पटना(PATNA)-सीएम नीतीश का मास्टर स्ट्रोक माने जाने वाला जातीय जनगणना कानूनी दांव पेंच में फंसता दिख रहा है. हाईकोर्ट के द्वारा जातीय जनगणना पर अंतरिम रोक लगाने के बाद अब देश की सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है, इस प्रकार साफ है कि नीतीश सरकार को अब एक बार फिर से हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखना होगा, जिसकी सुनवाई 3 जुलाई को होनी है.
पटना हाईकोर्ट में दाखिल की गयी थी याचिका
ध्यान रहे कि नीतीश के इस मास्टर स्ट्रोक के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर जातीय जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गयी है, याचिकाकर्ता का दावा है कि जातीय जनगणना सिर्फ केन्द्र सरकार करवा सकती है, कानूनी रुप से राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना करवाने का अधिकार नहीं है, साथ ही याचिकाकर्ता के द्वारा इस मद्द में आंवटित किये गये 500 करोड़ की राशि पर भी सवाल उठाया गया है, याचिकाकर्ता का दावा है कि यह राज्य के पैसे की बर्बादी है.
राज्य सरकार का तर्क
हालांकि इस मामले का राज्य सरकार का तर्क है कि वह जातीय जनगणना नहीं बल्कि जातिगत गणना करवा रही है, क्योंकि बगैर इस बात की जानकारी हासिल किये कि राज्य में किस सामाजिक समूह की जनसंख्या कितनी है, उसकी सामाजिक और आर्थिक जरुरतों के हिसाब से नीतियों का निर्माण नहीं किया जा सकता और ना ही सरकार की ओर चलाये जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है.
4 मई को पटना हाईकोर्ट ने लगाया था आंतरिक रोक
इसी मामले में सुनवाई करते हुए 4 मई को पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार की जातीय जनगणना पर आंतरिक रोक लगा दिया था, और मामले की सुनवाई के लिए 3 जुलाई की तिथि निर्धारित कर दी थी. हाईकोर्ट के इसी फैसले के बाद सरकार ने देश की सर्वोच्च अदालत का रुख किया था, लेकिन सरकार को देश की सर्वोच्च अदालत में भी झटका लगा है, सर्वोच्च अदालत में मामले में तत्काल सुनवाई करने से इंकार कर दिया है, और इसके साथ ही हाईकोर्ट के द्वारा लगाये आंतरिक रोक को भी हटाने इंकार किया है.
विधान सभा से कानून पारित करने की तैयारी में राज्य सरकार
हालांकि इस बीच महागठबंधन की ओर से यह दावा भी किया गया है कि जरुरत पड़ने पर राज्य सरकार इस आशय का कानून विधान सभा से पास कर जातीय जनगणना रास्ता साफ कर सकती है, ताकि इसे कानूनी अड़चनों का सामना नहीं करना पड़े.
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