LOKSABHA 2024 : झारखंड में कुर्मी अनुसूचित जनजाति में शामिल होने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन अभी तक उनकी मांगे पूरी नहीं हुई है. वे अपनी मांगे पूरी करने के लिए समय-समय पर बड़ी-बड़ी आंदोलन करते रहते हैं. कुर्मियों/कुड़मियों की इस मांग के विरोध में आदिवासी संगठन और अन्य समुदाय भी संघर्ष में जुटे हैं. हालांकि, आंदोलनरत जातीय समूह के साथ कोई राजनीतिक दल सामने नहीं आया है. इसकी वजह भी स्पष्ट है. इन्हें खुलकर समर्थन देने में आदिवासी समुदाय की नाराजगी का खतरा है. खासकर झामुमो, बीजेपी, आजसू पार्टी खुलकर बोल भी नहीं रही है. वहीं आदिवासी संगठन कुर्मी जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने संबंधी मांग का मुखर होकर विरोध कर रहे हैं.
कुर्मी संगठनों का दावा- झारखंड में है 25 प्रतिशत आबादी
कुर्मी संगठनों का दावा है कि झारखंड में उनकी आबादी 25 प्रतिशत है. 81 में से 35 विधानसभा क्षेत्र और 14 में से छह लोकसभा क्षेत्रों में उनका वोट प्रत्याशी की जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ओडिशा में कुर्मी जाति की आबादी लगभग 25 लाख है. बंगाल में इनकी आबादी लगभग 40 लाख है. झारखंड से सटे जंगल महाल क्षेत्र की 35 विधानसभा सीटों पर इनका प्रभाव है.
आदिवासियों से अलग है कुर्मियों का रहन-सहन
रांची स्थित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान ने कुर्मी को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने संबंधी शोध किया था. शोध के मुताबिक, कुर्मियों का रहन-सहन, खानपान और परंपरा से लेकर पूजा-पाठ करने की विधि आदिवासियों से अलग है. वे अनुसूचित जनजाति में शामिल नहीं किए जा सकते.
संसद में उठ चुकी है मांग
सात फरवरी 2022 को लोकसभा में केंद्र सरकार ने त्रिपुरा के कुछ आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने संबंधी बिल लाया था. इसपर चर्चा के दौरान कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने झारखंड, बंगाल और ओडिशा के कुर्मी को एसटी सूची में शामिल करने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि कुर्मी समुदाय 1931 में आदिम जनजाति की सूची में थे. पुरुलिया के भाजपा सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो, गिरिडीह के आजसू पार्टी के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी, जमशेदपुर के भाजपा सांसद विद्युतवरण और गोमिया से आजसू पार्टी के विधायक लंबोदर महतो ने इस सिलसिले में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा था.
लोकसभा चुनाव 2024 में किस पार्टी को समर्थन देगी कुर्मी जाति
लोकसभा 2024 का चुनावी बिगुल कुछ महीने बाद बजने वाली है. जिसकी तैयारी सभी पार्टियों के नेता अभी से शुरू कर दिये हैं. जातीय समीकरण को साधने के लिए मेनिफेस्टो में भी शामिल करने के लिए विभिन्न पार्टियां जुट गई है. लेकिन सवाल उठता है कि झारखंड में वर्षों से अपनी लड़ाई लड़ रहे कर्मी/कड़मी किस पार्टी को समर्थन करेगी. क्योंकि अभी तक कोई पार्टी खुलकर इनकी मांगों का समर्थन नहीं किया है. जबकि झारखंड में कुल आबादी में 25 प्रतिशत कुर्मी है. राज्य के 81 में से 35 विधानसभा क्षेत्र और 14 में से छह लोकसभा क्षेत्रों में उनका वोट प्रत्याशी की जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. झारखंड की राजनीति की बात करें तो यहां आदिवासी ही सभी पार्टियों का मुख्य मुद्दा रहा है. अगर किसी पार्टी ने कुर्मी का समर्थन किया तो आदिवासी वोट बैंक उनके हाथ से छिटक सकता है. जिससे किसी भी पार्टी को काफी नुकसान होगा. शायद फिर कभी वो अपने अस्तित्व में आए.
रांची से पांच बार सांसद रहे रामटहल चौधरी
रांची लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां से पांच बार रामटहल चौधरी सांसद रहे. इनका कुर्मी जाति पर अच्छी पकड़ थी और लोग भी ये मानकर चल रहे थे यहां से सिर्फ कुर्मी उम्मीदवार ही सांसद बन सकते हैं. लेकिन ये भ्रम तब टूट गया जब बीजेपी ने रामटहल चौधरी को टिकट न देकर संजय सेठ को प्रत्याशी घोषित किया. जिससे नाराज होकर रामटहल चौधरी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा, तब उन्हें सिर्फ लगभग 30 हजार वोट मिले. वहीं जो कभी वार्ड चुनाव न लड़े हो संजय सेठ पहली बार में मोदी लहर में जीत गये. इस चुनाव परिणाम से पॉलिटिकल पंडित भी सोचने पर मजबूर हो गए कि रांची लोकसभा क्षेत्र के वोटर्स का मिजाज समझना आसान नहीं है.
रांची लोकसभा में कुर्मी, आदिवासी और दलितों की संख्या ज्यादा
यहां बता दें कि रांची लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है, लेकिन 1991 में पहली बार यहां भाजपा ने सेंधमारी की. लगातार चार बार बीजेपी नेता रामटहल चौधरी लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 2004 और 2009 में फिर कांग्रेस की झोली में ये सीट चली गई और सुबोधकांत सहाय सांसद बने. फिलहाल यह सीट बीजेपी के कब्जे में है. वैसे इस क्षेत्र में शुरू से कुर्मी, आदिवासी और दलितों की संख्या ज्यादा रही है. यहा चुनाव जीतने वाले नेता मुस्लिम, पारसी, बंगाली, साहू और कायस्थ रहे हैं.
कुर्मी को साधने में जुटी पार्टियां
रांची संसदीय सीट के अंतर्गत छह विधानसभा सीट आता है जो दो जिलों में फैला है. इसमें रांची जिले में पांच सीट है जिसमें कांके, सिल्ली, खिजरी, हटिया और रांची शामिल है. जबकि एक विधानसभा सीट ईचागढ़ है जो सरायकेला खरसावां जिले में पड़ता है. छह विधानसभा सीटों में तीन पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि एक सीट कांग्रेस, एक सीट जेएमएम और एक सीट आजसू के पास है. इन सभी सीटों पर कुर्मी, आदिवासी और दलित वोटर्स की संख्या ज्यादा है. अगर कोई भी पार्टी कुर्मी का समर्थन किया तो आदिवासी और दलित वोटर्स खिसक जायेगा. अब देखना होगा कि कैसे आने वाले लोकसभा चुनाव में कुर्मी वोटर्स को अपने पाले में करने के लिए विभिन्न पार्टियां रणनीति अपनाती है.
रिपोर्ट: संजीव ठाकुर
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