टीएनपी डेस्क(TNP DESK): देश के कुछ राज्यों में आपने आदिवासी-मूलवासी शब्दावलियों का प्रयोग होते हुए देखा होगा. इन शब्दावलियों का प्रयोग कर कुछ सामाजिक समूहों के द्वारा अपने अधिकारों का संरक्षण करने की मांग सुनी होगी. आदिवासी-मूलवासी के नाम पर कई सामाजिक संगठनों का नामांकरण सुना होगा. इसी नाम से आपने जल जगंल और जमीन की लड़ाई की बात भी सुनी होगी.
लेकिन तब क्या कहा जाये, जब यही शब्दावली आपको भारत से 11,462 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कनाडा में सुनने को मिले. दरअसल कनाडा में भी आदिवासी-मूलवासी की संकल्पना है, वहां मूलवासी उन सामाजिक समूहों को कहा जाता है जो कनाडा में अग्रेंजों के बसने के पहले रह रहे थें. जिनको बेदखल कर अंग्रेज वहां शासन में आये थें. अब कनाडा में इन्ही आदिवासी-मूलवासियों के 171 बच्चों की लाश मिली है. मूलवासियों ने रडार सिस्टम का प्रयोग कर इन लाशों को खोज निकाला है, बच्चों की ये लाशे आन्टारियो के इलाके से मिली है.
चर्च के द्वारा आदिवासी मूलवासी बच्चों के लिए किया जाता था बोर्डिंग स्कूल का संचालन
बताया जाता है कि जिस भवन के पास यह लाश मिली है, वहां पहले चर्च के द्वारा बोर्डिंग स्कूल संचालन किया जाता था, बोर्डिंग स्कूल में बच्चों को रखने का उद्देश्य इन बच्चों को पढ़ाना-लिखाना और सभ्य बनाना था, अंग्रेजों की दृष्टि में ये आदिवासी-मूलवासी अनपढ़ और गंवार थें. इनमें सभ्यता और संस्कार का अभाव था. अंग्रेज मानते थें कि यह उनका सामाजिक दायित्व है कि वह पूरी दुनिया को सभ्य बनायें. उनके अनुसार यही भगवान की इच्छा थी.
वैटिकन सिटी के पोप फ्रांसिस पहले ही मांग चुके माफी
इन बच्चों की लाश देखकर आदिवासी मूलवासी समूह के एक सदस्य चीफ क्रिस स्कीड ने कहा है कि हमें यह याद रखना होगा कि हम जिंदा बच गयें. यहां बता दें कि यह कोई पहली बार नहीं है कि कनाडा में मूलवासियों के बच्चों की लाश मिल रही है. इसको लेकर वैटिकन सिटी के पोप फ्रांसिस पहले ही माफी मांग चुके हैं.
चर्च इन आदिवासी मूलवासियों के बच्चों को सभ्य और सुसंस्कृत बनाना चाहती थी
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 19वीं सदी में कनाडा की सरकारें और चर्च मूल निवासियों के बच्चों के लिए स्कूल चलाती थी, जिसका मकसद इन आदिवासियों को सभ्य बनाना था. दावा किया जाता रहा है कि इन स्कलों की व्यवस्था काफी खराब थी, इन बच्चों को बड़े ही नारकीय परिस्थितियों में रखा जाता था.
बच्चों के साथ यौन हिंसा और बर्बरता के सबूत
जिसके कारण इन स्कूलों में हजारों बच्चों की मौत हुई. वर्ष 2022 में फ्रासिंस ने भी यह माना था कि इन बच्चों के साथ यौन हिंसा होती थी. चर्च के द्वारा संचालित इन स्कूलों में बच्चों की मौत के बाद लाशों को इन्ही स्कूलों में दफन कर दिया जाता था.
आदिवासी-मूलवासी में सामाजिक जागरुकता बढ़ते ही इन स्कूलों का विरोध शुरु हो गया
लेकिन जैसे जैसे आदिवासी मूलवासी सामाजिक समूहों में जागरुकता बढ़ी, इन बोर्डिंग स्कूल का विरोध शुरु हो गया, आखिरकार इन स्कूलों को बंद करने का निर्णय लेना पड़ा. 1840 से 1990 के दशक तक ओटावा के चर्च के द्वारा इन बोर्डिंग का संचालन किया जाता था. वर्ष 2021 में पहली बार कनाडा के एक पुराने बोर्डिंग स्कूल के कैम्पस में 215 बच्चों की लाश मिली थी. जिसके बाद वहां के प्रधानमंत्री के द्वारा इसके लिए माफी की मांग की गयी थी, प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रडो ने इसे इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना बताया था. उस समय भी इन बच्चों की लाश रडार के माध्यम से ही किया गया था.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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