DGP के नियुक्ति पर भाजपा का सवाल! दागी अधिकारी को क्यों मेहरबान है सरकार, अब कोर्ट जाने की तैयारी

रांची (RANCHI) : झारखंड पुलिस महानिदेशक यानी DGP अनुराग गुप्ता फिर सुर्खियों में है. जैसे ही सरकार ने नियमित करने का आदेश जारी किया. इधर भाजपा हमलावर हो गई. DGP नियुक्ति मामले में कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की मांग कर रही है. इस मुद्दे को लेकर बाबूलाल मरांडी ने भाजपा प्रदेश कार्यालय में प्रेस वार्ता किया.
झारखंड सरकार के दो माह पूरे होने को है. सरकार अपने काम को पूरा करने में पीछे है. जो वादा किया गया था उससे उल्ट चल रही है. मंत्रिमंडल से DGP नियुक्ति के प्रस्ताव को पास किया गया. इससे पहले DGP की नियुक्ति को लेकर तीन नाम भेजे जाते थे जिसपर UPSC निर्णय लेता था, लेकिन इस नियम को बदल दिया गया. एक समिति बनाया गया जिसमें एक हाई कोर्ट के जज, लोकसेवा आयोग के अधिकारी, मुख्य सचिव और अन्य कई अधिकारी शमिल हैं. लेकिन अपने नियम से ही उल्टे सरकार में DGP की नियुक्ति की गई. इसमें लोक सेवा आयोग के कोई अधिकारी नहीं रहे. जो डीजी अप्रैल में रिटायर होने वाले थे उन्हें नियमित DGP बना दिया.
कहा कि हेमंत सोरेन की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का भी अवहेलना किया है. सुप्रीम कोर्ट में 2006 में एक निर्देश दिया गया था, कोर्ट ने कहा था कि UPSC पैनल के तहत ही नियुक्ति होगी, लेकिन हेमंत सोरेन ने सभी को नजर अंदाज कर DGP की नियुक्ति की. बाबूलाल ने हेमंत सोरेन से पूछा कि क्या वह खुद को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर समझते है. क्या हेमंत सोरेन एक दागी अधिकारी को बचाने के लिए ऐसा कर रह हैं. जिस अधिकारी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दो साल तक निलंबित रहा फिर विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने उसे हटा दिया. ऐसे में सवाल है कि आखिर बिना किसी कानून के तहत नियामवली बना कर कैसे नियुक्ति कर दी गई.
नियुक्ति कमिटी में रिटायर जज है, गृह सचिव है, मुख्य सचिव है, इसके बावजूद सभी ने कैसे इस नियामवली को सही करार कर दिया. एक अवैध नियामवली के तहत DGP की नियुक्ति की गई है. इस मामले में कोर्ट का भी रुख करेंगे. झारखंड सरकार के गलत निति में झारखण्ड हाई कोर्ट के पूर्व न्यायधीश की भूमिका भी संदिग्ध है. ऐसे में देखें तो झारखण्ड सरकार न्यायपालिका को अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही है.
रिपोर्ट-समीर
4+