टीएनपी डेस्क(TNP DESK): जोशीमठ हादसे के बाद जहां उत्तराखंड और केन्द्र की सरकार इसके कारक कारणों की समीक्षा में जुटी है, वहीं इस हादसे से सबक लेते हुए ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सरकार से किसी भी धार्मिक स्थल को पर्यटक स्थल में बदलने से परहेज करने को कहा है.
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि जोशीमठ सहित पूरे उत्तराखंड को पर्यटक स्थल के रुप में विकसित करने की कोशिश का दुष्परिणाम आज इस हादसे के रुप में सामने आ रहा है, हमें धार्मिक स्थल और पर्यटन स्थल के अंतर को समझना होगा, नहीं तो इस प्रकार के हादसे आगे भी होते रहेंगे.
2005 में हाईड्रोपावर प्रोजेक्ट और 17 किलोमीटर की लंबी सुंरग बनायी गई थी
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि 2005 में यहां हाईड्रोपावर प्रोजेक्ट की शुरुआत की गयी, 17 किलोमीटर की लंबी सुंरग बनायी गई, और इसे एक उपलब्धि के बतौर प्रचारित किया है. आज उसका नतीजा है कि यहां की जमीने धंस रही है, लोगों के घरों में दरार आ रहा है. लोग सुरक्षित स्थल की खोज में दर बदर भटक रहे हैं.
सम्मेद शिखर को लेकर जैन धर्मालम्बियों के संघर्ष से सीख ले हिन्दू समाज
इस मामले को सम्मेद शिखर से जोड़ते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सम्मेद शिखर को लेकर जैन सम्प्रदाय के संघर्षों की प्रशंसा की और कहा कि हिन्दू धर्मालंबियों को भी इससे सबक लेना चाहिए. जिस प्रकार जैन धर्मालंबियों ने अपने संघर्ष के सम्मेद शिखर को पर्यटक स्थल को रुप में बदलने की कोशिश को असफल कर दिया, उससे हमें सीखने की जरुरत है.
क्या है सम्मेद शिखर विवाद
यहां बता दें कि राज्य सरकार की अनुशंसा पर केन्द्र की सरकार ने इस क्षेत्र को इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित कर पर्यटक स्थल घोषित करने की अनुशंसा जारी कर दी थी. जिसका जैन धर्मालम्बियों के द्वारा विरोध किया गया, और आखिरकार सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा. इसके साथ ही सम्मेद शिखर के आसपास के क्षेत्र को पर्यटक स्थल के रुप में विकसित करने की कोशिश पर विराम लग गया.
रिपोर्ट : देवेंद्र कुमार, रांची
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