टीएनप डेस्क(Tnp desk):-मत और मतदान की चर्चा चुनाव के दौरान खूब होती है और होते रहेगी. लेकिन, सियासत के इस खेल में मतदाताओं में अपनी पैठ बनाने और लुभाने के लिए तरह-तरह की तोहमते सियासतदान लगाते रहते हैं. क्योंकि, लोकतंत्र का असली ताकत तो आम आवाम है. जिसकी इजाजत के बिना कोई सत्तासीन नहीं हो सकता. चुनाव आयोग की निगेहबानी में ही चुनाव आयोजित की जाती है. इनके आगे किसी की नहीं चलती. सियासी बाते , शिगुफाएं और चर्चे नेता कितने भी गोल-गोल कर ले. लेकिन, चुनाव के दौरान चलती तो इस संस्था की ही है. हालांकि, यह कटु सच्चाई है कि सियासतदान भी चुनाव आयोग पर तोहमते लगाने से बाज नहीं आते. खासकर, चुनाव के दौरान इल्जामों का एक सिलसिला देखने को मिल जाता है.
चुनाव आयोग और बीजेपी पर हमला
उद्धव गुट की शिवसेना से राज्यसभा सांसद और मुखर नेता संजय राउत ने मुखपत्र सामना के अपने साप्ताहिक कॉलम में चुनाव आयोग की खूब फजीहत के साथ खरी-खोटी सुनाई. उनका मानना था कि चुनाव आयोग पिंजरे में बंद तोते की तरह है, जो बीजेपी के इशारे पर काम कर रही है. राउत की आपत्ति भगवा पार्टी से भी हैं. जो लोकतंत्र का गला घोटने पर आमदा है. उन्होंने भाजपा पर वोटर्स को रिश्वत देकर वोट खरीदने का दोष मढ़ा. शिवसेना नेता गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान पर भी आक्षेप लगाने से गुरेज नहीं किया. जब उन्होंने मध्यप्रदेश की एक चुनावी रैली में सत्ता में आने पर सरकार की तरफ से लोगों को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की यात्रा करवाने की बात कही. राउत इस पर इतने भड़के की इसे सीधे तौर पर धार्मिक प्रचार करार दिया. उनका दावा था कि अगर शाह की तरह बयान अगर कांग्रेस का कोई नेता दिया होता, तो ईडी की तरह उसके दरवाजे पर चुनाव आयोग की दस्तक दे देती.
चुनाव आयोग पर आरोपों की बौझार
शिवसेना नेता अपने कॉलम में ये भी लिखते है कि चुनाव आयोग भारतीय जनता पार्टी के लिए काम कर रही है. रिश्वत देकर वोट लेने के कारनामे पर आंखे बंद कर ली है. आयोग उस पिंजरे में बंद तोते की तरह हैं. जो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती. उन्होंने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक और हनिकार ठहराया, जो अब महज दिखावे के सिवा कुछ नही रह गया है.
याद आए टीएन शेषन
पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषण को भी याद संजय राउत ने अपने लेख में किया . उनका मानना था कि शेषन से सीखने की जरुरत आयोग को थी. शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान ये दिखा दिया था कि चुनाव आयोग को दहाड़ने की जरुरत नहीं है, बल्कि सिर्फ पूंछ हिलाने से ही सभी राजनीतिक दल में डर पैदा हो जाएगा.
आपको बता दें उद्धव ठाकरे वाली पार्टी शिवसेना ने अमित शाह के खिलाफ चुनाव आयोग को पत्र भी लिखा है. जिसमे तंज कसते हुए पूछा गया है कि क्या चुनाव आयोग ने आचार संहिता में ढील दी है. इस पत्र में आयोग पर बीजेपी के पक्ष में दोहरे मापदंड का अपनाने का इल्जाम लगा है.
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