Patna- पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक कोप भवन में सिमटे में नजर आ रहे नीतीश कुमार की आगामी चाल को भांपने की कोशिश में बिहार कई छोटी-छोटी पार्टियां लगी हुई है. पटना बैठक की सरगर्मियां और तेजस्वी यादव को चार्जशीटेट किये जाने बाद के बाद जिस तरह नीतीश कुमार ने अचानक से मीडिया से अपनी दूरी बना ली है, अपने सांसदों और विधायकों के मन को टटोलना शुरु किया है, उससे उनके आगामी चाल को समझना मुश्किल होता जा रहा है.
नीतीश की चुप्पी से उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की बढ़ी उलझनें
इस चुप्पी ने ना सिर्फ एनडीए खेमा में शामिल हो चुके उपेन्द्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी के सामने मुश्किलें खड़ी कर दी है, बल्कि चिराग पासवान और मुकेश सहनी भी उधेड़बुन में फंसे दिख रहे हैं. जीतन राम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा की मुसीबत यह है कि जैसे ही नीतीश कुमार एनडीए में वापसी करेंगे, दोनों के सामने एक बार फिर से राजनीतिक अस्तित्व को बचाये रखने का सवाल खड़ा हो जायेगा, क्योंकि भाजपा सार्वजनिक रुप से चाहे जीतना दावा करे, लेकिन राजनीति की जमीनी सच्चाई का भान उसे भी है, शायद यही कारण है कि आज भी भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व नीतीश कुमार को निशाने पर लेने से बचता नजर आता है. चिराग पासवान और मुकेश सहनी की मुश्किल भी यही है, हर किसी को नीतीश की चुप्पी टूटने का इंतजार है.
अपनी चुप्पी को बतौर राजनीतिक हथियार इस्तेमाल तो नहीं कर रहे हैं नीतीश
बहुत संभव है कि नीतीश कुमार भी अपनी इस चुप्पी का राजनीतिक और रणनीतिक महत्व समझते हों, और जानबूझ कर एक साध एनडीए खेमा में संशय पैदा करना चाहते हों. नीतीश की रणनीति चाहे जो हो लेकिन राजनीतिक गलियारे में इस चुप्पी से कई संकेत निकाले जा रहे हैं, हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब एनडीए खेमा में नीतीश की वापसी का कोई सवाल ही नहीं होता. दरअसल यह चुप्पी उनकी किसी राजनीतिक कार्ययोजना का हिस्सा है. बहुत संभव है कि जिसका खुलासा विपक्षी एकजुटता की बंगलौर में आयोजित होने वाली बैठक के बाद हो जायेगा.
चिराग सहित मुकेश सहनी की सांसे रुकी
लेकिन इतना तय है कि इस चुप्पी से चिराग सहित मुकेश सहनी की सांसे रुकी हुई है. हालांकि कुछ जानकार यह भी दावा कर रहे हैं कि चाचा लालू के माध्यम से चिराग से बातचीत जारी है, जबकि मुकेश सहनी सीधे नीतीश के सम्पर्क में हैं. यह दावा इस आधार पर भी किया जा रहा है कि जिस तरह से भाजपा के द्वारा मुकेश सहनी को जलील किया गया, उनकी पार्टी तोड़ी गयी है, उनके विधायकों को खरीदा गया है, मुकेश सहनी इस पीड़ा से बाहर नहीं निकले हैं, ठीक यही स्थिति चिराग पासवान की है, लेकिन उनका दर्द सीएम नीतीश के साथ भाजपा से भी है. जिस तरह से भाजपा ने दिल्ली में उनका बंगला को खाली करवाया, रामविलास पासवान और बाबा साहेब की तस्वीरों को रौंदा गया, उसका इजहार चिराग पासवान ने खुद पटना की सड़कों पर किया था, लेकिन चिराग पीएम मोदी की आंधी को उतरने का इंतजार कर रहे हैं, वह इस का पुख्ता विश्वास चाहते हैं कि अब मोदी की वापसी नहीं होने वाली है, उसके बाद ही वह अपना पता खोलना पसंद करेंगे, जबकि मुकेश सहनी को नीतीश के संकेत का इंतजार है और इसका संकेत वह गाहे बेगाहे अपने बयानों से देते रहते हैं, जिस प्रकार से मुकेश सहनी के द्वारा सामाजिक न्याय के कसीदे पढ़े जा रहे हैं, भाजपा के लिए वह शुभ संकेत नहीं हैं, लेकिन फिलहाल सबों की नजर बंगलौर में आयोजित होने वाली बैठक पर टिकी हुई है, जिसकी सफलता और असफलता का आकलन करते हुए मुकेश सहनी अपने अगले सियासी चाल की घोषणा करेेंगे.
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