टीएनपी डेस्क(Tnp desk):-हाल ही में हमने आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाई, चंद्रयान पर पहुंचकर दुनिया को अपनी तरक्की को दिखाया. इसके साथ ही आज की दौड़ती-भागती जिंदगी की आधुनिकता में भी हम पीछे नहीं हैं. वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर खुद आगे बढ़ रहें है. लेकिन, कुछ ऐसी तस्वीर भी सामने उभरकर आती है. जो इस चमक-दमक के बीच अंधियारे की तरह दिखती है. जहां रौशनी आना ही मानों ख्वाहिश हो, अपने हिस्से में मानों उसके दामन में अंधेरा ही लिखा हो. झारखंड में भी एक अभागा गांव है, जहां तालीम की अहमियत अभी तक मालूम नहीं पड़ी है. इस मामले में इसे इस गांव की बदकिस्मती कहें या फिर मुलाजिमों की अनदेखी. वजह जो भी हो, लेकिन, इस गांव की किस्मत उतनी अच्छी नहीं है, जहां शिक्षा की लौ जली ही नहीं.
एक युवक सिर्फ मैट्रिक पास
झारखंड के सिमडेगा जिले के चेरंगा गांव में आजादी के सात दशक बाद भी शिक्षा का दीप नहीं जला है. इस अभागे गांव में सिर्फ एक ही ऐसा लड़का है, जिसने दसवीं की परीक्षा यानि मैट्रिक पास की है. बाकी छात्रों ने तो मैट्रिक का इम्तहान भी नहीं दे पाये हैं. जंगलों और पहाड़ों के बीच बसा कुरडेग प्रखंड मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर चेरंगा गांव में शिक्षा की दीपक जला ही नहीं है. अशिक्षा के पीछे इस गांव में बुनियादी सुविधाओं का ही अभाव है. सबसे चौकाने वाली बात ये है कि इस गांव से आधा किलोमीटर दूर स्थित छत्तीसगढ़ के गांवों में बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं दुरुस्त है. यहां सवाल स्थानीय प्रशासन पर भी उठ रहा है कि आखिर क्यों नहीं इस गांव में जरुरी चिजों का इंतजाम किया गया. आखिर इसके पीछे कौन सी वजह है.
गांव में रहते हैं 27 परिवार
चेरांग गांव में 27 परिवार अपना जिवन बसर करते हैं, इसकी कुल आबादी 127 है, यहां अधिकत्तर आदिम जनजाति कोरवा के लोग निवास करते हैं, इसके अलावा उरांव जनजाति समुदाय के लोग भी यहां रह रहें हैं.गांव की किस्मत इतनी रुठी है कि यहां सड़क ही नहीं, बल्कि पगडंडी के सहारे लोग आवगामन करते हैं. सबसे दिक्कत बरसात के मौसम में होती है, जब किसी के बीमार पड़ने पर खाट के सहारे सड़क के पास ले जाना पड़ता है. सड़क के साथ-साथ बिजली के नामोनिशान नहीं है. वही साफ पानी पीने के लिए भी इंतजाम नहीं किया गया है. सोचने वाली बात ये है कि झारखंड के वजूद में आने के बावजूद भी यहां पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
पानी की भारी किल्लत
गर्मियों के मौसम में चेरांग गांव के लोग खेतों में बने गढ्डे के पानी पिया करते हैं. इसके सहारे ही चिलचिलाती गर्मी में प्यास बुझती है. गांव में एक भी चापाकल नहीं है, सिर्फ दो कुएं है, जो गांववालों की प्यास बुझाती है. गांव में सोलर जलमिनार है, लेकिन वह भी कुछ महीनों से खराब पड़ी है. इससे घर-घर पानी लोगों को मिलता था. लेकिन, खराब होने के बाद फिर कभी इसे दुरुस्त करने की नहीं सोची गई.
रोजगार का आभाव
गांव में खेती के अलावा रोजगार का कोई साधन नहीं है. मनरेगा में लोग काम करते हैं. लेकिन मजदूरी देर से मिलती है, या फिर कभी मिलती ही नहीं है. इसके चलते भी लोग परेशान हैं. इस गांव की बदकिसम्ती कहिए या फिर कुछ और ही. आज तक कोई भी जनप्रतिनिधि या फिर कोई प्रशासनिक अधिकारी गांव में नहीं पहुंचा. गांव में सड़क की बेहद जरुरत है, अगर ये बन जाती है, तो रास्ते खुलेंगे. बताया जाता है कि पास गांव वाले जमीन नहीं देना चाहते. जिसके चलते सड़क नहीं बन सकी. दो बार सड़क पास कराई गई थी. लेकिन, जमीन विवाद के चलते ये अधूरा रह गया.
कुरडेग बीडीओ गांव के पिछड़ेपन की वजह सड़क का नहीं होना बताते हैं. उनका कहना है कि दो बार सड़क पास करायी गई थी. लेकिन, जमीन विवाद के चलते बन नहीं सका. ग्रामीणों के साथ कई बार बैठक भी की गई थी और जमीन विवाद को सुलझाने की कोशिश की गई थी. लेकिन, बात नहीं बनी.
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