टीएनपीडेस्क(TNPDESK): 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है. इससे पहले कांग्रेस एक मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश में है. इस कोशिश को आगे बढ़ाते हुए एक गठबंधन बनाया भी गया. जिसका नाम I.N.D.I.A दिया गया. शुरू में बड़े ही शोर के साथ इसकी नींव रखी गई.सभी क्षेत्रीय दल के साथ कई बैठक हुई. बैठक में बड़े बड़े दावे किये गए. बात सीट शेयरिंग तक गई. लेकिन यह सब बात तीन राज्यों के चुनाव में कही दिखाई नहीं दी. गठबंधन के नेता ही एक दूसरे पर हमलावर दिखे और एक दूसरे पर शब्दों के बान छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी.जब चुनाव में हार मिली तो अब फिर से बुधवार को इंडिया की बैठक बुलाई गई है.
नीतीश ने भी बनाया दूरी
लेकिन इस बैठक से कई क्षेत्रीय दलों के बड़े नेता ने किनारा कर लिया है.अगर बात बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की करें तो बैठक में शामिल नहीं होंगे.शुरू में यही नीतीश कुमार सभी को एकजुट करने की मुहिम लेकर सभी के चौखट पर पहुंच रहे थे. लेकिन अब जिस तरह से बैठक से किनारा कर दिया यह गठबंधन को एक खतरे का संकेत दे रहा है. नीतीश कुमार की नाराजजी की भी खबर खूब सुर्खियों में थी. हालांकि नाराजगी को हर बार नीतीश कुमार ने खारिज कर कहा कि सब ठीक है मीडिया तो ऐसे ही लिखती रहती है.
हेमंत सोरेन व्यस्तता का दिया हवाला
इस बैठक से दूरी बनाने वाले में नीतीश कुमार अकेले नहीं है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए बैठक में भाग लेने दिल्ली नहीं जा रहे है. हेमंत सोरेन सरकार का राज्य में आपकी योजना आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम चला रही है.इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री सभी जिलों में सभा कर परिसंपत्ति बाटने में लगे है.लेकिन यह व्यस्तता सिर्फ कारण नहीं है. सीएम हेमंत के अंदर भी नाराजगी हो सकती है.हाल में हुए छत्तीसगढ़ चुनाव में हेमंत सोरेन को दरकिनार करना भी एक कारण हो सकता है.
छत्तीसगढ़ में बाबूलाल का जलवा और हेमंत को बुलावा भी नहीं
दरअसल छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय करीब 32 प्रतिशत है. जो किसी को सत्ता में लाने के लिए काफी सहयोगी साबित होती है.इसका फायदा भाजपा ने छत्तीसगढ़ में उठाया है छत्तीसगढ़ से सटे झारखंड से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को आदिवासी विधानसभा क्षेत्रों की कमान दिया. जिसमें हद तक वह कामयाब हुए,लेकिन कांग्रेस ने किसी भी सहयोगी दल के किसी आदिवासी नेता को चुनाव प्रचार के लिए नहीं बुलाया.अगर हेमंत छत्तीसगढ़ के चुनावी रण में होते तो परिणाम कुछ और हो सकता था.शायद यह नाराजगी हेमंत सोरेन को खली होगी.
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