टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-जनता जनार्दन ही लोकतंत्र में सबकुछ होती है, बयार बहाने और जोशीले तकरीरे भरने से कुछ नहीं होता. बरगलाने और बहलाने से वोटर्स के मन को नहीं बदलता. जमीन पर क्या हुआ और क्या होना चाहिए और कौन इसके लिए मुफीद है. आवाम इसे बखूबी समझता-बुझता है.
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में तमाम तरह के आंकड़े पेश किए गये. एग्जिट पोल से लेकर एंटी इनकंबेंसी का फेक्टर जैसे तमाम तरह की चर्चाए और बातों से फिंजा सराबोर थी. चर्चा तो ये भी थी कि शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाने से बीजेपी को बड़ा खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा. लेकिन, जो मध्यप्रदेश की जनता ने अपना फैसला सुनाया. वो इस बात की तस्दीक करती है कि भाजपा एकबार फिर पसंद हैं.
लाडली की लहर से लहराया भगवा
इसी मार्च को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘लाडली बहना’ योजना की शुरुआत की. सरकार की इस योजना ने ही मताओ, बहनों, बहुओं और बेटियों का मन बदल दिया. जून के शुरुआत में इसके तहत 1000 रुपए दिए जाते थे, फिर इसे अगस्त में बढ़ाकर 1250 रुपए कर दिया गया. मामा ने जीतने के बाद इसे 3000 रुपए महीने करने का एलान कर दिया है. प्रचार-प्रसार के दौरान लाडली बहना के सहारे सत्ता में आने की बात शिवराज जिक्र किया करते थे. आखिरकार यही देखने को मिला. भाजपा ने मध्यप्रदेश में पाचंवी बार सरकार बनायेगी. इससे पहले 2003,2008,2013 और 2020 में सरकार बनायी थी.
यहां सोचने और समझने वाली बात तो ये है कि, बगैर सीएम के चेहरे मध्यप्रदेश में भाजपा ने परचम लहराया. लेकिन, दबी जुबान से ही चर्चाओं के बाजार में तो शिवराज के चलते ही इस विजयगाथा की बात बोली जा रही है. अब अगर फिर वो मध्प्रदेश की कमान नहीं संभालते हैं. तो लाजामी है कि कुछ न कुछ बीजेपी के अंदर भी उठा पटक होगी. सच्चाई ये भी यही है कि मामा के योगदान को नहीं भूला जा सकता और न ही उनके मेहनत, लगन औऱ प्रतबिद्धता को नकारा जा सकता है
‘अखिलेश-वखिलेश’ ने पंजे की डुबिया लुटिया
इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की हवा बह रही थी और जीत के दावें हर तरफ हो रहे थे. कही न कही इसमे सच्चाई भी है. यकायक क्या गड़बड़ी हो गयी और क्यों वोटर्स बिदक गये और कैसे चुनावी बिसात में पासा पलट गया. ये गहराई से विश्लेषण का विषय है. अनुभवी कमलानथ की अगुवाई में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा. तमाम दावें और समीकरण भी कांग्रेस के ही सत्ता में वापसी की हरी झंडी दिखा रहे थे. लेकिन, ऐसा कुछ भी चमत्कार जमीन पर नहीं हुआ और न ही एंटी इंकंबेंशी का फायदा मिला औऱ न ही आरोपों का ही असर दिखा. यकायक बयार बीजेपी की तरफ बह गयी. एक कहवात है कि इंसान अपनी गलतियों का ही खामियाजा भुगतता है. गुमान कभी काम नहीं देता. कमलनाथ ने ही समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के साथ सीट बंटवारे पर अखिलेश-वखिलेश बोल दिया था. यानि उनका अंहकर इतना बोल रहा था कि , उनके सामने किसी को कोई भाव ही नहीं दिया. जबकि, इंडिया गठबंधन के तहत सपा भी इसमे शामिल हैं. सीट बंटवारे लेकर ही ये खटपट हुई औऱ कही न कही इसका भी नुकसान कांग्रेस को हुआ.
इस शिकस्त के बाद कांग्रेस को आत्ममंथन और चिंतन करने की है, क्योंकि अभी लोकसभा चुनाव आने वाला है.
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