रांची (RANCHI): बीते दिनों कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कोर्ट में जजों की नियुक्ति में हो रही देरी पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा कि लोग जजों को नियुक्ति के लिए बने कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं. जज आधा समय नियुक्तियों की पेचिदगियों में ही व्यस्त रहते हैं, जिसकी वजह से न्याय देने की उनकी जो मुख्य जिम्मेदारी है उस पर असर पड़ता है. बता दें पहले भी जजों की नियुक्ति कोलेकर केंद्र सरकार और SC में खींचतान हो चुकी है. अब तक सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति अपने पारंपरिक कॉलेजियम सिस्टम से ही होती आई है. आज हम अपको बताएंगे की क्या है कॉलेजियम सिस्टम क्यों सरकार इस सिस्टम पर चाहती है बदलाव. क्यों सुप्रीम कोर्ट के जज सरकार के इस पहल से हो रहे हैं असहमत . लेकिन उससे पहले ये जान लें कि केन्द्रीय कानून मंत्री ने जजों की नियुक्ति पर जो बयान दिया उसे लेकर जजों ने भी सरकार को हिदायत दे दी और कहा की समाज का हर आदमी अगर यह तय करने लगे की किस कानून को लागू करना है और किसे नहीं, तो इससे व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जायेगी. बता दें सरकार और न्यायपालिका के बीच अबतक शीत युद्ध चल रहा था पर अब इस बयान के बाद विधायिका और न्यायपालिका दोनों आमने सामने आ गए हैं. अदालत ने गुरुवार को कहा कि संसद द्वारा बनाये गये कानून से भी समाज का हर वर्ग सहमत नहीं होता है. तो क्या अदालत इसे लागू करने से रोक सकता है? जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि समाज का हर आदमी अगर यह तय करने लगे की किस कानून को लागू करना है और किसे नहीं, तो इससे व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जायेगी. कॉलेजियम सिस्टम देश का कानून है. सभी को इसका पालन करना होगा. समाज के कुछ लोगों के विरोध के कारण इसे कानून नहीं मानना सही नहीं है. अदालत ने अटॉर्नी जनरल को कहा कि संविधान पीठ के फैसले के बाद कॉलेजियम सिस्टम बना है और इसका पालन करना ही होगा. बता दें कॉलेजियम सिस्टम का भारत के संविधान में कोई जिक्र नहीं है. यह सिस्टम 28 अक्टूबर 1998 को 3 जजों के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के जरिए प्रभाव में आया था.
जानिए कॉलेजियम में कौन होते हैं इसके सदस्य
कॉलेजियम सिस्टम में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों का एक समूह है जो सुप्रीम कोर्ट और है कोर्ट में जजों की नियुक्ति और तबादले की सिफारिश करता है. कॉलेजियम की सिफारिश दूसरी बार भेजने पर सरकार के लिए मानना जरूरी होता है. कॉलेजियम की स्थापना सुप्रीम कोर्ट के 5 सबसे सीनियर जजों से मिलकर की जाती है. वर्तमान में 5 सबसे सीनियर जजो के नाम इस प्रकार हैं;
1. माननीय श्री न्यायमूर्ति रंजन गोगोई (CJI)
2. माननीय श्री न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबड़े
3. माननीय श्री न्यायमूर्ति एन.वी. रमना
4. माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा
5. माननीय श्री न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन
सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है. इसके अलावा उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्नुत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है.
जानिए कैसे होती है जजों की नियुक्ति क्या है कॉलेजियम सिस्टम
कॉलेजियम वकीलों या जजों के नाम की सिफारिस केंद्र सरकार को भेजती है. इसी तरह केंद्र भी अपने कुछ प्रस्तावित नाम कॉलेजियम को भेजती है. केंद्र के पास कॉलेजियम से आने वाले नामों की जांच/आपत्तियों की छानबीन की जाती है और रिपोर्ट वापस कॉलेजियम को भेजी जाती है, सरकार इसमें कुछ नाम अपनी ओर से सुझाती है. कॉलेजियम, केंद्र द्वारा सुझाव गए नए नामों और कॉलेजियम के नामों पर केंद्र की आपत्तियों पर विचार करके फाइल दुबारा केंद्र के पास भेजती है. इस तरह नामों को एक-दूसरे के पास भेजने का यह क्रम जारी रहता है और देश में मुकदमों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जाती है. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि जब कॉलेजियम किसी वकील या जज का नाम केंद्र सरकार के पास “दुबारा” भेजती है तो केंद्र को उस नाम को स्वीकार करना ही पड़ता है. लेकिन ‘कब तक’ स्वीकार करना है इसकी कोई समय सीमा नही है.
अटकी है जजों की नियुक्ति, केस का लग रहा भंडार
ज्ञातव्य है कि भारत के 25 हाईकोर्ट में 395 और सुप्रीम कोर्ट में जजों के 4 पद खाली है. न्यायालयों की नियुक्ति के लिए 146 नाम पिछले 2 साल से सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच मंजूरी ना मिलने के कारण अटके हुए हैं. इन नामों में 36 नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास लंबित है जबकि 110 नामों पर केंद्र सरकार की मंजूरी मिलनी बाकी है. बता दें देश में हाईकोर्ट सिविल कोर्ट 4.60 करोड़ से अधिक मामले पेंडिंग हैं और जजों के 5,596 पद खाली हैं.
कॉंग्रेस ने भी की थी बदलाव की कोशिश
यूपीए सरकार ने कॉलेजियम सिस्टम की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) कानून को असंवैधानिक करार दे दिया था. इस प्रकार वर्तमान में भी जजों की नियुक्ति और तबादलों का निर्णय सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम ही करता है. NJAC का गठन 6 सदस्यों की सहायता से किया जाना था जिसका प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को बनाया जाना था इसमें सुप्रीम कोर्ट के 2 वरिष्ठ जजों, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ीं 2 जानी-मानी हस्तियों को सदस्य के रूप में शामिल करने की बात थी. NJAC में जिन 2 हस्तियों को शामिल किए जाने की बात कही गई थी, उनका चुनाव सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता वाली कमिटी करती. इसी पर सुप्रीम कोर्ट को सबसे ज्यादा आपत्ति थी.
कॉलेजियम से वंशवाद को मिल रहा है बढ़ावा
देश की मौजूदा कॉलेजियम व्यवस्था ‘राजा का बेटा राजा’ और बनाने की तर्ज पर “जज का बेटा जज” बनाने की जिद करके बैठी है. भले ही इन जजों से ज्यादा काबिल जज न्यायालयों में मौजूद हों. यह प्रथा भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश के लिए स्वास्थ्यकर नहीं है. कॉलेजियम सिस्टम का कोई संवैधानिक दर्जा नहीं . हाल ही में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करते हुए कहा कि न्यायाधीश योग्यता को दरकिनार कर अपने पसंद के लोगों की नियुक्ति या पदोन्नति की सिफारिश करते हैं. बता दें इस सिस्टम ने एक ऐसी प्रणाली का निर्माण किया है जहाँ कुछ न्यायाधीश पूर्ण गोपनीय तरीके से अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं. इसके अलावा, वे किसी भी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं जिसके कारण सही उम्मीदवार की अनदेखी करते हुए गलत उम्मीदवार का चयन किया जा सकता है. पक्षपात और भाई-भतीजावाद की संभावना कॉलेजियम प्रणाली CJI पद के उम्मीदवार के परीक्षण हेतु कोई विशिष्ट मानदंड प्रदान नहीं करती है, जिसके कारण यह पक्षपात एवं भाई-भतीजावाद की व्यापक संभावना की ओर ले जाती है. यह न्यायिक प्रणाली की गैर-पारदर्शिता को जन्म देती है, जो देश में विधि एवं व्यवस्था के विनियमन के लिये अत्यंत हानिकारक है. नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत के विरुद्ध इस प्रणाली में नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत का उल्लंघन होता है. भारत में व्यवस्था के तीनों अंग-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका यूँ तो अंशतः स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं लेकिन वे किसी भी अंग की अत्यधिक शक्तियों पर नियंत्रण के साथ ही संतुलन भी बनाए रखते हैं. कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका को अपार शक्ति प्रदान करती है, जो नियंत्रण का बहुत कम अवसर देती है और दुरुपयोग का खतरा उत्पन्न करती है.
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