रांची(RANCHI): झारखंड में धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की शहादत और संघर्ष पर लंबी सियासत होती रही है.खास कर झारखंड मुक्ति मोर्चा धरती आबा के संघर्षों पर अपनी सियासी दावेदारी पेश करती रही है. उसका दावा है कि धरती आबा ने महाजनी परंपरा और आदिवासी मूलवासी के शोषण के विरोध जिस लड़ाई का शंखनाद किया था. उसी संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने झारखंडी अस्मिता पहचान और जल जंगल जमीन की लड़ाई को बुलंदियों तक पहुंचाया. जिसकी अंतिम परिणति अलग झारखंड राज्य के रूप में हुई,और इसी लड़ाई के क्रम में झामुमो का गठन किया गया. लेकिन आश्चर्य जनक रूप से झामुमो ने भगवान बिरसा को अपने केन्द्रीय समिति का सदस्य बना दिया.
दरअसल झामुमो के केन्द्रीय कार्यालय में धरती आबा की एक तस्वीर लगाई गई है,और उसके नीचे उन्हे केन्द्रीय समिति का सदस्य बताया गया है. अब सवाल है भागवान बिरसा के संघर्ष और शहादत पर अपनी दावेदारी तो ठीक है. जल जंगल जमीन की बात करने वाली झामुमो यदि उनकी राजनीति विरासत पर दावा करती है तो यह उसकी अपनी सोच है. लेकिन धरती आबा को किसी विशेष पार्टी के केन्द्रीय समिति सदस्य के रूप में शामिल करना कहा तक जायज है. निश्चित रूप से जब इसकी खबर सामने आएगी दूसरे सियासी दल तक पहुँचेगी तब यह एक सियासी विवाद का रूप ले सकता है. भाजपा भले ही इस मामले में खामोशी बरत जाए और अपने कोर अजेन्डा से बाहर निकाल इस मुद्दे पर विवाद में पड़ने से दूर रहने की रणनीति पर काम करें लेकिन आजसू निचित रूप से झामुमो की तरह धरती आबा पर अपनी दावेदारी पेश करेगी,और सीएम हेमंत पर हमलावर होगी.
यहाँ ध्यान रहे ही आजसू की सियासी जमीन और विचारधारा भी इसी पर खड़ी है. जिसपर झारखंड मुक्ति मोर्चा अपनी दावेदारी पेश करती रही है. सुदेश महतो का तो दावा है झामुमो भले ही जल जंगल जमीन की बात करती है, आदिवासी अस्मिता का नारा लगाती हो लेकिन झारखंड में जल जंगल जमीन की जो लूट हो रही है. उसमें सबसे बड़ा हाथ खुद सोरेन परिवार का है. उसका दावा है कि खनन हो या दूसरे खनिज संपदा झामुमो की नजर इसपर नजर बनी रहती है, और धरती आबा के संघर्ष के विचार धारा से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. धरती आबा ने जो संघर्ष किया उसकी मशाल आज भी आजसू के हाथ में है. अब देखना दिलचस्प होगा की यह विवाद किस कदर आगे बढ़ता है और भाजपा आजसू की क्या प्रतिक्रिया आती है.
यहाँ यह भी याद रहे की सूबे के मुखिया जिस जल जंगल जमीन की बात करते है. आदिवासी अस्मिता का मुद्दा उठाते हैं इसपर कोई और नहीं उनके पार्टी के ही विधायक लॉबिन सवाल उठाते है. लोबिन ने तो कई बार खुले आम मुख्यमंत्री को आदिवासी विरोधी बता चुके है. इससे साफ है कि विवाद की शुरुआत बाहर से ही पार्टी के अंदर से भी कई सुर सामने आएंगे. अब देखना होगा की सुरों के इस संग्राम में झरखण्डियों के हिस्से में क्या आता है.
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