रांची(RANCHI): झारखंड के गुरु जी यानी शिबू सोरेन आज 11जनवरी को 81साल के हो गए. अपने इस 81 साल के सफर में शिबू सोरेन कई उतार चढ़ाव देखा. लेकिन एक बात साफ़ है अगर झारखंड को इस नाम के अलावा शिबू सोरेन कहे तो गलत नहीं होगा. एक ऐसा नेता जिसके चेहरे को पढ़े तो पूरे राज्य की कहानी और तस्वीर दिख जाएगी. किस हाल से राज्य का गठन कर कहा पहुँचाया है.
राज्य की लड़ाई के अगुआ नेता आंदोलन के दौरान ही शिव चरण मांझी से गुरूजी यानी शिबू सोरेन बन गए. बात काफी पुरानी है. देश आज़ाद हो गया था. लेकिन आदिवासी पर साहूकार और सूदखोरों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था.इस दौरान शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन ने शुरू में इसके खिलाफ आवाज़ उठाई. लेकिन 1957 में उनकी हत्या कर दी गई. बताया जाता है कि जब वह ट्रेन पकड़ने के लिए घर(रामगढ़ नेमरा)से निकले तो रास्ते में उन्हें मार दिया गया. इस हत्या की शक की सुई सूदखोरों और साहूकारों पर गई. लोगों में सोबरन सोरेन की मौत का गुस्सा था.
बताया जाता है कि जब हत्या हुई थी तब शिबू सोरेन स्कूल में थे.जब उन्हें पिता की हत्या की जानकारी मिली तो वापस घर लौटे.इस वक्त शिबू सोरेन की उम्र करीब 14साल की थी. पिता के अंतिम संस्कार के बाद सूदख़ोर और साहूकारों के खिलाफ लोगों को एकजुट करना शुरू कर दिया.
शिबू सोरेन ने धनकटनी आंदोलन की शुरुआत की
बाद में एक धनकटनी आंदोलन की शुरुआत की. इसमें महिलाएं हसुआ लेकर खेत में जाती तो खेत के बाहर पुरुष तीर धनुष लेकर पहरा देते थे.किसी भी कीमत पर धान एक मुट्ठी भी किसी को देना नहीं चाहते थे. यह सब देख सूदख़ोर और अन्य लोगों के आंख में शिबू सोरेन गड़ने लगे. लेकिन इस आंदोलन ने उन्हें एक नेता बना दिया. बाद में शिबू सोरेन अलग राज्य को लेकर आवाज़ उठाते रहे. इस दौरान कई ऐसी घटना घटी जिससे शिबू सोरेन की गिरफ़्तारी तक हो गई. लेकिन आंदोलन की मशाल को शिबू सोरेने ने जलाये रखा.
कहा जाता है कि आंदोलन के समय शिबू सोरेन का पता जंगल हो गया था .कई लोग शिबू सोरेन को प्रेत भी बताने लगे लगे थे. कभी पारसनाथ के जंगल में दिखते तो कभी संथाल परगना में गुरु जी पैदल ही अंदर ही अंदर अपना ठिकाना बदलते रहते. इस बीच हर जगह गुरूजी ही दिखाई देते थे.
शिबू सोरेन कैसे बने आदिवासी मूलवासी की पहचान
शिबू सोरेन आदिवासी मूलवासी की एक पहचान बन गए. जब आंदोलन के समय जेल गए तो इनकी मुलाकात बिनोद बिहारी महतो और AK roy से भी हुई. सभी की विचार धरा एक जैसी थी. जब जेल से बहार आये तो राजनितिक दल के गठन करने का निर्णय लिया. जिससे अलग राज्य की लड़ाई को मज़बूती से लड़ा जा सके. इस दौरान धनबाद में 04 फ़रवरी 1977 को झामुमो का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो बने और महासचिव शिबू सोरेन को चुना गया. भले JMM के अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो बने लेकिन अपना नेता आदिवासियों ने शिबू सोरेन को ही माना. बाद में एक नाम और जुड़ा दिशोम गुरु का .
पूरे झारखण्ड में गुरूजी एक ऐसी सख्सियत बन गए थे.जिससे सभी को शिबू सोरेन में एक उम्मीद दिखने लगी. इस बीच ही शिबू सोरेन को लोग गुरूजी के नाम से बोलने लगे इसके बाद फिर दिशोम गुरु यानी देश का गुरु .दिशोम गुरु शिबू सोरेन का पैर छूने के लिए लोग आज भी सोचते है और जिसे आशीर्वाद मिल गया वह खुद के जीवन को सफल मानता है. शिबू सोरेन के आंदोलन और सफर में अपने आप में पूरा झारखण्ड सिमटा हुआ है.ऐसा कोई नेता नहीं है जिसे लोग भगवान के बराबर मानते हो.भले शिबू सोरेन एक बेहतर राजनीतिज्ञ नहीं बन सके लेकिन एक ऐसे नेता बने जिसे हर कोई अपना गुरु मानता है.
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