टीएनपी डेस्क (TND DESK):- झारखंड की सियासत में उठा-पटक औऱ धूंप और छांव का सिलसिला सा रहता है. वक्त की करवटों के साथ-साथ राजनीति का पारा भी चढ़ता-उतरता रहता है. याद कीजिए खनन पट्टा लीज मामले में, जब चुनाव आय़ोग का फैसला खिलाफ आय़ा था , तो उस वक्त हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने तक की नौबत आन पड़ी थी. लेकिन, तात्कालीन राज्यपाल रमेश बेस ने चुनाव आयोग के दी गई चिट्ठी ही नहीं खोली थी. जिसमे क्या कुछ था, यह आजतक मालूम ही नहीं पड़ा. रमेश बेस झारखंड छोड़ चले गए, उनकी जगह राज्यपाल सीपी राधाकृष्णण आएं है. उनपर भी जेएमएम तोहमतें लगा रही है. जिलों में लगातार उनके दौरे पर सवाल उठा रही हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा का आरोप है कि राज्यपाल भाजपा के इशारे में काम रही है. वह मोदी सरकार के 9 साल के कामों की बखान कर रही है. जबकि हेमंत सरकार के काम पर कुछ भी नहीं बोल रहें हैं. जबकि, राज्यपाल एक संवैधानिक पद है. झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रविन्द्र महतो के बयान से तो टकराव ही बढ़ गया. बीजीपे ने तो उनके बयान को लेकर आगबबूला हो गयी औऱ एक ज्ञापन राज्यपाल को सौंपा.
राज्यपाल पर क्या बोले विधानसभा अध्यक्ष ?
झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रविन्द्रनाथ महतो ने राज्यपाल पर उंगली उठाकर टकराव बढ़ा दिया. उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा कि, राज्यपाल ने स्थानीय नीति और नियोजन नीति जैसे मसलों पर राज्य सरकार का साथ नहीं दिया. सरना धर्म कोड का बिल भी लौटा दिया. राजभवन भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है. उनके बयान से बीजीपी बिफर गई, उसने विधानसभा अध्यक्ष के बयान को अंसवैधानिक करार दिया और रविन्द्र महतो के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. बीजेपी के प्रतिनिधिमंल ने राज्यपाल से मिलकर ज्ञापन भी दिया है.
भाजपा ने रविन्द्रनाथ महतो को घेरा
बीजेपी ने राज्यपाल को सौंपी लिखित शिकायत में अखबारों के लेख भी लगाए. जिसमें लिखा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और सरकार में संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अक्सर असंसदीय और असंवैधानिक बयान दे रहे हैं. जो की किसी भी लहजे से सही नहीं है. यह पद की मर्यादा और गरीमा के खिलाफ जा रहा है. राज्य विधानसभा अध्यक्ष का पद निष्पक्ष है, जो पार्टी -पॉलिटिक्स से परे होता है. इसके बावजूद वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष मर्यादाओं को मान नहीं रहें हैं. किसी भी विधेयक पर सरकार से विधि सम्मत जानकारी प्राप्त करना, राज्य हित में विधि सम्मत निर्णय लेना राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है. बीजेपी ने ज्ञापन में ये भी लिखा कि संवैधानिक कार्रवाई को दलीय चश्मे से देखना और इसका झूठाप्रचार करना संविधान की अवहेलना है.
झारखंड में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच लगातार टकराव होते ही जा रहें है . यहां सवाल है कि सभी के अपने-अपने दायरे संविधान में दिए गए हैं. लेकिन, उसे लांघा क्यों जा रहा है ?, क्यों संवैधानिक पद की गरीमा को आहत किया जा रहा है?. इससे किसकी फजीहत औऱ भद्द पिट रही है. लाजामी है कि ये अच्छे संकेत नहीं हैं, औऱ गलत संदेश भी जा रहा है. जिसे जनता जनर्दान अच्छे से जानती और समझती है.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह
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