पटना(PATNA): बिहार में नगर निकाय चुनाव की अड़चनें दूर हो गई है. उम्मीद है बहुत जल्द तारीखों का भी एलान चुनाव आयोग के तरफ से हो जाएगा बावजूद इसके बिहार में फिर से जाति की राजनीति शुरू हो गई है. पिछले 4 अक्टूबर को चुनाव आयोग ने नगर निकाय चुनाव रद्द कर दिया था . उसके बाद जडीयू और बीजेपी के बीच खूब बयानबाजी हुई. दोनों एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने लगे. इस बीच आनन फानन में राज्यसरकार ने रातों रात अतिपिछड़ा आयोग का गठन कर हाईकोर्ट में पुर्नविचार याचिका दायर कर दिया. उसके बाद कोर्ट ने हरी झंडी दे दी. अब आयोग 20 दिनों में आरक्षण का रिपोर्ट देगी. किस आधार पर पिछड़ा और अति पिछड़ा सरकार ने तय किया है और इस रिपोर्ट के बाद चुनाव आयोग तारीख तय कर देगा. लेकिन सवाल यह है कि आखिर इतना सब क्यों ? इतनी बयानबाजी और राजनीति सिर्फ पिछड़ा और अति पिछड़ा का हमदर्द बनने के लिए यानि फिर से आरक्षण की राजनीति बिहार में शुरू हो चुकी है और सामने 2024 का लोकसभा चुनाव है.
भाजपा भी अब हिंदू राजनीति के अलावा जाति की राजनीति भी खूब समझने लगी है
लालू प्रसाद, मंडल राजनीति वाले नेता हैं. वह दौर 1990 का था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने का ऐलान संसद में किया था. मंडल राजनीति का दौर लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, मायावती जैसे नेताओं के लिए राजनीति का बड़ा काल था. आरक्षण, लालू प्रसाद की राजनीति की बड़ी जीत थी. पूरे देश में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का विरोध हुआ. विश्विविद्यालयों के छात्र सड़क पर आंदोलन करने लगे. बिहार में भी खूब बवाल हुआ. लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने मंडल के पक्ष में ताकत दिखाई. बिहार में निकाय चुनाव के बहाने जातीय उभार दिख रहा है. इसका फायदा राजद, जदयू या भाजपा लेगी यह 2024 का विधानसभा और 2025 का लोकसभा चुनाव बताएगा. भाजपा भी अब हिंदू राजनीति के अलावा जाति की राजनीति भी खूब समझने लगी है.
अब कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद जडीयू अपनी पीठ थपथपा रही है और राजद काफी उत्साहित है तो बीजेपी इसे सरकार की हार बताते हुए मौजदा बनाई गई अति पिछड़ा आयोग पर ही सवाल खड़ा कर रही है.
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