TNP DESK: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विकास पुरुष और सुशाशन बाबू का तगमा मिला हुआ है. यह तगमा उनके पहले के कार्यो पर लोगो ने दिया. लेकिन अब विकास पुरुष और सुशाशन बाबू का तगमा कमजोर पड़ गया है. बिहार की बिगड़ी कानून-व्यवस्था के बाद जब नीतीश कुमार 2005 में मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने पहला काम किया कि बिहार के बाहुबलियों को जेल में डाल दिया. इनमें कई ऐसे बाहुबली थे, जिनकी बिहार में समानांतर व्यवस्था चलती थी. फिर तो "15 साल नीतीश बनाम 15 साल लालू-राबड़ी" राज की तुलना होने लगी. लोग नीतीश कुमार को विकास पुरुष के नाम से जानने लगे. नीतीश कुमार 1994 में समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेता जॉर्ज फर्नांडिस के साथ जनता दल से अलग हो गए और समता पार्टी का गठन किया.
पढ़िए कैसे-2003 में बनी थी जनता दल यूनाइटेड पार्टी
1996 के आम चुनाव में भाजपा के साथ हाथ मिलाया और शरद यादव की अगुवाई वाली जनता दल, समता पार्टी और लोक शक्ति पार्टी का आपस में विलय हो गया. 2003 में जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनी. 2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा का गठबंधन बना और जीत हुई. राज्य में गठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने. फिर उन्होंने बिहार की राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा. लेकिन अब सुशासन बाबू और विकास पुरुष की बात को बिहार के लोग गंभीरता से नहीं लेते. सवाल उठने लगा है कि नीतीश कुमार चुनाव क्यों नहीं लड़ते? जानकारी के अनुसार नीतीश कुमार आखिरी चुनाव 2004 में लड़ा था. 2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने दो जगह नालंदा और बाढ़ से चुनाव लड़ा था. वह लगातार बाढ़ से जीते रहे थे लेकिन 2004 के चुनाव में जब उन्हें खतरा महसूस हुआ, तो उन्हें गृह जिला नालंदा की याद आई. फिर जॉर्ज फर्नांडिस ने मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा और खुद नालंदा और बाढ़ से चुनाव लड़े. बाढ़ से नीतीश कुमार चुनाव हार गए लेकिन नालंदा से जीत गए. इस हार से नीतीश कुमार को गहरा धक्का लगा.
सांसद रहते नीतीश कुमार बने थे बिहार के मुख़्यमंत्री
2005 में जब जेडीयू और भाजपा गठबंधन की जीत हुई तो वह सांसद थे. 2005 में बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया. विधान परिषद के सदस्य बने. 2006 में नीतीश कुमार बिहार विधानसभा का सदस्य बने और तब से विधान परिषद के सदस्य ही है. नीतीश कुमार 1985 में पहली बार चुनाव जीत कर विधायक बने थे. 1985 में हरनौत विधानसभा सीट से नीतीश चुनाव लड़े और उन्हें जीत मिली. इस जीत के बाद नीतीश कुमार राजनीति में तेजी से आगे बढ़े, इसके पहले 1989 में लोकसभा चुनाव में बाढ़ से तकदीर आजमाया. वहां से चुनाव जीत गए.
कैसे केंद्र की राजनीति की तरफ रुख किया था नीतीश कुमार ने
इसके बाद नीतीश कुमार का रुख केंद्र की राजनीति की ओर हो गया. नीतीश कुमार 1991, 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी जीते. वह अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में कृषि मंत्री और फिर 1999 में कुछ समय के लिए रेल मंत्री भी बने. पश्चिम बंगाल में 1999 में हुए ट्रेन हादसे के बाद उन्होंने नैतिकता के आधार पर रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. नीतीश कुमार बिहार की राजनीति से अलग होना नहीं चाहते. यही वजह है कि कभी बीजेपी के साथ तो कभी राजद के साथ मिलकर वह बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होते रहे. इधर, 2025 में फिर बिहार में विधानसभा चुनाव होने है. इसको लेकर राजनीति शुरू हो गई है. प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव लगातार महिलाओं को केंद्र में रखकर घोषणाएं कर रहे है. तो नीतीश कुमार भी महिला संवाद यात्रा निकालने को थे. लेकिन अब इस यात्रा का नाम बदल गया है. इसे प्रगति यात्रा का नाम दिया गया है.
नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा पर क्या कहा है तेजस्वी यादव ने
23 दिसंबर से प्रस्तावित नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा को पूर्व ड्यूटी सीएम तेजस्वी यादव ने "अलविदा यात्रा" करार दिया है. उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार यह जानते हैं कि विधानसभा 2025 में उनकी पार्टी की सीट और कम हो जाएगी. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी . तेजस्वी यादव फिलहाल पूरे बिहार में घूम कर राजद कार्यकर्ताओं से संवाद कर रहे है. तो नीतीश कुमार भी प्रगति यात्रा के बहाने लोगों से संवाद करेंगे. लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार क्या करेंगे? भाजपा उन्हें चुनाव लड़ने को कितनी सीट देगी? यह सब अभी सवालों में है. क्योंकि नीतीश कुमार भी महाराष्ट्र में जो हुआ, उससे सबक लेते हुए कुछ ना कुछ नई बात जरूर सोच रहे होंगे? बिहार में एनडीए महागठबंधन के अलावे प्रशांत किशोर की पार्टी ने भी एक कोण तैयार कर लिया है. कुल मिलाकर 2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर को तय करेगा.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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