धनबाद(DHANBAD): "शिक्षा जीवन का आधार, इसके बिना है सब बेकार, जो पाता है जीवन में शिक्षा, उसकी पूरी होती है हर इच्छा". यह नारे आपको सब जगह दिख जाएंगे. शहर हो या देहात, सब जगह दीवारों पर पेंटिंग कर लोगों को जागरूक करने की कोशिश की गई है. सरकार ने भी मिड डे मील सहित अन्य योजनाएं इसलिए चला रही है कि बच्चों को स्कूलों से जोड़ा जाए. बच्चे शिक्षा से वंचित न रह जाएं. कई निजी संस्थानों ने भी बच्चों को शिक्षित करने के कार्यक्रम चलाते हैं. इस बीच एक आंकड़ा सामने आया है कि झारखंड के 6837 स्कूलों में बेंच, डेस्क की कमी है. 6671 प्रारंभिक स्कूल और 166 हाई व प्लस टू स्कूल में बेंच, डेस्क बच्चों के अनुपात में नहीं है. इस कारण बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं. यह आंकड़ा किसी को भी चौका सकता है और शिक्षा की सरकारी व्यवस्था पर रुला सकता है. ऐसी बात नहीं है कि इन सब बातो की चर्चा नहीं होती है. चर्चा खूब होती है , कागजी योजनाएं बनती है, लेकिन उन्हें जमीन पर उतारा नहीं जा पाता.
झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद ने सभी जिलों को दिया निर्देश
इधर, जिन स्कूलों में बैंच ,डेस्क की खरीदारी की जानी है, वैसे सभी स्कूलों की संख्या राज्य सरकार ने जिलों को उपलब्ध करा दी है. झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद ने सभी जिलों को निर्देश दे दिया है. 30 जून तक हर हाल में संबंधित स्कूलों में बेच ,डेस्क की खरीदारी कर लेनी है. साथ में यह भी निर्देश दिया गया है कि किसी भी स्कूल में आवश्यकता से अधिक की खरीदारी नहीं हो. यह तो हुई आदेश की बात लेकिन इसके लिए ईमानदारी पूर्वक प्रयास की जरूरत है. यह प्रयास तभी संभव हो सकता है ,जब प्रयास के पूरी सिस्टम में पारदर्शिता हो.
सरकारी स्कूल के हालातों पर कौन जिम्मेदार
सरकारी स्कूलों में अगर बेंच ,डेस्क की कमी है तो इसके लिए कोई न कोई तो जिम्मेदार होगा ही. लगातार खबरें आती रहती है कि सेशन खत्म होने के बाद पुस्तकें वितरित करने को आई हैं, जाड़ा खत्म होने के बाद बच्चों को गर्म कपड़े दिए जा रहे हैं. बच्चों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या भी सही नहीं है. कहीं बच्चे अधिक है तो शिक्षक कम और जहां बच्चे कम है, वहां शिक्षक अधिक. यह अनुपात झारखंड के प्रायः सभी जिलों में देखने को मिलती है.
कब सुधरेगी झारखंड की शिक्षा व्यवस्था
धनबाद की बात करें तो जिले में 1से 8 तक के 1727 स्कूल है, 118 हाई स्कूल है. सरकारी शिक्षकों की संख्या 3601 है. सहायक अध्यापकों, जिन्हें पहले पारा टीचर कहा जाता था, उनकी संख्या 2575 है. एक आंकड़े के मुताबिक धनबाद में ही प्राइमरी, मिडिल और हाई स्कूल के शिक्षकों के 2000 से अधिक पद खाली है. ऐसे में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का क्या हाल होगा, यह तो अपने आप में जांच का विषय है. सरकारी शिक्षा की इसी बिगड़ी व्यवस्था का लाभ निजी स्कूल के संचालक उठाते हैं और अभिभावकों को दोनों हाथ से लूटते हैं. जब इच्छा होती है, फीस में बढ़ोतरी कर देते हैं. जब मन में आता है पोशाक बदल देते हैं. किताब और पोशाक भी किसी खास दुकान से ही लेने के लिए बाध्य करते हैं. हाल के दिनों में ऐसी शिकायतें अभिभावकों ने जिला प्रशासन को दिए हैं .बच्चों का कैरियर का सवाल होता है, इसलिए भी बहुत खुलकर अभिभावक विरोध नहीं कर पाते हैं, जिसका लाभ निजी स्कूल के संचालक उठाते हैं. झारखंड के प्रायः जिले में अभिभावक संघ है, उनकी बैठके होती हैं, सुझाव भी आते हैं लेकिन सुझाव पर कोई काम होता नहीं है .अगर पूरे झारखंड में 6837 स्कूलों में बेंच डेस्क की कमी है तो यह चौंकाने वाली बात हो सकती है.
अभी झारखंड में शिक्षा मंत्री का पद भी खाली
झारखंड के शिक्षा मंत्री रहे जगरनाथ महतो का बीमारी के कारण निधन हो गया. उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की जमीनी कार्रवाई शुरू की थी. अभी झारखंड में शिक्षा मंत्री का पद खाली है. जरूरत है झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को सही ढंग से सुधारने की. देखना है आगे क्या होता है.
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