गोड्डा(GODDA): नेताओं यदि अपनी सारी बातों पर अमल करने लगे, तो देश की जनता का भला हो जायेगा, लेकिन ऐसा होता ही नहीं है .वोट लेने को नेता जोश में काफी कुछ कह जाते तो हैं ,लेकिन जब कहे अनुसार उसपर खरा उतर नहीं पाते तो झूठी दलील देकर अपनी बातों को घुमाने का प्रयास करते हैं .ऐसा ही एक मामला गोड्डा में इस वक्त ट्रेंड कर रहा है .चुनाव पूर्व इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप यादव का बयान काफी चर्चा में है ,जिसमे उन्होंने कहा था कि यदि इस बार चुनाव नहीं जीते तो राजनीति से सन्यास ले लूंगा .अब अपनी कही बातों से बदलते नजर आ रहे हैं .
जन बल पर धनबल भारी पड़ा ,सेवा पर मेवा भी रहा भारी :प्रदीप यादव
मंगलवार को चुनाव के नतीजे आये जो इंडिया गठबंधन के विपरीत थे .इस को लेकर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी प्रदीप यादव ,झामुमो नेता सह केन्द्रीय समिति सदस्य राजेश मंडल ,राजद के प्रदेश महासचिव सह पूर्व विधायक संजय यादव द्वारा संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता बुलाई .प्रेस वार्ता में तीनो ही नेताओं ने कहा कि मतदान से तीन दिन पूर्व तक सभी कुछ सही चल रहा था ,जनता हमारे पक्ष में अडिग थी और अचानक से हवा ने रुख बदला, जिससे परिणाम उलट गए इसके साफ मायने हैं कि जनबल पर धनबल और सेवा पर मेवा भारी पड़ गया .मतदाताओं को पैसे के बल पर खरीद लिया गया ,जहां हम पिछड़ गए.इस सारे प्रक्रिया में हम अगले बार से सचेत रहेंगे .
संन्यास लेने की बात पर बदल गए प्रदीप बोले पहले सांसद अपनी कही हुई पर अमल करें
प्रेस वार्ता के दौरान कांग्रेस प्रत्यासी प्रदीप यादव से जब पत्रकारों ने सवाल किया कि आपने कहा था कि इस बार टिकट लेकर आने के बाद कांग्रेस कार्यालय में कहा था कि इस बार अगर नही जीत सके तो राजनीति को यहीं विराम दे दूंगा यहां तक कि विधानसभा पोडैयाहाट भी नहीं लडूंगा .जवाब में उन्होंने बात को घुमाते हुए कहा कि पहले निशिकांत दुबे अपने बातों पर कायम रहकर दिखाएं फिर हम सोचेंगे .प्रदीप के जवाब के बीच में ही झामुमो नेता राजेश मंडल कूद गए और उन्होंने प्रदीप का बचाव करते हुए कह दिया कि उन्होंने कहा था प्रचार नहीं करेंगे ,कहा था नौ लाख पार करेंगे किये क्या ?
अपनी ही कही बात पर बचाव करते दिख रहे है प्रदीप यादव
बहरहाल ,नेताओं को विपक्ष ने क्या कहा ये बातें तो याद रह जाती हैं और उसी को मुद्दा बनाते हैं लेकिन अपने क्या कुछ बोले थे ये उन्हें याद नहीं रहता और उसको ढंकने का प्रयास करते रहते हैं .इसी लिए कहा गया है कि कमान से निकला हुआ तीर और जुबान से निकले शब्द कभी वापस नही आते .इसलिए जन प्रतिनिधियों को सोच समझकर बयान देने की जरूरत है ताकि बाद में शर्मिंदगी महसूस न हो.
रिपोर्ट: अजित सिंह
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