टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-सेना की जमीन के फर्जीवाड़े पर परद दर परत और तरह-तरह के खुलासे हो रहे हैं, आईएस छविरंजन, कारोबारी विष्णु अग्रवाल औऱ सत्ता के पावर ब्रोकर अमित अग्रवाल के नाम जोर-शोर से उछल रहा है. हालांकि, इस घोटाले की शोर के चलते इनके दामन में दाग तो लग ही गया है. साथ ही इनकी कमीज भी काली और पेंट भी ढीली हो चुकी है. इनके काले कारनामे यह दिखता है कि , कैसे सिस्टम के साथ मिलकर जमीन हथियाने की साजिश रची गई थी ?. हालांकि, इनकी काली करतूत को ईडी ने खोल दिया है और वक्त के साथ कई और राज औऱ षडयंत्र से पर्दा उठेगा . इसमे मालूम पड़ेगा सेना की जमीन हड़पने के लिए क्या-क्या जुगत अफसर, दलाल औऱ भू-माफियाओं ने लगायी थी.
बताया जा रहा है कि इस जमीन पर बड़े-बेड़े मल्टिप्लैक्स औऱ आलीशान अपार्टमेंट बनाने के ख्वाब बुने गये थे. इसके जरिए करोड़ों रुपए कमाने की रुपरेखा तय की गई थी. इस खेल में कारोबारी विष्णु अग्रवाल भी पर्दे के पीछे अहम रोल अदा कर रहे थे. जी हां ये वही विष्णु अग्रवाल है, जिनकी राजधानी रांची के बड़े-बड़े शापिंग कॉम्पलेक्स हैं. अभी विष्णु अग्रवाल की सांसे फूली हुई है, क्योंकि ईडी ने 21 जून को रांची के जोनल ऑफिस में हाजिर होने को कहा है. उनसे पूछताछ में कुछ चौकाने वाले खुलासे हो सकते हैं, जिस पर सभी की नजरें लगी हुई है.
क्या है सेना जमीन घोटाला ?
काला खेल तो हुआ और इसे सफेद करने की मुहिम में एक सिंडिकेट ने पूरी योजना के तहत काम किया . असल में सेना जमीन घोटला क्या था ?. इसमे नकली को असली बनाने का खेल कैसे हुआ ? इसमे क्या-क्या चिजें घुलमिली थी ?. आईए शुरुआत से इस जमीन के बारे में जानते हैं औऱ कैसे इस पर भूमाफियओं की नजर पड़ी. दरअसल
1.रांची में 4.55 एकड़ जमीन 1 अप्रैल 1946 से सेना के कब्जे में है. सेना ने जमीन के मूल रैयत बीएम लक्ष्मण राव को 30 मार्च 1960 को उस जमीन के बदले 445 रूपए सालाना क्षतिपूर्ति के तौर पर दिए.
2.1 अप्रैल 1963 से सालाना 3600 रुपए किराया तय हुआ. रैयत बीएम लक्ष्मण राव के बेटे बीएम मुकुंद राव ने 3 सितंबर 1970 तक यह पैसे किराया के तौर पर लिए.इसके बाद राव ने 12 हजार रुपए प्रतिवर्ष किराए की मांग की. 1998 में उनकी मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी जयंत कर्नाड हुए.
3.साल 2007 में जमीन के उत्तराधिकारी जयंत कर्नाड ने सेना से जमीन खाली कराने औऱ बकाया किराया के भुगतान के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की. 22 अक्टूबर 2008 में अपने फैसले में कहा कि सेना ने 20 नवंबर 2008 तक के किराए का भुगतान जयंत कर्नाड को करें.
4.11 मार्च 2009 को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में जयंत कर्नाड के पक्ष में उस जमीन को रिलीज करने का आदेश दिया.
5.2019 में जयंत कर्नाड ने 13 रैयतो को जमीन बेच दी. रजिस्ट्री रांची के तत्कालीन सब रजिस्ट्रार राहुल चौबे ने की. तब भी जमीन पर सेना का कब्जा था. इसलिए रजिस्ट्री के बाद भी सीओ ने दखल खारिज के आवेदन को रिजेक्ट कर दिया.
6.8 अप्रेल 2021को प्रदीप बागची ने सेना के कब्जे वाली जमीन पर तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन को एक आवेदन दिया. बागची ने कहा कि उनकी जमीन कुछ भू-माफिया ने ले ली है. जमीन को दाखिल खारिज करने की कोशिश कर रहें हैं. बागची ने दावा किया कि उनके पिता स्वर्गिय प्रफ्फुल बागची ने उक्त 4.55 एकड़ भूमि 1932 में निबंधित दस्तावेज के साथ खतियानी रैयत से सीधे खरीदी थी. इसकी रजिस्ट्री कोलकाता में हुई थी. वह जमीन मौखिक तौर पर सेना को उपयोग के लिए दिया गया था.
7.बागची ने साल 2021 में ही ऑनलाइन प्रोसेस के तहत उक्त जमीन का पजेशन सर्टिफिकेट लिया. फर्जी आधार कार्ड, बिजली बिल देकर नगर निगम से होल्डिंग नंबर भी लिया.
8.1 अक्टूबर 2021 को प्रदीप बागची ने करीब सात करोड़ रुपए में जमीन की रजिस्ट्री कोलकाता की कंपनी जगत बंधु टी स्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक दिलीप घोष के नाम कर दी. इसे लेकर तत्कालीन सब राजिस्ट्रार घासीराम पिंगुवा ने ईडी को बताया था कि छविरजंन के आदेश पर ये रजिस्ट्री की थी. हालांकि, बाद में पिंगुवा अपने बयान से पलट गये.
9. बागची ने जयंत कर्नाड को फर्जी बताया था औऱ उनके द्वारा 13 लोगों को के किए रजिस्ट्री को गैरकानूनी ठहराया था. जिसे रद्द करने की मांग की थी. जिसे सब रजिस्ट्रार वैभव मणी त्रिपाठी ने सही ठहराते हुए रजिस्ट्री निबंधन रद्द कराने का प्रस्ताव भेजा. ईडी ने वैभव मणी से इस संबंध में पूछताछ की है.
10.सत्ता के करीबी कारोबारी कहे जाने वाले अमित अग्रवाल पर पर्दे के पीछे से जमीन की खरीदारी दिलीप घोष के नाम पर की.
11. 4 जून 2022 को निगम के टैक्स कलेक्टर दिलीप शर्मा ने प्रदीप बागची के खिलाफ 4 जून 2022 को फर्जी कागजात के आधार पर नगर निगम से होल्डिंग लेने का मामला बरियातु थाने में दर्ज करवाया.
12. 2023 में सेना जमीन घोटाले में ईडी ने एंट्री मारी. जिसके बाद से ही जमीन फर्जीवाड़े की परत दर परत कहानी सामने आ रही है.अभी तक इस मामले में आईएएस छविरंजन समेत एक दर्जन लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
सेना जमीन घोटाले की शुरु से अभी तक की यही कहानी है. जहां एक जमीन को हड़पने के लिए कई लोग नजरें गड़ाये हुए थे.
जमीन के जरिए दौलत बनाने का नशा !
बेहिसाब दौलत की भूख ही सेना जमीन घोटाले की वजह है. यहां सबसे सोचने वाली बात ये है कि, जिन अधिकारियों पर ही इसकी निगाहेबानी की जिम्मेदारी थी, कानून के दायरे में काम करना था, अपना फर्ज अदा करनी थी. उनलोगों ने ही अपने रसूख का गलत इस्तेमाल कर, दलालों औऱ भूमाफियाओं से रुपए के खातिर अपना जमीर बेच दिया. ईमान से सौदा कर डाला और आम लोगों के एतबार का गला घोंट दिया. इसके साथ ही अपने अऱमान पूरे करने के लिए सिस्टम में रहकर सिस्टम से ही दगाबाजी की. सवाल है कि अगर ऐसे गठजोड़ अभी भी कही सूबे में है या पनप रहें हैं. तो इसे वक्त से पहले तोड़ने की जरुरत है. नहीं तो ये नासूर की तरह चुभते रहेगा. जो सिस्टम को तो खोखला करेगा ही, इसके साथ ही कईयों का हक भी छीन लेगा. फिलहाल, मामला कोर्ट में चल रहा है . लिहाजा, अफसर, दलाल औऱ भू-माफिया के इस गठजोड़ में कौन गुनहगार औऱ कौन बेदाग है. ये तो पूरी जांच के बाद मालूम चलेगा . वैसे जो जमीन हड़पने का खेल किया गया. इससे तो साफ है कि होशियारी दिखायी गई. लेकिन, एक कहावत है कि चोर चाहे कितनी भी चतुराई करें एक गलती तो कर ही देता है .
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह
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