टीएनपी डेस्क (TNP DESK)-आज देश का हर सभ्य और संवेदनशील नागरिक यह जानने को बेचैन है कि जब चार मई को राजधानी दिल्ली में देश के लिए मेडलों की बरसात करने वाली बेटियां अपने साथ हुए यौन शोषण की कहानियां बयां कर रही थी, ठीक उसी समय राजधानी दिल्ली से करीबन ढाई हजार किलोमीटर दूर मणिपुर में आदिवासी बेटियों के साथ जुल्म की कौन सी गाथा लिखी जा रही थी.
हिलती नजर आ रही है दिल्ली की सत्ता
आज जब इसकी आंशिक सच्चाई सामने आते ही दिल्ली की सत्ता हिलती नजर आ रही है, देश का सर्वोच्च न्यायालय सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है. इस बात की चेतावनी जारी कर रहा है कि आप अपना फर्ज पूरा कीजिए, हम चुपचाप इस मंजर को देखने का गुनाह नहीं करेंगे और जब हम शुरु होगें तब आपकी परेशानी कुछ ज्यादा ही बढ़ जायेगी. अचानक से पीएम मोदी भी अपनी चुप्पी तोड़ कर इस नृशंस वारदात को 123 करोड़ भारतीयों के लिए शर्मसार करने वाली खबर करार दे रहे हैं. हालांकि इसके विपरीत, जिनके कंधों पर इस तबाही को रोकने की पहली और प्राथमिक जिम्मेवारी थी, मणिपुर के मुखिया एन बीरेन सिंह इस बात का दावा कर रहे हैं कि यह तो कुछ भी नहीं है, सच्चाई तो इससे भी ज्यादा खतरनाक है. और ऐसी सैंकड़ों कहानियां यहां की फिजाओं में तैर रही है. जिसकी तहकीकात अभी होनी है, जिसकी सच्चाई अभी निकल कर सामने आनी है.
क्या हुआ था, क्या आ चुकी है पूरी कहानी
इस पसमंजर में यह जानना बेहद दिलचस्प है कि उस दिन ठीक-ठीक क्या हुआ था. भीड़ के हाथों चढ़ी आदिवासी बेटियों के साथ किस प्रकार का अमानवीय और घिनौना व्यवहार किया गया था.
इसी कहानी को सामने लाते हुए एक पीड़िता ने अपने दर्द को बयां करते हुए कहा कि उस दिन करीबन 11 बजे हमारे गांव को एक हजार की भीड़ ने चारों तरफ से घेर लिया था. हमारे घरों में आगजनी की शुरुआत कर दी गयी थी. बचाव का कोई उपाय नहीं दिखा तो हम जंगल की ओर भागे, हमारे साथ हमारे पुरुष सहयोगी थें, लेकिन भीड़ पर हमारी नजर पड़ गयी. हमारा पीछा किया गया, हालांकि तब तक पुलिस पहुंच गयी, और हमें इस बात का विश्वास हुआ कि अब हमारी जिंदगी बच जायेगी.लेकिन भीड़ हिंसक हो चुकी थी, मानवता, संवेदना और प्रेम जैसे शब्द बेमानी हो गये थें. भीड़ ने हमें पुलिस की गाड़ी से खींच लिया, और पुलिस चुपचाप देखती रही. बल्कि यों कहे कि वह भीड़ का साथ देती नजर आयी.
जब भीड़ का हाथ टटोल रही थी पीड़िता का जिस्म
एक 21 वर्षीय पीड़िता ने बताया कि गाड़ी से खिंचते ही भीड़ का हाथ हमारे जिस्मों को टटोलने लगा. हम कातर नजरों से पुलिस की ओर देख रहे थें, लेकिन पुलिस तो अपनी जिम्मेवारी भूल चुकी थी. अपनी आंखें फेर चुकी थी, लगा रहा था कि सब कुछ उनकी मर्जी हो रहा है. अचानक से भीड़ ने आवाज लगायी, अपने कपड़े उतारो, और हम इस आदेश नजरअंदाज करने की हैसियत में नहीं थें. हमारे सामने दो ही विकल्प थें, जिंदा रहना या कपड़े उतारना. हमने कपड़े उतराने का विकल्प चुना. उसके बाद भी हमारी अस्मत से खेला गया. भीड़ के हाथों सामूहिक बलात्कार. दूसरी 42 वर्षीय पीड़िता के साथ भी यही कहानी दुहरायी गयी. एक पीड़िता के भाई ने भीड़ के खिलाफ खड़ा होने की कोशिश कि तो उसके भाई को पुलिस के सामने ही मार दिया गया.
दावा किया जा रहा है कि यह भीड़ आरामबाई टेंगोल, मैतेई युवा संगठन, मैतेई लिपुन और कांगलेइपाक कनबा लुप, विश्व मैतेई परिषद जैसे युवाओं की थी. लेकिन मूल सवाल अभी भी अनुतिर्ण है कि क्या यही पूरी सच्चाई है. या अभी और भी कई मर्मसपर्शी कहानियां आनी बाकी है. इसके लिए शायद हमें लम्बा इंतजार करना होगा.
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