रांची(RANCHI): वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था कि ललित मोदी, नीरव मोदी से लेकर नरेन्द्र मोदी तक सभी चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों है. राहुल गांधी के इस बयान को मोदी सरनेम वालों के अपमानजनक बताते हुए भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने सूरत की एक निचली अदालत में मानहानि का मुकदमा दायर किया था. पूर्णेश मोदी का दावा था कि यह बयान सभी मोदी सरनेम वालों को आहत करने वाला है, इस केस की सुनवाई के दौरान राहुल गांधी तीन बार कोर्ट में उपस्थित भी हुए, अंतिम बार उनकी पेशी अक्टूबर 2021 को हुई थी, उस पेशी के दौरान राहुल गांधी ने दावा किया था कि उनका आशय किसी समाज को आहत पहुंचाना नहीं था.
कोर्ट ने सुना दी अधिकतम सजा
लेकिन कोर्ट फैसले से साफ है कि निचली अदालत ने राहुल गांधी की उस दलील को स्वीकार नहीं किया और उन्हे दो वर्षों की अधिकतम सजा का एलान कर दिया. याद रहे कि किसी भी अपमानजनक बयान के आरोप में अधिकतम दो वर्षों की सजा का ही प्रावधान है, साफ है कि कोर्ट के पास इससे अधिक सजा देने की शक्ति नहीं थी.
यहां यह जानना भी जरुरी है कि यदि किसी सांसद विधायक को अधिकतम दो वर्ष की सजा सुनायी जाती है तो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धाराओं के अनुसार उसकी सदस्यता रद्द हो जायेगी. साफ है कि यदि कोर्ट ने इस मामले में अधिकतकम सजा इस्तेमाल नहीं किया होता तो राहुल गांधी की सदस्यता पर कोई आंच नहीं आती.
उपरी अदालत में अपील के लिये मिला था तीस दिनों का समय
ध्यान रहे कि अपने फैसले के साथ ही कोर्ट ने राहुल गांधी को तीस दिनों का वक्त दिया है, जिस दौरान वह इस फैसले के खिलाफ उपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं, उपरी अदालत के द्वारा यदि निचली अदालत के फैसले पर स्टे लगा दिया जाता है तो उनकी सदस्यता पर कोई खतरा पैदा नहीं होगा.
राहुल गांधी की ओर से इस फैसले खिलाफ उपरी अदालत में चुनौती देनी की तैयारी की जा रही थी, लेकिन इस बीच लोकसभा कार्यालय ने लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के फैसले को आधार बनाते हुए उनकी सदस्यता को खत्म करने की अधिसूचना को जारी कर दिया.
लिली थॉमस बनाम भारत सरकार
यहां हम बता दें कि 11 जुलाई 2013 को लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के फैसले में कोर्ट ने निचली अदालत में दोषी करार दिए जाने की तारीख से ही अयोग्य घोषित का फैसला सुनाया है. इसके पहले तक आखिरी फैसला आने तक सदस्यता नहीं जाती थी.
लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए मनमोहन सरकार ने लाया था अध्यादेश
ध्यान रहे कि लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के फैसले फैसले के खिलाफ तब भी राजनीतिक हलकों में बड़ा बवाल हुआ था, अधिकांश राजनीतिक दल इस फैसले के खिलाफ थें. कोर्ट के इस फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए तात्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार के द्वारा एक अध्यादेश भी लाया गया था, लेकिन तब अपनी ही पार्टी की बहुमत की राय से अलग जाकर राहुल गांधी ने भरी संसद में उस अध्यादेश की प्रति को फाड़ दिया था, राहुल गांधी की इस हरकत के कारण तब मनमोहन सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी. आखिराकर राहुल गांधी के इस विरोध को देखते हुए मनमोहन सिंह की सरकार ने इस अध्यादेश वापस ले लिया था.
काश राहुल गांधी नहीं फाड़ी होती उसकी प्रति
जिस अध्यादेश को फाड़ कर राहुल गांधी ने देश की राजनीति में अपनी छवि को मिस्टर क्लिन के रुप में पेश करने की कोशिश की थी, राजनीतिक की अजीब त्रासदी है कि आज वह उसी अध्यादेश की आड़ में संसद से बाहर निकाले जा रहें है. काश मनमोहन सिंह की सरकार ने राहुल गांधी के दवाब में उस बिल को वापस नहीं लिया था तो आज राहुल गांधी की सदस्यता जाने की नौबत नहीं आती. शायद राहुल गांधी के साथ ही मनमोहन सिंह को भी आज यह दर्द दे रहा होगा.
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