रांची(RANCHI): झारखंड लंबे समय से नक्सलियों की गतिविधियों का गढ़ रहा है. यहां के घने जंगल और दुर्गम पहाड़ियां आज भी माओवादी संगठन के ठिकाने बने हुए हैं. राज्य और केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान छेड़ा है. हजारों पुलिस और अर्धसैनिक बल जंगलों में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं. इसके बावजूद कुछ नाम ऐसे हैं, जिनका खौफ आज भी कायम है.

इनके नक्सलियों के ऊपर है 1 करोड़ का इनाम
झारखंड के चार सबसे कुख्यात नक्सली कमांडरों पर सरकार ने कुल 4 करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया है. ये कमांडर इतने चालाक और शातिर हैं कि पुलिस को बार-बार चकमा देकर निकल जाते हैं.इनकी मौजूदगी पूरे इलाके में दहशत का माहौल बना देती है. आइए विस्तार से जानते हैं कि कौन हैं ये चार मोस्ट वांटेड नक्सली.

गिरिडीह जिले के पीरटांड प्रखंड के मदनाडीह गांव का रहने वाला बेसरा इस समय कोल्हान क्षेत्र के घने जंगलों में सक्रिय बताया जाता है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, बेसरा जमीन से जुड़ा नेता है और ग्रामीण इलाकों में इसकी मजबूत पकड़ है. यही वजह है कि इसका खौफ केवल झारखंड तक सीमित नहीं है बल्कि पड़ोसी राज्यों में भी फैला हुआ है.
राज्य सरकार ने इस पर एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया है. कई बार पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने इसे घेरने की कोशिश की, लेकिन हर बार यह चकमा देकर निकल जाता है. बेसरा को संगठन का ‘ब्रेन’ माना जाता है, इसलिए इसकी गिरफ्तारी नक्सली आंदोलन के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है.
दूसरे नंबर पर आता है असीम मंडल, जिसे पुलिस तीन नामों से जानती है ,असीम मंडल, आकाश और तिमिर.अपनी पहचान बदलने की कला में माहिर यह नक्सली संगठन की सेंट्रल कमिटी का सदस्य है.असीम मूल रूप से पश्चिम बंगाल का निवासी है. लंबे समय तक यह बंगाल कमिटी का सचिव रहा और वहां से संगठन के लिए नए सदस्य जुटाने में अहम भूमिका निभाई. इसके बाद संगठन ने इसकी क्षमताओं को देखते हुए इसे सेंट्रल कमिटी में शामिल कर लिया.झारखंड और बंगाल में कई बड़ी नक्सली घटनाओं की साजिश रचने में इसका हाथ माना जाता है.
इस पर भी सरकार ने एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया है. पुलिस लगातार इसकी तलाश में है, लेकिन पहचान बदलने और गुप्त रूप से जंगलों में मूवमेंट करने की वजह से अब तक यह गिरफ्त में नहीं आ सका.

अनल दा का नाम झारखंड पुलिस के लिए हमेशा चुनौती बना रहता है। इसे कई नामों से जाना जाता है, अनल दा, तूफान, पतिराम मांझी, पतिराम मरांडी और रमेश. बार-बार नाम बदलकर यह पुलिस को चकमा देता है.
कोल्हान क्षेत्र में इसका आतंक कई बार देखने को मिला है. साल 2022 में इसने पूर्व विधायक गुरुचरण नायक पर हमला कर पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी. इसके बाद से यह झारखंड पुलिस की ‘मोस्ट वांटेड’ लिस्ट में शामिल हो गया.
अनल दा मूल रूप से गिरिडीह जिले के पीरटांड थाना क्षेत्र के झरहाबाले गांव का रहने वाला है, लेकिन फिलहाल इसका ठिकाना कोल्हान के घने जंगलों में बताया जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इसकी मौजूदगी से गांवों में भय का माहौल बन जाता है. पुलिस ने इस पर भी एक करोड़ रुपये का इनाम रखा है.

चौथा नाम है अनुज उर्फ सहदेव सोरेन उर्फ प्रवेश उर्फ अमलेश सोरेन. यह माओवादी संगठन का उभरता हुआ चेहरा है, जिसे हाल ही में SAC सदस्य से प्रमोट कर सेंट्रल कमिटी में शामिल किया गया है.अनुज मूल रूप से हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़ थाना क्षेत्र का रहने वाला है. इस पर 50 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें कई बड़ी नक्सली घटनाएं शामिल हैं. पहले इस पर 25 लाख रुपये का इनाम था, लेकिन बढ़ते आतंक और संगठन में इसके बढ़ते कद को देखते हुए अब सरकार ने इसे एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया है.
फिलहाल अनुज का ठिकाना सारंडा जंगल बताया जाता है. यह क्षेत्र माओवादी गतिविधियों का गढ़ माना जाता है और सुरक्षा बलों के लिए हमेशा चुनौती बना रहता है.
इनाम और पुलिस की रणनीति
इन चारों नक्सलियों पर कुल 4 करोड़ रुपये का इनाम है. राज्य सरकार ने जनता से अपील की है कि अगर इनके बारे में कोई ठोस जानकारी मिलती है तो वह पुलिस को सूचित करे. जानकारी देने वाले का नाम गुप्त रखा जाएगा और उसे इनाम की राशि दी जाएगी.
बड़े स्तर पर सुरक्षाबल की तैनाती
पुलिस और सुरक्षा बलों ने इनकी तलाश में बड़े पैमाने पर ऑपरेशन शुरू किया है. बताया जाता है कि करीब 15 हजार जवान अलग-अलग इलाकों में सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं. ड्रोन, सैटेलाइट फोन और आधुनिक तकनीक की मदद से इन पर निगरानी रखी जा रही है.
नक्सलवाद काबू में लेकिन ये चार अब भी चुनौती
झारखंड में नक्सलवाद अब पहले की तुलना में कमजोर हुआ है, लेकिन मिसिर बेसरा, असीम मंडल, अनल दा और अनुज जैसे कुख्यात चेहरे अभी भी सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं. इनकी गिरफ्तारी या ढेर होना न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश में नक्सली आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका होगा.
सवाल यही है कि आखिर कब तक ये खतरनाक नक्सली पुलिस को चकमा देते रहेंगे और जंगलों में आतंक का खेल जारी रखेंगे.
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