टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाया. नीतीश बाबू ने इसकी अगुवाई कर मशाल जलाई और पटना की बैठक में एकजुट करने की कोशिश की. उनकी पहल रंग भी लाई और कम से कम बीजेपी विरोधी खेमा एकजुट हुआ. सभी का एक ही मकसद किसी भी तरह से मोदी सरकार को हैट्रिक नहीं लगाने देने की है. समय के साथ-साथ कई खटपटे, बगवाते औऱ मेल मिलाप का अभाव भी दिखा. पांच राज्यों के हुए चुनाव में तो ऐसा लगा, गठबंधन में गांठे उभर गई है. इसका वजूद अब धीरे-धीरे दरकने लगा है. खिसकते इस मजबूती को बल तब मिलता दिखाई पड़ा, जब खुद अकेले अभिमन्यू की तरह कांग्रेस पांच राज्यों में चक्रव्यहू तोड़ने के लिए निकली थी. लेकिन, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और एमपी में करारी शिकस्त के बाद, सारा गुमान जमीन पर आ गया. उसे अहसास हो गया कि हिंदी पट्टी में भाजपा को हराना आसान नहीं. इस दौरान जेडीयू, सपा का कांग्रेस के खिलाफ बगावती बोल भी सुनाई पड़े.जेडीयू ने विधानसभा में कांग्रेस की हार बताया न की इंडिया की.
28 दलों के इस गठबंधन की चौथी बैठक तो खत्म हो गई. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल तो सीट बंटवारे की है. जहां तकरीबन सभी की पेंच कांग्रेस के साथ ही फंसती दिखाई पड़ती है. आधा दर्जन से अधिक राज्य में अनबन सीट शेयरिंग को लेकर ही है. जो इतना आसान औऱ मुफीद किसी के लिए नहीं रहने वाला है. मीटिंग में ये तय हुआ कि 15 जनवरी तक ज्यादातर राज्यों के सीट पर किसकी कितनी भागीदारी होगी साफ हो जाएगी. आईए जानते है किन राज्यों में जटिल बन सकता है सीटों का बंटवारा
आम आदमी पार्टी
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी यानि आप के साथ सीटों की खटपट दिल्ली, पंजाब में सबसे ज्यादा देखने को मिल सकती है. कहने को तो इंडिया गठबंधन का हिस्सा दोनों पार्टियां है. लेकिन, दोनों दलों के प्रदेश के नेता एक दूसरे के खिलाफ हमलावार और विरोधी रुख अख्तियार करते हैं. इन तमामो चिजों के बावजूद अगर सीट बंटवारे के समीकऱण को देखे तो दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में आप 4 और कांग्रेस 3 पर में चुनाव लड़ सकती है. इधर पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है. ऐसी हालत में आप तब ही कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेगी, जब अकाली दल और भाजपा का गठबंधन हो. इस परिस्थिति में पंजाब और चंडीगढ़ मिलकर 14 सीटों में आधी-आधी पर दोनों पार्टियां समझौता कर सकती है. आप का सीट शेयरिंग का झंझट सिर्फ दिल्ली और पंजाब ही नहीं रहेगा.बल्कि गुजरात,गोवा और हरियाणा में भी आप का दायरा बढा है. इसे देखते हुए केजीरवाल यहां भी सीट मांग सकते हैं.
समाजवादी पार्टी
समाजवादी पार्टी का सबसे बड़ा गढ़ यूपी है. जहां भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती सपा औऱ कांग्रेस के लिए हैं. हकीकत पर गौर फरमाएं तो इंडिया गठबंधन आकार लेने के बाद भी समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश के साथ अनबन देखी गई. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में मतभेद तो खुलकर बाहर आ गया. आहत अखिलेश ने कांग्रेस को भी खरी-खौटी सुना दी. इस हालात में यूपी में सपा कितनी सीट कांग्रेस के लिए छोड़ती है. ये तो बैठक के बाद तय होगा, क्योंकि यूपी में कांग्रेस एक तरह से सिमटी हुई ही दिखती है. सपा के रहमो करम पर उसे चलना पड सकता है. ताजा पेंच ये है कि यूपी कांग्रेस के कुछ नेता बीएसपी को गठबंधन में मिलना चाहते हैं. लेकिन, मंगलवार की बैठक में रामगोपाल वर्मा ने साफ कर दिया है कि बीएसपी का साथ कबूल नहीं है. सबसे बड़े प्रदेश यूपी की 80 में से 20 सीटों पर कांग्रेस की नजर हैं.
जेडीयू और आरजेडी
बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस मिलकर सराकर चला रही है. लेकिन, कौन कितनी सीट पर चुनाव लड़ेगा. अभी तक ये साफ नहीं है. लोकसभा की 40 सीट वाले इस प्रदेश में अगर सबकुछ ठीक रहा तो 15-15 सीटों पर जेडीयू और आऱजेडी की सहमति बन सकती है इधर, वाम दल सीपीआई एमएल और सीपीआई ने ज्यादा सीटों पर दबाव बनाया, तो कांग्रेस को पांच से छह सीटों पर ही संतोष करना पड़ेगा.
टीएमसी और वामदल
इंडिया गठबंधन के लिए बंगाल में सबसे बड़ा इम्तहान सीट शेयरिंग को लेकर देखने को मिल सकता है. वाम दल और ममता का एक साथ चुनाव लड़ना लगभग असंभव दिखता है. गठबंधन के बन जाने के बाद भी एक दूसरे के खिलाफ हमलावर रुख रुका नहीं है. इतना तो छोड़िए बंगाल कांग्रेस के नेता भी टीएमसी पर हमला करने से बाज नहीं आते. अधीर रंजन चौधरी ने खुलेआम टीएमसी पर बरसते नजर आए थे. ऐसी हालत मे कांग्रेस के सामने पहेली ये है कि वामदल के साथ ही चले या टीएमसी से मिलकर लड़े. तृणमुल और वाम दल दोनों कांग्रेस को बंगाल में बढ़ने देना नहीं चाहते . अगर सबकुछ ठीक रहा तो बंगाल की 42 लोकसभा सीट में कांग्रेस 5 से 7 सीटों से ज्यादा मिलना मुश्किल ही दिखाई पड़ता है. .
शिवसेना और एनसीपी
महाराष्ट्र के अखाड़े को देखे तो महाअगाड़ी सरकार के बिखरने के बाद यहां शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस एक साथ है. एनसीपी के टूटने के बाद कांग्रेस ऐसा जरुरत सोचती है कि उसकी दावेदारी यहां सीटों पे ज्यादा होगी. लेकिन, दूसरा पहलू ये है कि शिवसेना और एनसीपी शायद ही सीटों पर समझौता औऱ कटौती करें. ऐसे में समझौते की राह यही देखने को मिलती है कि तीनों दल 48 सीटें लोकसभा की सीट पर बराबर-बराबर बांटने में कामयाब होगी.
जेएमएम
झारखंड में जेएमएम, आरजेडी औऱ कांग्रेस मिलकर सरकार चला रही है. यहां की 14 लोकसभा सीटों पर उतनी माथपच्ची देखने को नहीं मिलने वाली है. अगर आरजेडी,भाकपा और जेडीयू को भी यहां सीट दी जाती है. तब ही झारखंड मुक्ती मोर्चा और कांग्रेस की सीटें कम होगी. झारखंड में 14 लोकसभा सीट में कांग्रेस 7 सीटों पर दांवा जताते रही है.
डीएमके
तमलिनाडु में स्टालिन डीएमके की सरकार चला रहे हैं. यहां उतनी खटपट कांग्रेस और डीएमके में देखने को नहीं मिलने वाली है. कांग्रेस के सामने यहां उतनी सीटों को लेकर शायद ही देखने को मिलें. इन पार्टियों और राज्यों के अलावा ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला है. उस परिस्थिति में कांग्रेस को उन राज्यों में दिक्कत नहीं आयेगी, खासकर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और केरल
देखने औऱ समझने वाली बात ये होगी कि इंडिया गठबंधन के दल सीटों के गणित को कैसे सुलझाते हैं. सभी दल की यही चाहत है कि गठबंधन में उनके जितने सांसद होंगे, सत्ता में आने पर उनकी भागेदारी औऱ दावेदारी ज्यादा होगी. अगर सीट बंटवारा शांति से निपट गया और सभी खुशी-खुशी मैदान में उतरकर एनडीए से मुकाबला करेंगे, तो लाजमी तौर पर बीजेपी के लिए भी थोड़ी मुश्किलें आयेगी. लेकिन, अगर इंडिया गठबंधन बिखरकर लड़ेगा तो तय है कि लड़ाई दिल्ली जीतने की हार जाएंगे.
रिपोर्ट - शिवपूजन सिंह
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