टीएनपी डेस्क(TNP DESK): देश के करीबन 500 से अधिक वैज्ञानिकों और शिषाविदों ने भारत सरकार के द्वारा बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री इंडिया: द मोदी क्वेश्चन को ब्लॉक करने पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है. इन वैज्ञानिक और शिक्षाविदों ने वृतचित्र पर सेंसरशिप से अपनी निराशा व्यक्त की है. इनके द्वारा भारत सरकार के इस रुख से असहमति व्यक्त की गयी है कि डॉक्यूमेंट्री से भारत की संप्रभुता और अखंडता कमजोर होगी.
17 और 24 फरवरी को हुआ था डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण
यहां बता दें कि 17 जनवरी और 24 फरवरी को बीबीसी की ओर से इस डॉक्यूमेंट्री का दो एपिसोड प्रसारण किया गया था, जिसके बाद केन्द्र सरकार के द्वारा 21 जनवरी को यूट्यूब और ट्विटर को इसका लिंक हटाने का निर्देश दिया था. वृतचित्र में वर्ष 2002 के गुजरात के सांप्रदायिक दंगों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की कथित भूमिका और उनके ट्रैक रिकॉर्ड की जांच की गयी है. 31 जनवरी को जारी इस विरोध पत्र पर अब तक करीबन 522 वैज्ञानिक और शिक्षाविदों की ओर से हस्ताक्षर किया जा चुका है.
डॉक्यूमेंट्री ब्लॉक करने का फैसला संवैधानिक अधिकारों का उल्लंधन
विरोध पत्र में यह दावा किया गया है कि सोशल मीडिया से डॉक्यूमेंट्री ब्लॉक करने का फैसला समाज और सरकार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने और उस पर बहस-परिचर्चा करने की हमारे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. साथ ही विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा वृत्तचित्र की सोशल स्क्रीनिंग को रोकने शैक्षणिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है. किसी भी लोकतांत्रिक समाज और शैक्षणिक संस्थान में हर सामाजिक और राजनीतिक सवालों पर खुली चर्चा होनी चाहिए. यह इसलिए भी बेहद जरुरी है कि हमारी संस्थाओं का स्वरुप लोकतांत्रिक बना रहे. विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा किसी भी विचार को रोकना और उसकी अभिव्यक्ति को बाधित घातक है. वह भी महज इसलिए की उसमें सरकार की आलोचना की गयी है.
कई विश्वविद्यालयों के द्वारा रोकी गयी थी डॉक्यूमेंट्री सोशल स्क्रीनिंग
यहां बता दें कि डॉक्यूमेंट्री प्रकाशन के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज और प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, कोलकत्ता में कुछ छात्रों और बुद्धिजीवियों के द्वारा इसके पायरेटेड संस्करण प्रदर्शित करने की कोशिश की गयी थी. जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा रोक दिया गया था.
वृत्तचित्र देखने को बीबीसी या ब्रिटिश प्रतिष्ठान का समर्थन के रुप में नहीं देखा जाना चाहिए
छात्रों का कहना था कि 2002 के दंगों को प्रोत्साहित करने और उसे रोकने में रुचि नहीं रखने वालों की शिनाख्त जरुरी है, ताकि भविष्य में इसकी पुनरावृति को रोका जा सके. इसलिए, बीबीसी के वृत्तचित्र में उठाए गए सवाल महत्वपूर्ण है. वृत्तचित्र देखने को बीबीसी या ब्रिटिश प्रतिष्ठान का समर्थन के रुप में नहीं देखा जाना चाहिए.
2002 में ब्रिटिश सरकार ने गुजरात दंगों की जांच के लिए एक जांच दल भेजा था
इन शिक्षाविदों का कहना है कि जैक स्ट्रॉ जो वृत्तचित्र में दिखाई देतें है, टोनी ब्लेयर मंत्रिमंडल में ब्रिटिश विदेश सचिव थे. डॉक्यूमेंट्री में स्ट्रॉ ने कहा है कि 2002 में ब्रिटिश सरकार ने गुजरात दंगों की जांच के लिए एक जांच दल भेजा था. जिसने यह दावा किया था कि मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुसलमानों के खिलाफ लक्षित हिंसा को रोकने के लिए पुलिस को कार्रवाई से रोका था. डॉक्यूमेंट्री में दावा किया गया है कि जांच दल ने "विश्वसनीय संपर्कों" का हवाला देते हुए कहा था कि मोदी ने 27 फरवरी, 2002 को वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें दंगों में "हस्तक्षेप न करने का आदेश" दिया.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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