रांची(RANCHI): झारखंड का एक मात्र TIGER RESERVE अब सिर्फ नाम का टाइगर रिज़र्व रह गया है. यहां कभी बाघ नहीं दिखते हैं, बाघ नहीं दिखने से पर्यटक भी अब नहीं पहुंच रहे हैं. कभी विदेशी सैलानियों से गुलजार रहता था PTI अब अपने राज्य के लोग भी यहां आने से परहेज कर रहे हैं. लेकिन इसपर कोई भी सरकार का ध्यान नहीं गया. जिस टाइगर रिज़र्व में कभी 50 से अधिक बाघ हुआ करते थे.आखिर कहां गए क्या हो गया. सिर्फ बाघ ही नहीं कभी यहां 10 हजार से अधिक हिरण थी अब मात्र तीन हजार बची है.आखिर जानवर बढ़ने के बजाए PTI में कम कैसे हो रहे हैं. यह सवाल उठ रहा है,क्या PTI पर जानवर तस्करों की नज़र पड़ गयी या फिर कुछ और.
एक हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है PTR
पलामू टाइगर रिज़र्व देश के उन 7 टाइगर रिज़र्व में शामिल है. जहां विदेशों से सैलानी हर साल पहुंचते हैं. लेकिन सभी टाइगर रिज़र्व और विकसित हो रहा है और PTI बदहाल. हर जगह जानवर बढ़ रहे हैं और यहां घट गए. वो भी इतना कि पच्चास से अब 0 के कगार पर है. यहां पिछेल एक वर्षों से बाघ नहीं दिखा है. बता दें कि PTI एक हजार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. जब PTR की बिहार सरकार ने घोषणा की थी. उस समय यहां 50 से अधिक बाघ थे. वहीं अब एक बाघ होने का दावा किया जाता है. जो भी सैलानी यहां होते हैं उन्हें जंगली हाथी,बंदर और हिरण ही दिख पाता है.जबकि पहले आराम से जंगल में बाघ दिख जाते थे. बाघ की कमी के पीछे कभी भी यहाँ के अधिकारियों ने चिंता नहीं की. आखिर बाघों की संख्या में कमी कैसे आ रही है. बाघ के अलावा एक सर्वे में बताया गया है कि अब यहां तीन हज़ार हिरण बचे हैं. जबकि पहले दस हजार से अधिक थे.
क्या तस्कर की नज़र पड़ने से कम हुए बाघ और हिरण
किसी भी जंगल में जानवरों की देख रेख के लिए इतने पैसे खर्च होंगे तो वह और बढ़ेगा. लेकिन यहां इसके उलट हो रहा है पैसे तो खूब खर्च किये जा रहे हैं. सरकार भी PTI के नाम पर करोड़ो हर साल खर्च करती है. बावजूद इसके जानवरों का संरक्षण नहीं हो सका. बाघ का तो कहना मुश्किल है कि कम क्यों हो गए लेकिन कहीं ना कहीं हिरण के खत्म होने पर बड़ा सवाल उठ रहा है. कहीं अधिकारी तस्करों से साठ गांठ कर हिरण की तस्करी तो नहीं कर दी गई. इसके अलावा कम होते बाघ पर कई पर्यावरण विद ने सवाल उठाया है. लेकिन ना तो सरकार ने इसपर कभी रुचि दिखाया और ना ही अधिकारियों ने,यहीं कारण है कि PTI बदहाल है.
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद 2005 में भी यहां 38 बाघ थे,लेकिन ठीक इसके अगले साल 2006 में बाघ की संख्या कम होकर 17 पर आ गयी. लेकिन इसपर भी किसी ने चिंतन नहीं किया. आखिर एक वर्ष में ही इतने बाघ कम कैसे हो गए. फिर 2009 में गितनी हुई तब सिर्फ आठ बाघ की पुष्टि हुई. वहीं 2010 में छह,2014 में तीन और आखिर में 2018 में एक भी बाघ मौजूद होने के कोई प्रमाण नहीं मिले. लेकिन वर्ष 2021 में बाघ मौजूद होने के साक्ष्य मिले. PTI के अधिकारियों को जंगल से बाघ का मल मिला,जिसकी जांच के लिए देहरादून भेजा गया. इसमें जांच में स्पष्ट हुआ कि एक बाघ मौजूद है.
जानवरों की कम होती संख्या पर PTI अधिकारी बताते है कि टाइगर रिज़र्व के एरिया में पुलिस पिकेट बताया जा रहा है. कई जगहों पर पुलिस कैम्प मौजूद है. जिसमें बीच बीच में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान गोली बारी होती रहती है. इस कारण जानवर दूसरे जंगलों की ओर रुख कर रहे हैं.
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