टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी हड़बड़ाहत में ज्यादा दिख रही है वह कोई भी जोखिम लेने के फिराक में नहीं है. इसके पीछे वजह है सत्ता, जो किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती. विपक्ष एक होने के लिए पूरी तरह लामबंद होने की जुगत में, ऐड़ी -चोटी एक किए हुए है. लिहाजा भगवा खेमा थोड़ी चिंता में आ गया. उसे मालूम है कि, अगर सभी एक हो गए तो दिल्ली में राज करने का रास्ता थोड़ा मुश्किल होगा. क्योंकि टूटा -फूटा विपक्ष ही पिछली बार विजय की सीढ़ी थी, तब ही अकेले 300 के पार बीजेपी की सीट आई थी. मोदी मैजिक कर्नाटक में नहीं चला, लाजमी है की डर तो भाजपा को होगी ही, क्योंकि इतिहास गवाह है, जब देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज बिखरी और निराश है. तो बीजेपी के भला ऐसे दिन क्यों नहीं आ सकते.
इसी कड़ी में बीजेपी ने आगामी चुनाव को देखते हुए झारखण्ड बीजेपी की कमान बाबूलाल मरांडी को सौंप दी. उसने बड़ी सोच -समझकर और रणनीति के तहत ऐसा किया. क्योंकि बाबूलाल एक आदिवासी चेहरा होने के साथ -साथ जमीन से जुड़ें जनाधार वाले कद्दावर और पुराने नेता है. जिनकी आम आवाम तक गहरी पकड़ और हैसियत रखते हैं. मौज़ूदा बीजेपी के झारखण्ड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश में ऐसी कोई बात नहीं दिखती थी. लिहाजा भाजपा ने बाबूलाल को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठकर साफ-साफ संकेत दे दिया है.
लोकसभा की 14 सीटों पर नजर
बाबूलाल के आने से बीजेपी लोकसभा में 14 सीट जीतने की पुरजोर कोशिश करेगी, क्योंकि पिछली बार दो सीट विपक्ष को गया था. लिहाजा इसबार कोशिश सभी में कमल खिलाने की चाहत रखें हुए हैं. बाबालूल के सहारे ही बीजेपी संताल परगना और कोल्हान में पैठ बनाना चाहती है. इसके साथ ही संताल की 18विधानसभा सीट पर भी मजबूत होने की कवायद में होगी. बीजेपी यह मान के चल रही है कि अगर लोकसभा में माहौल बन जायेंगा,तो विधानसभा में भी इसका असर होगा.
आखिर बाबूलाल क्यों हैं महत्वपूर्ण
झारखंड में हेमंत सोरेन के यूपीए गठबंधन के सामने बाबूलाल जैसे मजबूत आदिवासी चेहरे वाले बड़े नेता को खड़ा किया. बाबूलाल को लंबा राजनीतिक तजुर्बे के साथ-साथ झारखंड की राजनीति के धुरी है. बाबूलाल विश्व हिन्दु परिषद से काम करते हुए वनांचल भाजपा में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभायी. साल 1991 में भाजपा के मुख्यधारा से जुड़े. 90 के दशक में भाजपा के संगठन को खड़ा करने में उनका अहम किरदार था.
बाबूलाल धनवार सीट से विधायक होने के साथ -साथ विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं. लिहजा बीजेपी का आलाकमान उनकी अहमियत और सियासत को कैसे साधा जाए, इस खूबी को उनमें बखूबी जानता है . उसे मालूम हैं की झारखण्ड में उनके कद का नेता बीजेपी में नहीं हैं. लिहजा उन्हें ही चेहरा बनाकर चुनावी मैदान में उतरा जाए. वर्ष 1998 में दुमका में शिबू सोरेन , फिर दुमका से ही रुपी सोरेन को हराकर संताल परगना में भाजपा की जमीन तैयार कर दी थी. शिबू सोरेन के हराने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में उनकी चमक फैली. 1999 में वे केन्द्रीय वन पर्यावरण राज्यमंत्री बनाया गया. इतना ही नहीं राज्य गठन के बाद वे झारखंड के पहले मुख्यमंत्री भी बनें. हालांकि, बीजेपी से तल्खी के बाद 2006 में अपनी पार्टी झाविमो बनायी. लेकिन साल 2019-20 में बाबूलाल की भाजपा में वापसी. इसके बाद वे विधनसभा में विपक्ष के नेता बनें.
संगठन को मजबूत करने की चुनौती
झारखण्ड में बीजेपी का अपना वोट तो हैं. लेकिन जगह-जगह पर इसका संगठन बिखरा हुआ हैं. जो आपसी कलह, गुटबाजी और चाचा-भतीजावाद से जूझ रहा हैं. लिहाजा झारखण्ड बीजेपी को एक ताकतवर लीडरशिप की जरुरत थी. जो बाबूलाल मरांडी में भाजपा आलाकमान देख रहा था. इसके अलावा हेमंत सोरन सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी नेता ने खुलेआम मुखर होकर हल्ला बोला, वो बाबूलाल मरांडी ही थे. नहीं तो किसी भी बीजेपी नेता की ज्यादा आवाज हेमंत सरकार के खिलाफ नहीं निकली.
बाबूलाल अध्यक्ष बनाये जाने के बाद भाजपा को कितना फायदा होगा. ये तो आगे मालूम पड़ेगा. लेकिन, बाबूलाल को कमान देकर बीजेपी ने साफ कर दिया कि , वह आगामी लोकसभा चुनावी में पूरी ताकत के साथ उतरेगी. इसमे कोई चूक नहीं करने वाली है .
रिपोर्ट-शिवपूजन सिंह
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