टीएनपी डेस्क (TNP DESK): हिमाचल-कर्नाटक फतह के बाद कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को लम्बे अर्से से छाये निराशा के बादल कुछ -कुछ छंटते नजर आने लगे हैं. उनके अन्दर उम्मीद की एक किरण नजर आने लगी है, उन्हें यह एहसास हो रहा है कि मोदी की वह आंधी अब थम चुकी है, जिसके बंबडर में उनके पैर कभी सरजमीन से कबड़ गये थें, यही कारण है कि अब पूरा विपक्ष एक स्वर में खड़ा नजर आने लगा है. और नये संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी के हाथों करवाये जाने फैसले ने उन्हें अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने का एक राजनीतिक अवसर प्रदान कर दिया है, और बहाना है इस लोकतंत्र के मंदिर के उद्धाटन के अवसर पर देश का प्रथम नागिरक यानी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की उपेक्षा का.
विपक्षी दलों का आरोप है कि इस लोकतंत्र के इस मंदिर का उद्धाटन प्रधानमंत्री के हाथों किये जाने का कोई तूक नहीं है, वह भी देश की प्रथम नागरिक, अभिभावक, तीनों सेना का प्रधान और संवैधानिक प्रधान राष्ट्रपति मुर्मु की उपेक्षा कर.
महामहिम के हाथों क्यों नहीं
जबकि कुछ दलों का आरोप है कि यह सब कुछ महज इस लिए किया जा रहा है, क्योंकि इस समय देश की राष्ट्रपति एक महिला और आदिवासी हैं, और यही कारण है कि उन्हे इस कार्यक्रम से दूर रखा जा रहा है. लोकतंत्र के मंदिर के इस उद्घाटन के अवसर उनकी उपेक्षा इस देश के दलित आदिवासी और बहुंसख्यक आबादी का अपमान है और हम इस अपमान में भागीदार नहीं होंगे.
किन किन दलों ने किया बहिष्कार की घोषणा
ध्यान रहे कि इस नये संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हाथों होना है. जबकि ममता बनर्जी की टीएमसी, अरविंद केजरीवाल की आप, एनसीपी, डीएमके, शिवसेना (उद्धव गुट), सीपीआई, सीपीआई(एम), जदयू, राजद सहित करीबन 19 दलों ने अब तक अपने आप को इस कार्यक्रम से दूर रखने का फैसला कर लिया है. इन दलों ने एक संयुक्त ज्ञापन जारी कर कहा है कि "जब लोकतंत्र की आत्मा को संसद से चूस लिया गया हो, तो हम नए भवन में कोई मूल्य नहीं पाते हैं.
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