टीएनपी डेस्क(TNP DESK): मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हम 2024 के महासमर से मात्र 400 दिन की दूरी पर खड़े हैं, इन्ही 400 दिनों में हमें इतिहास गढ़ना है.
भाजपा नेताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि इस समर में विजय पताका फहराने के लिए हमारी ओर देखने की जरुरत नहीं है, इसके लिए आपको प्रयत्न करना होगा. कार्यकर्ताओं को ही अपना खून-पसीना बहाना होगा.
यहां बता दें कि यह प्रधानमंत्री मोदी का यह दूसरा कार्यकाल है, यदि भाजपा पीएम नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2024 के महासमर में विजय हासिल कर लेती है, तो पीएम मोदी के सामने देश के भारत के महानतम प्रधानमंत्रियों की लीग में शामिल होने का मौका सामने होगा. यही से पीएम मोदी के सामने शंकाएं और सपनों का जन्म होता है. उनके अन्दर भी एक प्रकार की बेचैनी उत्पन्न होती दिख रही है.
देश के महानतम प्रधानमंत्रियों के लीग में शामिल होने का सपना
देश के महानतम प्रधानमंत्रियों के लीग में शामिल होने का सपना, यह कोई साधारण सपना नहीं है, और ऐसा सपना भी नहीं है जिसे पीएम मोदी के लिए हासिल करना असंभव है, हां, उनके सामने चुनौतियां जरुर है.
नेहरु का करिश्मा और सम्मोहन
यहां बता दें कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने 1952, 1957 और 1962 के चुनावी महासमर में अपने नेतृत्व में कांग्रेस को सफलता दिलवायी थी. इस प्रकार 1947 से अपनी मौत 1964 तक वह निर्विवाद रुप से कांग्रेस के सर्वोच्च नेता बने रहें.
गूंगी गुड़िया का कमाल
जबकि उनकी मौत के बाद प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी ने ‘जिसे उनके प्रथम कार्यकाल में समाजवादी नेता लोहिया ने गूंगी गुड़िया कहा था” 1967 और 1971 का आम चुनाव में कांग्रेस को विजयश्री दिलवाने में सफल रहीं. जिसके बाद उनके द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा की गयी और वह 1977 में चुनाव हार गयीं, लेकिन इसके बाद के चुनाव में गूंगी गुड़िया से दुर्गा बन चुकी इन्दरा ने फिर से वापसी की और 1984 में प्रधानमंत्री रहते हुए उनकी हत्या कर दी गई.
नेहरु-इंदिरा की इस विरासत से भाजपा में बैचैनी
नेहरु का करिश्मा और सम्मोहन और ‘गूंगी गुड़िया’ इंदिरा का कमाल आज भी भाजपा को बेचैन करती है. चाहे अनचाहे मोदी का सपना भी देश के महानतम प्रधानमंत्रियों के इस लीग में शामिल होने की है.
अटल बिहारी वाजपेयी को भी मिला था तीन-तीन बार पीएम बनने का मौका
यहां बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी को भी तीन-तीन बार पीएम बनने का मौका मिला था. लेकिन उनका कुल योग छह साल के अधिक का नहीं रहा. पहली बार की सरकार 13 दिन की रही, दूसरे बार सरकार की 13 महीनों और तीसरी बार की सरकार पूरे पांच वर्ष की थी. चारों ओर फील गुड की लहर थी, मीडिया आज ही के समान उनका गुणगान कर रहा था, चारों ओर अटल बिहारी वाजपेयी की ही कीर्ति सुनाई जा रही थी, प्रमोद महाजन इस फील गुड का ध्वजवाहक बन पूरा देश घूम रहें थें. लेकिन चुनावी नतीजों ने सब कुछ उलट पलट दिया. फील गुड की हवा कागजी निकली और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बनने में सफल रहें.
कागजी निकली फील गुड की हवा
आज भी मीडिया में चारों ओर पीएम मोदी की चर्चा है, ठीक उसी प्रकार आज भी फील गुड को एहसास करवाने की रणनीतियां भी बनायी जा रही है, राम मंदिर का निर्माण कार्य पूरा ही होने वाला है, रामसेतू को राष्ट्रीय विरासत घोषित करने की प्रक्रिया को तेज कर दी गयी है और तो और अब तो प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा पसंमादा मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ने की अपील कर अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को सुधाने की कोशिश की जा रही है.
फील गुड का बिखरना आज भी भाजपा को कचौटती है
लेकिन उस फील गुड का बिखरना, आज भी भाजपा को कचोटती है, तमाम आश्वासनों के बावजूद मन के किसी कोने में शंका बनी रहती है. यही दुविधा पीएम मोदी के मन में दिखता है. यही कारण है कि अब वह 2024 के महासमर में जीत के लिए अपनी ओर देखने की सलाह नहीं दे रहें हैं. क्योंकि यह बात अब छूपा रहस्य नहीं है कि थोड़ी सी कोशिश कर भाजपा को पराजित किया जा सा सकता है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल, राजस्थान, झारखंड, कर्नाटक, पंजाब, दिल्ली, तेलांगना इसके उदाहरण है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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