रांची(RANCHI)- कल तक आमने सामने के मैदान में झामुमो के सामने पस्त नजर आने वाली भाजपा आज कल काफी उत्साहित नजर आ रही है, झारखंड भाजपा के अन्दर एक नई उर्जा का संचार होता दिख रहा है, सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति को अपने हिन्दूत्व वाली एजेंडे के बरअक़्स विभाजनकारी और हिन्दूद्रोही बताने वाली भाजपा इन दिनों टाईगर जयराम के कसीदे पढ़ता नजर आ रहा है.
जयराम महतो में भाजपा को नजर आता है ओवैसी का चेहरा
यहां बता दें कि कभी आदिवासी-मूलवासी मुद्दों और हितों की लड़ाई का दंभ भरने वाले छात्र नेता जयराम महतो ने अब अपनी सियासी पारी की घोषणा कर दी है. जयराम महतो ने झारखंड की राजनीति में कोहराम मचाने का एलान कर दिया है और जयराम की इसी घोषणा के साथ ही भाजपा की बाहें खिली नजर आने लगी है. झारखंड की वह सत्ता जो तमाम कोशिशों के बावजूद भी भाजपा से दूर खड़ी नजर आ रही थी, उसकी दूरियां अब सिमटती नजर आने लगी है. जयराम के सहारे उसकी पुनर्वापसी का मार्ग प्रशस्त होता नजर आने लगा है.
झामुमो के आधार मतों को विभाजित करने की साजिश
दरअसल भाजपा का आकलन है कि सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति का भाजपा के चुनावी एजेंडे से दूर दूर का कोई रिश्ता नहीं है, यह तो झामुमो का घोषित चुनावी एजेंडा रहा है, जयराम महतो जब चुनावी अखाड़े में इन मुद्दों की बात करेंगे, इन मुद्दों के इर्द-गिर्द चुनावी शंखनाद करेंगे, तो वह मूल रुप से झामुमो के आधार मतों को ही विभाजित करेंगे, जिसका साफ चुनावी लाभ भाजपा मिलना तय है.
आदिवासी-मूलवासी मतों को विभाजित करने का भाजपाई प्रयोग
तब क्या यह माना जाय कि भाजपा जयराम को आगे कर झारखंड की राजनीति में बड़ा उलटफेर करना चाहती है. जैसा कि झामुमो और कई अन्य राजनीतिक दलों का दावा है कि दरअसल झारखंड की राजनीति में जयराम की भूमिका असादुदीन ओवैसी की होने वाली है, उनका दावा है कि जिस प्रकार भाजपा की फंडिंग से असादुदीन ओवैसी सारे देश में अल्पसंख्यक इलाकों में चुनावी बिगल फूंक कर मुस्लिम मतों को विभाजित कर कांग्रेस और दूसरे धर्मनिरपेक्ष दलों को नुकसान पहुंचाते हैं, असादुदीन ओवैसी की उसी भूमिका का निर्वाह झारखंड की राजनीति में टाइगर जयराम महतो करने वाले है. असादुदीन ओवैसी मुस्लिम मतों को विभाजित कर भाजपा को लाभ पहुंचाते हैं, तो जयराम महतो की जिम्मेवारी आदिवासी-मूलवासी मतों को विभाजित करने की होगी.
पर्दे के पीछे खड़ी है भाजपा
विश्लेषकों का दावा है कि जयराम महतो जितने जोर शोर से सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति को लेकर आक्रामक होंगे, उसका नुकसान सिर्फ और सिर्फ झामुमो को ही होगा. और भाजपा की यही रणनीति है. दावा यह भी किया जा रहा है कि जिस प्रकार से जयराम महतो ने 2024 में लोकसभा की सभी 14 सीटों और विधान सभा की सभी सीटों पर चुनावी जंग छेडऩे का एलान किया है, वह कई सवाल खड़े कर रहा हैं. वर्तमान राजनीति हालात में चुनाव लड़ना कोई बच्चों का खेल नहीं है, इसके लिए अपार संसाधनों की जरुरत होती है, उनका दावा है कि जयराम महतो महज एक मोहरा हैं, पर्दे के पीछे भाजपा खड़ी है.
बाबूलाल का प्रयोग असफल, अब जयराम का भविष्य दांव पर लगा चुकी है भाजपा
जिस प्रकार 2019 विधान सभा चुनाव में भाजपा के ही हेलिकॉप्टर पर सवार होकर कर बाबूलाल मरांडी भाजपा के खिलाफ चुनावी मैदान में अपना दम-खम दिखला रहे थें, आदिवासी-मूलवासियों की बात कर इन मतों को विभाजित करने की रणनीति को पूरी शिद्दत के साथ अमलीजामा पहना रहे थें, उसी प्रयोग को भाजपा एक बार फिर से दुहराना चाहती, लेकिन इस बार उसका चेहरा बदल गया है, 2019 में चेहरा बाबूलाल थें तो 2024 में टाईगर जयराम.
तमाम दुष्चक्रों के बावजूद भी भाजपा को गंवानी पड़ी थी अपनी सत्ता
हालांकि बाबूलाल को सामने रख किया गया वह प्रयोग असफल रहा था, तमाम दुष्चक्रों के बावजूद भी भाजपा को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी थी, देखना होगा कि जयराम महतो भाजपा की उस अग्नि परीक्षा में सफल होते हैं या नहीं. या फिर से बाबूलाल मरांडी की तरह ही यह प्रयोग भी असफल होने वाला है, हालांकि बाबूलाल मरांडी और जयराम महतो में एक बड़ा अन्तर है, वाचालता और लोकप्रियता के पैमाने पर जयराम महतो का कहीं कोई मुकाबला नहीं है. आप पसंद करें या नफरत, लेकिन सच्चाई है कि झारखंड में जयराम महतो का काफी लम्बी फैन फोलिंगिंग है.
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