टीएनपी डेस्क: बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार शारदीय नवरात्र कल से शुरू होने वाला है. हर ओर ढोल-नगाड़ों के साथ धूमधाम से कलश स्थापना कर देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाएगी. 9 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में देवी दुर्गा के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाएगी. वहीं, 12 अक्टूबर को रावण का पुतला दहन कर ‘विजयादशमी’ का त्योहार मनाया जाएगा. शारदीय नवरात्र के शुरू होने से एक दिन पहले ‘महालया’ मनाया जाता है. कहा जाता है कि, इस दिन देवी दुर्गा को उनके मायके यानी धरती पर आने का निमंत्रण दिया जाता है. जिसके दूसरे दिन से नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है और देवी दुर्गा घरों में 9 दिनों तक विराजमान होती हैं. ऐसे में 9 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है और दसवें दिन ‘विजयादशमी’ के साथ माता की विदाई कर दी जाती है.
माता के आगमन और प्रस्थान की सवारी भी महत्वपूर्ण
धर्मग्रंथ और पुराणों के अनुसार, जब मां दुर्गा कैलाश से अपने मायके यानी धरती पर आती हैं तो विशेष वाहन पर सवार हो कर आती हैं. ऐसे ही विदाई के वक्त भी जब वह धरती से कैलाश जाती हैं तो भी उनकी सवारी विशिष्ट होती है. ऐसे में माता के आगमन और प्रस्थान की सवारी भी बहुत महत्व रखती है. माता दुर्गा की सवारी के भी कई मायने हैं. माता की सवारी से ही पता चलता है की ये कल्याणकारी है या नहीं और इसका विश्व पर क्या असर पड़ेगा. क्योंकि, देवी दुर्गा जिस भी वाहन पर सवार होकर आती हैं उसका शुभ-अशुभ प्रभाव देश-दुनिया पर पड़ता है. ऐसे में नवरात्र के समय माता दुर्गा किस वाहन पर सवार होकर धरती पर आएंगी इस बात का पता दिनों के हिसाब लगाया जाता है. यानी की नवरात्रि किस दिन से शुरू हो रही है उसी दिन के हिसाब से माता की सवारी का पता लगाया जाता है.
नवरात्रि के पहले दिन के अनुसार तय होता है वाहन
यूं तो माता दुर्गा की सवारी सिंह है. लेकिन नवरात्रि के समय माता अलग-अलग वाहन पर सवार होकर धरती पर आगमन करती हैं. ग्रंथों व पुराणों में सप्ताह के दिनों के अनुसार माता के वाहन का पता लगाया जाता है. अगर नवरात्रि की शुरुआत रविवार या सोमवार से हो रही है तो माता हाथी पर सवार होकर धरती पर आएंगी. शनिवार और मंगलवार को नवरात्रि शुरू होने पर माता घोड़े पर सवार होकर धरती पर आती हैं. बुधवार के दिन नवरात्रि शुरू होने पर माता नाव पर आती हैं. वहीं, बृहस्पतिवार या शुक्रवार को नवरात्रि की शुरुआत होने पर मां दुर्गा ‘पालकी’ पर सवार होकर धरती पर आती हैं. ऐसे में इस साल नवरात्रि की शुरुआत बृहस्पतिवार से हो रही है, इससे माता दुर्गा का धरती पर आगमन ‘डोली’ यानी ‘पालकी’ पर होगा.
नवरात्रि के अंतिम दिन के अनुसार तय होता है वाहन
प्रस्थान का वाहन भी आगमन की तरह ही दिन के अनुसार तय होता है. यानी की नवरात्रि के अंतिम दिन के अनुसार माता के प्रस्थान का वाहन भी तय होता है. ऐसे में नवरात्र का अंतिम दिन रविवार या सोमवार को पड़ने पर माता भैंसे पर सवार होकर जाती हैं. बुधवार या शुक्रवार को देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर जाती हैं. शनिवार या मंगलवार को मां दुर्गा चरणायुद्ध मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं. बृहस्पतिवार को अंतिम दिन पड़ने पर मां दुर्गा मनुष्य की सवारी करती हैं. ऐसे में इस साल माता की विदाई शनिवार को की जाएगी, तो माता चरणायुद्ध मुर्गे पर सवार होकर कैलाश की ओर प्रस्थान करेंगी.
‘पालकी’ की सवारी शुभ नहीं
माता रानी के अलग-अलग वाहन का प्रभाव भी धरती पर अलग-अलग होता है. इस साल माता ‘पालकी’ पर सवार होकर धरती पर आ रही हैं. ऐसे में ग्रंथों के अनुसार देवी मां का पालकी पर सवार होकर धरती पर आना शुभ नहीं माना गया है. माता की पालकी की सवारी प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ देश में आर्थिक मंदी, महामारी, जान-माल का नुकसान होने का संकेत देता है.
चरणायुद्ध वाहन भी देता है युद्ध के संकेत
वहीं, आगमन की तरह प्रस्थान का वाहन भी एहम होता है. इस साल माता पालकी में सवार होकर आ रही हैं और प्रस्थान चरणायुद्ध यानी बड़े पंजे वाले मुर्गे पर करेंगी. पालकी की तरह देवी दुर्गा का वाहन मुर्गा भी शुभ संकेत नहीं देता है. यह शोक, कष्ट और दुख का संकेत देता है. चरणायुद्ध वाहन से देश-दुनिया में बुरा प्रभाव पड़ता है. इससे विश्व में युद्ध, लड़ाई-झगड़े जैसी स्थिति बनती है.
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