पटना(PATNA)-जातीय जनगणना के पक्ष में बैटिंग करते राजद-जदयू का दावा था कि विभिन्न जातियों की संख्या और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का ब्लू प्रिंट सामने आने के बाद सरकार को वंचित सामाजिक समूहों के लिए नीतियों के निर्माण में मदद मिलेगी, सरकार के पास वंचित सामाजिक समूहों का साइंटिफिक डाटा होगा. उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति का आंकड़ा होगा.
हालांकि अभी तक जातीय जनगणना के आंकड़ों का ही प्रकाशन हुआ है, सिर्फ विभिन्न जातियों की वास्तविक संख्या सामने आयी है, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को लेकर संग्रहित आंकड़ों का प्रकाशन नहीं हुआ है, लेकिन नीतियों के निर्माण को लेकर जातीय आंकड़ों का इस्तेमाल शुरु कर दिया गया है, सरकार यह मानकर चल रही है कि दलित जातियों के समान ही अत्यंत पिछड़ी और पिछड़ी जातियों की सामाजिक स्थिति बेहद दयनीय है, और उनको केन्द्र में रखकर नीतियों का निर्माण की जरुरत है.
जातीय आंकडों को सामने आने के बाद कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत का बड़ा फैसला
इसकी पहली झलक सरकार के उस फैसले से मिलती है, जिसमें दलित जातियों के समान ही पिछड़ी और अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए भी कृषि उपकरणों की खरीद में लैंड पोजीशन प्रमाण पत्र की अनिवार्यता को खत्म करने का फैसला किया गया है. अब बीस हजार रुपये तक के कृषि यंत्रों की खरीद पर दलित, अत्यंत पिछडी और पिछड़ी जातियों को एलपीसी जमा करने की बाध्यता नहीं होगी. जिसका सीधा लाभ दलित और पिछड़ी जातियों को मिलेगा, जिनकी बिहार में कुल आबादी करीबन 85 फीसदी है. इस मद में 119 करोड़ रुपए की स्वीकृति प्रदान की है. जिसके तहत 108 प्रकार के कृषि यंत्री की खरीद की जा सकती है.
जातीय आंकड़ों को ध्यान में रखकर नीतियों का निर्माण करने वाल पहला विभाग बना कृषि विभाग
इस प्रकार कृषि विभाग जातीय जनगणना के आंकड़ों के आधार पर नीतियों का निर्माण करने वाला पहला विभाग बन चुका है. यहां यह भी बता दें कि सुधाकर सिंह के इस्तीफे के बाद फिलहाल कृषि विभाग की जिम्मेवारी कुमार सर्वजीत के पास है. और कुमार सर्वजीत खुद भी दलित समुदाय से आते हैं.
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