Tnp desk:- कुछ न कुछ झारखंड की सियासत में बिहार की बानगी दिखाई पड़ने लगी है. मौजूदा वक्त औऱ चर्चाओं के बाजार में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन काफी सुर्खियों में हैं. दरअसल, इतिहास के पन्नों को पीछे पलटे या दो दशक के पीछे जाए तो बिल्कुल हेमंत की ही तरह तात्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी ऐसी हालत से जूझ रहे थे. जिस तरह अभी ईडी के सात समन के बाद हेमंत सोरेन पर शिकंजा कस गया है . मन में बैचेनी औऱ गिरफ्तारी का डर सता रहा है. ऐसा ही कुछ अहसास 1996 में लालू यादव को भी चारा घोटाले में सताने लगा था. सियासत की बिसात पर बादशाह और सिकंदर बनें रहने वाले लालू के चेहरे पर भी शिकन और डर उभर गया था. लालू समझ चुके थे, देर-सवेर सीबीआई चार्जशीट दायर करेगी औऱ उनका जेल जाना तय है. हालांकि, समय की ताकत समझने वाले और इन मुश्किल हालतों से मुठभेड़ करने में माहिर लालू ने पहले ही अपनी तरकश में नुकीले तीर मुकाबला करने के लिए तैयार कर लिया था. लालू जानते थे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी अगर गई, तो सबकुछ चला जएगा. न माया मिलेगी और न ही राम मिलेगा.
किंगमेकर बनना चाहते थे लालू
लिहाजा, जेल जाने के बावजूद अपनी हनक खोना नहीं चाहते थे. बल्कि किंगमेकर के किरदार में हमेशा रहने की ख्वाहिश थी. हालांकि, ये तब संभव हो पाता, जब अपने करीबीयों की बजाय अपना सगा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो. आखिरकर तमाम आलोचनाओं और हवा के खिलाफ जाते हुए,अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया. सियासत की दांव-पेंच से बेखबर औऱ घर के आंगन में ही सिमटी रहने वाली संकुचीत और घेरलू महिला राबड़ी देवी की तनीक भी ख्वाहिश राज्य का मुखिया बनकर हुकूमत चलाने की नहीं थी. लेकिन, लोकतंत्र की खूबसूरती यही है, न चाहते हुए भी बिहार की बागडोरी संभाली और प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. 25 जुलाई 1997 के दिन बिहार के इतिहास में एक नई इबारत लिख गई.
बिहार की राह पर झारखंड की सियासत !
बिहार की तरह ही कुछ ऐसी ही हालत औऱ फिंजा में उड़ रही तमाम बातें इस ओर इशारा कर रही है. हेमंत सोरेन अपनी सरकार की कामयाबियों को जिले-जिले बताते तो हैं. लेकिन, उनके अंदर की पीड़ा, बैचेनी और दर्द भी झलक पड़ता है कि कैसे उनके साथ भाजपा और राज्यपाल साजिशे बुनकर राजकाज में अंड़गा डालती है. कैसे षडयंत्र का जाल बुनकर जेल भेजने की तैयारी की जा रही है.
दरअसल, जांच एजेंसी ईडी का सीएम को सात समन भेजने के बावजूद सबकुछ शांत लग रहा था. झारखंड की राजनीति में नये साल की पहली तारीख में तो जोरदार खलबली पैदा कर दी. गांडेय से जेएमएम विधायक सरफऱाज अहमद का यकायक इस्तीफे से तो इसी से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसी सुगबुगाहट और चर्चा काफी काफी तेज है, कि अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो खाली सीट पर कल्पना सोरेन को चुनाव लड़ाया जा सकता है. यानि कल्पना राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बिहार के राबड़ी देवी की तर्ज पर हो सकती है. हालांकि, जेएमएम इस पर चुप है और कुछ भी अपने पत्ते नहीं खोल रही है.
क्या कल्पना सोरेन बनेंगी मुख्यमंत्री ?
फिलहाल, अभी जो सियासी दांव-पेंच, कवायदें और करवटे हो रही है. इसमें तो साफ दिखाई पड़ता है कि अंदर ही अंदर तो खिचड़ी पक रही है. क्योंकि प्रर्वतन निदेशालय का समन सीएम के लिए गले की हड्डी बन गया है. लगातार सांतवी बार इसका जवाब नहीं देने के बात तो एक उकताहत और बेचैनी पसरी हुई है. क्योंकि, मुख्यमंत्री तमाम कानूनी दांव-पेंच करके भी थक गये हैं. हर हाल में इसका हल तो ढूंढना ही पड़ेगा. पिछली बार भी कुछ ऐसा ही हुआ था, तब भी हेमंत सोरेन की वाइफ कल्पना के राज्य की बागडोर संभालने की चर्चा थी. हालांकि, बाद में ऐसा कुछ नहीं हुआ. इस बार क्या होता इस पर नजर सभी की लगी हुई है. क्योंकि, भाजपा लगातार हमलावर है और उनके जहर बुझे बाण से मुख्यमंत्री सोरेन भी तिलमिला गए हैं. खैर अब ईडी समन की मियाद भी खत्म हो गयी और जेएमएम विधायक दल की बैठक भी बुला दी गई है. अब देखना है कि आखिर आगे क्या होता और झारखंड की राजनीति किस ओर जाती है.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह
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