टीएनपी डेस्क(TNP DESK): समलैंगिक संबंध को वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मान्यता दे दी थी. अब बहुत सारे लोग समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए लड़ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में इससे संबंधित 15 याचिकाएं हैं. इसका विरोध भारत सरकार ने किया है.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके कहा है कि भारत में विवाह एक संस्कार है. एक पुरुष और एक नारी के बीच परिवार बढ़ाने के उद्देश्य संस्कार निष्पादित होता है. इसलिए किसी समान लिंग वाले दो व्यक्ति को विवाह करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. यह पूरी तरह से गलत और अव्यावहारिक है.
विवाह जैसे पवित्र बंधन को इस रूप में मान्यता देना बिल्कुल गलत
केंद्र सरकार ने कहा है कि विवाह जैसे पवित्र बंधन को इस रूप में मान्यता देना बिल्कुल गलत होगा. हलफनामा में कहा गया है कि दो वयस्क पुरुष और नारी इसलिए विवाह करते हैं कि वे बच्चे पैदा कर सकें. इस प्रकार परिवार का निर्माण होता है. दो समान लिंग के बीच वैवाहिक संबंध का पारिवारिक निर्माण का कोई जैविक आधार ही नहीं बनता है.
भारत में कई संगठन पिछले कई वर्षों से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए वे लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन भी करते रहे हैं. ऐसे समलैंगिक संबंध रखने वाले लोगों की मांग है कि यह निजी स्वतंत्रता का मामला है. दो वयस्क लोग भले ही समान लिंग के हों, वे विवाह कर सकते हैं और अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
13 मार्च को होगी सुनवाई
विश्व के कई देशों में इस तरह के विवाह को मान्यता मिली हुई है. इसी आधार पर भारत में भी कुछ समूह इस निजी स्वतंत्रता की वकालत कर रहे हैं. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 15 याचिकाएं दायर हैं. केंद्र सरकार ने अपने 55 पन्ने के हलफनामे में साफ तौर पर कहा है कि इस तरह समलैंगिक विभाग का वह विरोध करता है. इसे जरा भी मान्यता नहीं दी जा सकती. 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में इस महत्वपूर्ण विषय पर सुनवाई होनी है.
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