पटना(PATNA)- लम्बे अर्से से बिहार की राजनीति में चर्चाओं और कयासों को केन्द्र बिन्दू बन कर उभरे और नीतीश कुमार के बेहद खासमखास माने जाने वाले आरसीपी सिंह ने आखिरकार भाजपा ज्वाईन करने की औपचारिक घोषणा कर दी है.
नीतीश कुमार के हनुमान के हाथ में कमल
कभी नीतीश कुमार के हनुमान के रुप अपनी पहचान कायम करने वाले आरसीपी सिंह केन्द्रीय मंत्रिमंडल से रुखसत किये जाने के बाद लगातार नीतीश कुमार के खिलाफ हमलावर थें. उनके द्वारा पार्टी तोड़ने के दावे भी किये जा रहे थें, उनका दावा था कि उनके साथ जदयू के करीबन एक दर्जन सांसद पार्टी को अलविदा कर सकते हैं. जदयू विरोधियों को आरसीपी सिंह के इस दावे में दम भी नजर आता था, उनका तर्क था कि आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं, पार्टी के शीर्ष संगठन से लेकर जमनी स्तर तक उनके लोगों मौजूद है. आरसीपी सिंह के एक इशारे के साथ ही जदयू का पूरा कुनबा बिखर सकता है.
नीतीश कुमार की कृपा दृष्टि से बने थें राष्ट्रीय अध्यक्ष
लेकिन अब जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार उनके साथ कुछ एक कार्यकर्ताओं को छोड़कर कोई बड़ा चेहरा साथ नहीं जा रहा है. इस प्रकार जदयू का वह दावा सत्य होता प्रतीत हो रहा है कि आरसीपी सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी योग्यता के कारण नहीं, बल्कि नीतीश कुमार की कृपा दृष्टि के कारण बने थें और पार्टी का एकमात्र चेहरा नीतीश कुमार है. पूरी पार्टी उनके साथ खड़ी है, हालांकि यह नहीं भूलना चाहिए कि 2024 का लोकसभा चुनाव अब सामने खड़ा है, इस हालात में कई वर्तमान सांसदों को अपनी टिकट की चिंता भी सत्ता रही है, राजद, जदयू, कांग्रेस और हम के महागबंधन के सीटों का बंटवारा किस प्रकार होगा, यह चिंता उनके सामने मुंह बायें खड़ी होगी, इस हालत में कुछ वर्तमान सांसदों का इधर उधर होने या पाला बदलने की किसी संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता.
राजनीति के धुरंधर सीएम नीतीश ने वक्त रहते कर ली थी पहचान
लेकिन इसके साथ ही चर्चा इस बात की भी चल रही है कि राजनीति के धुरंधर सीएम नीतीश ने वक्त रहते ही आरसीपी सिंह के नब्ज की पहचान कर ली थी, उनके नब्ज की तेज धड़कन उन्हे सुनाई दे गयी थी. जिस प्रकार चिराग को आगे कर नीतीश कुमार को कमजोर करने की रणनीति तैयार की गयी थी, इसका एहसास नीतीश कुमार को वक्त रहते हो गया था और उसका एक सिरा आरसीपी सिंह के जुड़ा नजर आने लगा था.
नीतीश की इच्छा के विपरीत बने थें केन्द्रीय मंत्री
ध्यान रहे कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के सवाल पर जदयू के अन्दर कई मतभेद थें, केन्द्रीय मंत्रिमंडल पर कई चेहरों की दावेदारी थी, खुद नीतीश एक मंत्री पद लेने के पक्ष में नहीं थें. उनकी चाहत कम से कम दो मंत्री की थी, जिससे कि ललन सिंह को समायोजित किया जा सके, इस विवाद को समाधान करने की जिम्मेवारी सीएम नीतीश ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में आरसीपी सिंह के कंधों पर सौंपी थी, लेकिन इस विवाद का समाधान करने के बजाय इस विवाद का समाधान करने दिल्ली पहुंचते ही अपने लिए एक मंत्री पद लेकर इस मामले को और भी उलझा दिया.
केन्द्रीय मंत्री बनते ही नीतीश से दूर हो गये थें आरसीपी सिंह
कहा जा सकता है कि जदयू के आरसीपी सिंह के छुट्टी उनके केन्द्रीय मंत्री बनते ही हो गयी थी, हालांकि उस वक्त सीएम नीतीश ने कुछ नहीं बोला, लेकिन उनके दिल से वह दूर जा चुके थें और आरसीपी सिंह के रुप में एक कुर्मी को प्रोमोट करने का आरोप उन पर चस्पा हो चुका था. लेकिन नीतीश की राजनीति समझना इतना आसान कहां है, आखिरकार इनकी राज्यसभा की सदस्यता का समय पूरा हो गया, और राजनीति के चतुर खिलाड़ी सीएम नीतीश ने उनकी राज्यसभा की सदस्यता पर अपनी मुहर नहीं लगाया और इस प्रकार उनका मंत्री पद चला गया.
एक बेचारगी के साथ भाजपा में जाना आरसीपी सिंह की राजनीतिक विवशता
और आज जिस बेचारगी के भाव लिए आरसीपी सिंह भाजपा में जा रहे हैं, यह उनकी पंसद से ज्यादा उनकी राजनीतिक मजबूरी है, क्योंकि साफ है कि भाजपा उनका इस्तेमाल नीतीश के खिलाफ नांलदा के किले में करेगी, क्योंकि संकेत यह है कि नीतीश कुमार इस बार नालंदा संसदीय सीट से चुनाव लड़ सकते हैं और उनके सामने भाजपा को एक कुर्मी चेहरे की खोज थी, भाजपा को आरसीपी सिंह में वह चेहरा दिख रहा है, हालांकि नालंदा को फतह करना आरसीपी सिंह के लिए कितना मुश्किल है, इसे खुद आरसीपी सिंह से बेहतर कोई नहीं जानता, एक बार ज्योंही उन्हे हार मिलती है, उनकी राजनीतिक साख किस कदर बिखरेगी उसका आकलन अभी करना उचित प्रतीत नहीं होता.
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