टीएनपी डेस्क(TNP DESK): साल 2000 में भारत में तीन नए राज्यों का गठन होता है. उत्तराखंड, छतीसगढ़ और झारखंड. तीनों राज्यों को अलग हुए 22 वर्ष पूरे हो चुके हैं. मगर, दो राज्यों ने जहां विकास की ओर कदम बढ़ाया, वहीं एक राज्य इस विकास की रेस में काफी पीछे छूट गया. हम बात कर रहे हैं झारखंड की. उतराखंड और छतीसगढ़ दोनों ही राज्य झारखंड के साथ अलग हुए थे. मगर, आज झारखंड इन दोनों राज्यों से काफी पीछे रह गया. झारखंड आज भी गरीबी और लाचारी की मार झेल रहा है.
झारखंड में देश का 40 फीसदी खनिज संपदा है, फिर भी राज्य की लगभग 40 फीसदी से ज्यादा जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है. राज्य के लोग दाने-दाने को मोहताज हैं. 20 फीसदी से ज्यादा बच्चे और शिशु कुपोषण कर शिकार हो रहे हैं. प्रशासन और व्यवस्था इतना लाचार है कि लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. वहीं यही आदिवासियों के जमीन को औने-पाउने दाम पर बड़े-बड़े उद्योगपतियों को बेच दे रहे हैं. यही उद्योगपति राज्य की खनिज संपदा का दोहन भी कर रहे हैं, इस दोहन से भूमिगत जल प्रदूषित होता जा रहा है. इससे लोग बुरी तरह से परेशान हैं. राज्य और राज्य के लोगों की लाचारी के पीछे कई कारण हैं. आज हम उसी के बारे में जानेंगे कि आखिर झारखंड 22 सालों में इतना पीछे कैसे रह गया.
22 सालों में कुर्सी डगमगाती रही
झारखंड के पीछे होने की सबसे बड़ी वजह राजनीतिक अस्थिरता है. जब सरकार ही अस्थिर रहेगी तो किसी राज्य की विकास की कल्पना करना भी मुश्किल है. इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि राज्य गठन के बाद जहां छतीसगढ़ में 22 सालों में अभी तक सिर्फ 3 सीएम रहे हैं, वहीं उतराखंड में अबतक 10 सीएम हुए हैं वहीं 2 बार राष्ट्रपति शासन रहा है. मगर, इन दोनों राज्यों की तुलना में झारखंड में 22 सालों में 11 सरकारें और 6 सीएम रहे हैं, वहीं 3 बार राष्ट्रपति शासन भी रहा है. राजनीतिक अस्थिरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मौजूदा हेमंत सोरेन की सरकार से पहले रघुवर दास की बीजेपी सरकार एकलौती सरकार है जिसने अपने पांच साल का पूरा कार्यकाल पूरा किया. इसका नतीजा ये हुआ कि पिछले कुछ सालों में थोड़ा तेजी से विकास संभव हुआ है.
घोटालों की वजह से रहा नाम बदनाम
झारखंड के गठन के बाद झारखंड का सबसे ज्यादा नाम घोटालो में लिया गया. झारखंड देश का एकलौता ऐसा अनोखा राज्य है जिसने निर्दलीय मुख्यमंत्री दिया. और इसी निर्दलीय सीएम पर घोटालों का ऐसा आरोप लगा की सारे रिकॉर्ड टूट गए. खनन और कोयला घोटाले में पूर्व सीएम मधू कोड़ा को जेल भी जाना पड़ा. पिछले 22 सालों में झारखंड में कई घोटाले हुए. राज्य के कई विधायकों, पूर्व विधायकों, और मंत्री और पूर्व मंत्रियों पर घोटाले के आरोप हैं. राज्य के कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी घोटाले के कारण जेल में बंद हैं. इन घोटालों ने राज्य के विकास को और पीछे धकेल दिया. यही वजह है कि राज्य शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में काफी पीछे रह गया है. क्योंकि हर क्षेत्रों मे कोइ ना कोइ घोटाला हुआ ही है. राज्य की जीडीपी लगातार गिरती ही रही, इसका प्रमुख कारण घोटाला ही रहा.
नक्सल घटनाओं ने टोडी विकास की कमर
उतराखंड को छोड़ दें तो छतीसगढ़ और झारखंड दोनों ही राज्य नक्सलवाद से ग्रसित रहे हैं.मगर, छतीसगढ़ में इसके बावजूद उद्योग लगाए गए. क्योंकि राज्य के कुछ ही हिस्सों में नक्सलवाद हावी है. मगर, झारखंड के ज्यादातर जिले नक्सलवाद से ग्रसित हैं. राज्य सरकार और केंद्र सरकार की मानें तो झारखंड को सबसे ज्यादा नुकसान नक्सलवाद से झेलना पड़ा. सरकार का कहना है कि नक्सलियों के कब्जे और हमलों की वजह से आम आदमी को लाभ पहुंचाने वाली अधिकतर सरकारी योजनाएं कारगर ढंग से लागू नहीं हो सकीं. नक्सलवाद के कारण ही रजी में औद्योगिक माहौल बिगड़ा, जिसके कारण कई बड़े प्रोजेक्ट सालों से पीछे चल रहे हैं या लटक चुके हैं. वहीं उतराखंड और छतीसगढ़ में कई सारे औद्योगिक प्रोजेक्ट लगे हुए हैं जो काम कर रहे हैं. उनके चलते बहुत से लोगों को रोजगार भी मिला है और आस-पास के इलाके का विकास भी हुआ.
शहरी आबादी में नहीं हुआ ज्यादा ग्रोथ
झारखंड के पिछड़ेपन का कारण शहरी क्षेत्र का धीमा विकास भी है. साल 2000 में झारखंड में शहरी क्षेत्र 22 प्रतिशत के आसपास था तो उत्तराखंड में 26 और छत्तीसगढ़ में सिर्फ 20 प्रतिशत था. मगर, 2011 तक आते-आते उत्तराखंड में शहरी क्षेत्र बढ़कर 30.55 फीसदी हो गया, वहीं छतीसगढ़ में 3 प्रतिशत की तेजी के साथ शहरी क्षेत्र 23.24 प्रतिशत तक पहुंच गया. हालांकि झारखंड में शहरी क्षेत्रों में मात्र 2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई और वर्तमान में यह 24.05 प्रतिशत है. मगर, इसमें ग्रोथ देखा जाए तो उतराखंड में जहां ग्रोथ 4 फीसदी के आस-पास हुई, छतीसगढ़ में ग्रोथ 3 फीसदी हुई तो वहीं झारखंड में ये ग्रोथ मात्र 2 फीसदी ही रही. ऐसे में कई जानकार मानते हैं कि इतना खनिज संपदा होने के बावजूद ये ग्रोथ बहुत धीमा है, ये बड़ा कारण है झारखंड के पिछड़ेपन का.
कुपोषण और खराब खेती ने लोगों को दाने-दाने के लिए किया मोहताज
किसी राज्य के विकास के लिए सबसे जरूरी होता हैं वहाँ के लोगों का विकास. मतलब कि लोगों के पास कहने को खाना हो, पहनने को कपड़ें हो, स्वास्थ्य सुविधाएं हो, शिक्षा की व्यवस्था हो. मगर, इन सभी में से जो सबसे जरूरी है कि खाना तो सबके पास उपलब्ध हो ही. मगर, राज्य के लिए कई आकंडे दिखाते हैं कि राज्य में कुपोषण चरम सीमा पर है. मतलब कि बच्चों को खाने के लिए पौष्टिक भोजन नसीब नहीं होता. लोग दाने-दाने को मोहताज हैं. ,अगर, हाल के दिनों में सरकार की ओर से कुपोषण को लेकर कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही है. इससे उम्मीद है कि इस ग्राफ में कमी आएगी.
दूसरा जो सबसे बड़ा कारण ये है कि राज्य के गरीब आदिवासी खेती पर ज्यादा निर्भर हैं. मगर फसल की बर्बादी के कारण कई किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं. सुखाड़ भी राज्य की बड़ी समस्या है. ऐसे में किसानों के पास खाने के लिए भी अनाज उपलब्ध नहीं होता.
इन सभी कारणों के कारण ही झारखंड अपनी स्थापना के 22 सालों के बाद भी विकास से कोसों दूर है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में राजनीतिक स्थिरता भी लौटी है, नक्सलवाद में भी कमी आई है. ऐसे में उम्मीद किया जा सकता है कि झारखंड भी जल्द ही विकास की राह पर दौड़ेगा.
4+