टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस के हौंसले बुलंद हैं, लाजमी है कि ये होना भी चाहिए. क्योंकि, दक्षिण के दरवाजें पर दस्तक दे रही बीजेपी के लिए दरवाजा फिर से बंद हो गया. करारी हार के बाद भाजपा के लिए ये सबक भी है और लोकसभा चुनाव के लिए सोचने की जरुरत भी है.
बीजेपी अपने बलबूते केन्द्र की सत्ता पर काबिज है और अब तीसरी बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की पूरी कोशिश और तैयारी में लगी है . इधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इतिहास के पन्नों में तीसरी बार खूबसूरत इबारत लिखने को बेताब हैं. इसमे कोई शक नहीं, कर्नाटक में शिकस्त के बाद भी भाजपा का रंग फीका नहीं पड़ा है. आज भी उसका रूतबा बरकरार है. इधर, विपक्ष का बिखराव एकबार फिर लामबंद होने की कवायद में है. हालांकि, 2014 और 2019 में भी ऐसी कोशिश हुई थी . लेकिन, बेफिजुल साबित हुई. हालांकि, इस बार विपक्ष एक ताकत के तौर पर भगवा पार्टी को टक्कर देने का मन बनाया है . खैर ये तो वक्त की बात होगी. फिलहाल, एकजुट होने का तमाम प्रयास जारी है.
पटना में होगा महागठबंधन का महाजुटान
2024 की चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है . मैदान ए जंग में बीजेपी से मुकाबले के लिए महागठबंधन की बैठक 23 जून को पटना में होगी. लिहाजा, क्या बात बनेगी या फिर महज ये बैठक ही साबित होगी. ये तो समय ही तय करेगा . लेकिन, नीतीश कुमार जिस तरह की तेज कोशिशें कर रहे हैं और लोगों को मनाकर एक मंच में लाने के लिए ताकत झोंके हुए हैं. इससे तो साफ है कि उनकी महत्वकाक्षां कुछ अलग है, और अपना शख्सियत दमदार बनाना चाहते हैं .इस बैठक में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, NCP प्रमुख शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, RLD के अध्यक्ष जयंत चौधरी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और लेफ्ट की पार्टियां भी शिरकत करेगी.
विपक्षी एकता की मुश्किलें
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार इसी कोशिश में हैं, कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी दी जाए. इसके लिए एक मजबूत विपक्ष खड़ी की जाए. इसी को लेकर महगठबंधन का महाजुटान किया जा रहा है . लेकिन, रास्ते में मुश्किल ये है कि इसका अगुवा कौन होगा ?. इसका नेतृत्व कौन करेगा?. दूसरी तरफ कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है. कार्नाटक की जीत के बाद उसकी उम्मीदें को बल मिला है. और थोड़ी ताकत भी बढ़ गई है. खुद उसे अब अहसास होने लगा है कि उनकी पार्टी बिखरी नहीं है. बल्कि अभी भी वह कुव्वत कायम है, जो टक्कर देने में बीजेपी को सक्षम हैं. यहां दिक्कत ये है कि कई राज्यों में क्षेत्रिय दलों की पकड़ अच्छी है, तो वह कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहती. कई जगहों पर कांग्रेस अपने बलबूते खड़ी हैं, तो वह क्षेत्रिय दलों को भाव नहीं देगी. अगर बात बन भी गई. तो, सीट को लेकर किचकिच होगी . इधर, अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप का कांग्रेस के साथ रिश्ता उतना मीठा भी नहीं है. कर्नाटक की ताजपोशी में केजरीवाल को न्यौता नहीं देना इसका सबूत है . दूसरी तरफ देंखे तो कांग्रेस के अलावा आप ही इकलौती पार्टी है, जिसका दो राज्य दिल्ली और पंजाब में सरकार है. हालांकि, सकारात्मक बात ये है कि अरविंद केजरीवाल भी विपक्षी एकता के लिए सभी से मिलजुल रहें है.
प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा ?
अगर बीजेपी लोकसभा चुनाव जीतती हैं, तो पीएम नरेन्द्र मोदी बनेंगे. ये तो तय है. वही दूसरी तरफ इसे लेकर कोई साफ नहीं है कि पीएम कौन होगा ?. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद प्रधानमंत्री बनने की बात से इंकार कर चुके हैं. लेकिन, उनकी आकंक्षा और सपना तो यही है. भले टीवी कैमरे के सामने मुकर रहें हो. वही, पीएम के पद के लिए कांग्रेस भी अपने दावें से पीछे नहीं हटने वाली है. क्योंकि, मुख्य विपक्षी पार्टी होने के साथ-साथ उसका देशभर में अपना अलग जनाधार है. उसकी सीटें भी सभी दलों के मुकाबले ज्यादा होगी. लिहाजा मुश्किल औऱ पेंच तो इसमे फंसेगा ही. इसके साथ ही और भी दावेदार वक्त के साथ उभर सकते हैं.
कुछ विपक्षी पार्टिया का साथ नहीं होना
आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी, तेलंगाना के सीएम चंन्द्रशेखर राव, ओडिशा के नवीन पटनायक, उत्तरप्रदेश की पूर्व मूख्यमंत्री और बीएसपी सुप्रीमो मायावती जैसे नेता इससे दूरी बनाए हुए हैं. जाहिर है, इन राज्यों में महगठबंधन को अपनी जमीन तलाशने होगी. नहीं तो यहां का रिजल्ट उनके मनमाफिक नहीं आने वाला है. क्योंकि इन राज्यों में देखे तो लोकसभा की 100 सीटों से ज्यादा है. अगर यहां पर मन नहीं मिला और मिलाप नहीं हुआ, तो परेशानी खड़ी तो होगी. इससे इंकार नहीं किया जा सकता . यहां पर अंह का टकराव भी वक्त-वक्त पर दिखता रहा है. जो विपक्ष के मिलन में सबसे बड़ी बाधा है.
इधर,भारतीय जनता पार्टी में मोदी और शाह की जोड़ी ने पिछले दो लोकसभा चुनाव में करिश्मा दिखाया है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी छवि औऱ शख्सियत ऐसी बनाई, कि देश ही नहीं विदेश में भी उनका नाम खूब हुआ. यकीनन विपक्षी पार्टियों को उनकी काट ढूंढनी होगी. क्योंकि, उन्होंने जो दीवार बनाई है, उसे पार करना विपक्ष के लिए आसान तो नहीं होगा. पिछले लोगसभा चुनाव में भाजपा को 37.7 फीसदी मत मिलें थे. लिहाजा, गैर बीजेपी दलों को सिर्फ एकजुटता से ही दिल्ली की सत्ता मिल जायेगी, यह खूबसूरत ख्वाब ही दिखता है. क्योंकि, सिर्फ अंकगणित,रणनीति और एकजुटता से चुनाव नहीं जीते जाते, वोटर्स के साथ नेताओं के रिश्ते कैसे हैं. यह भी मायने रखता है.
रिपोर्ट-शिवपूजन सिंह
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