टीएनपी डेस्क(TNP DESK): एक तरह जहां राजद कोटे से बिहार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चन्द्रशेखर और समाजवादी पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या के द्वारा रामचरित मानस की कुछ एक चौपाइयों को उद्धृत करते हुए विप्र समाज को निशाने पर लिया जा रहा है, इनके बयानों से देश भर में कोहराम मचा हुआ है, कई धर्माचार्यों के द्वारा स्वामी प्रसाद मौर्या का सर कलम करने वालों के नाम एक बड़ी राशि बतौर इनाम देने की घोषणा की गयी है, वहीं संत रैदास की जयंती के बहाने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी पंडितों को निशाने पर लिया है.
संत रैदास जयंती पर मोहन भागवत का बयान
संत रैदास जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भगवान ने हम सबों को इंसान ही बनाया था, लेकिन पंडितों ने अपने स्वार्थ में जाति और वर्ण का आविष्कार किया, जिसके कारण समाज में असमानता का जन्म हुआ, समाज में छुआ छूत और उंच नीच की भावना पनपी. हमारे इसी सामाजिक बंटवारे के कारण हम गुलाम रहें. हमें गुलामी का दंश झेलना पड़ा, हम किसी भी हालत में जाति और वर्ण को सही नहीं ठहरा सकतें, हमें इससे उपर उठकर संत रैदास के बताये रास्ते पर चलकर समानता का पाठ पढ़ना होगा. उन्होंने कहा कि संत रैदास की इसी भावना को बाद में महात्मा फूले और बी. आर. अम्बेडर ने आगे बढ़ाया और हमें सशक्त भारत का राह दिखलाया. मोहन भागवत ने कहा कि संत रविदास को संत शिरोमणि कहा गया है. शास्त्रार्थ में वह भले ही ब्राह्मणों से जीत नहीं सके हों, लेकिन संत रविदास ने दिल जीत लिया. संत रविदास ने समाज को सत्य, करुणा, अंतर पवित्र, सतत परिश्रम और चेष्टा के गुरु मंत्र दिए थे. संत रविदास का संदेश था कि पूरे समाज को जोड़े और समाज की उन्नति के काम करो. यही धर्म है, सिर्फ अपनी सोचना और अपना पेट भरना को धर्म नहीं कहा जा सकता.
शिवाजी महान का उदाहरण
शिवाजी महान का उदाहरण देते हुए मोहन भागवत ने कहा कि काशी का मंदिर टूटने के बाद उन्होंने औरंगजेब को पत्र लिख कर कहा था कि हिंदू और मुसलमान दोनों ही ईश्वर के बच्चे हैं, आप को इस सच्चाई को समझनी होगी, नहीं तो युद्घ अनिवार्य होगा. मोहन भागवत ने कहा कि हमें समाज और धर्म को विद्वेष की नजर से देखने की प्रवृति छोड़ना होगा, यह संत रविदास का संदेश है, और यही सच्चा मार्ग है.
ब्राह्मण मत पूजिये, जो होवे गुणहीन, पूजिये चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीण
यहां बता दें कि मध्यकालीन कवि और महान समाज सुधाकर संत रविदास ने ‘ब्राह्मण मत पूजिये, जो होवे गुणहीन, पूजिये चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीण’ का संदेश देकर समाज में ऊंच नीच की भावना पर कड़ा प्रहार किया था.
मोहन भागवत का बयान, सामाजिक कटुता को खत्म करने की कोशिश
मोहन भागवत के इस बयान को कुछ लोग रामचरित मानस को लेकर समाज के एक हिस्से में बढ़ी कटूता को समाप्त करने की कोशिश के बतौर भी देख रहे हैं. दरअसल मानस की कुछ एक चौपाइयों को उद्धृत कर कुछ राजनीतिक दलों के द्वारा समाज के वंचित और पिछड़ी जातियों को अपने पाले में लाने की कोशिश की जा रही है, जबकि इसके विरोध में कुछ धर्माचार्यों के अनर्गल बयानों से इन शक्तियों को बल ही मिला है, पूरा समाज दो हिस्सों में बंटता नजर आने लगा है, इस विशेष परिस्थिति में सामाजिक असामनता और छुआछूत के लिए जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था को जिम्मेवार मान कर सामाजिक समरसता का ही संदेश दिया है. अब देखना यह होगा कि विप्र समाज इसे किस रुप में लेता है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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