतिबद्धता को बदलते भी हैं, तो उन्हे नीतीश कुमार के टक्कर का पलटूराम भी नहीं कहा जा सकता.
नीतीश का खेला खत्म, अब मांझी दिखलायेंगे सियासी हुनर
दरअसल खबर यह है कि बिहार में जारी शाह और मात के सियासी खेल के बीच आज महागठबंधन के कुछ विधायकों ने जीतन राम मांझी से मुलाकात कर उन्हे अपना अभिभावक बताया है, इन विधायकों में माले के सिंबल पर विधान सभा पहुंचे महबूब आलम और सत्यदेव राम भी है, और यही से बिहार की सियासत में एक और भूचाल आता दिखलायी पड़ता है. अब देखना यह होगा कि 12 जनवरी को नीतीश की कुर्सी सलामत रहती है या उस कुर्सी पर बैठे हुए मांझी मंद मंद मुस्कराते नजर आते है.
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