रांची(RANCHI): झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में जनता ने महागठबंधन को बहुमत दी और हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने. वहीं, उसी दौरान कोरोना ने पूरी दुनिया को अस्थिर कर दी. सरकारों के लिए लोगों को बचाना, दवाईयां पूरी करना, खाने के लिए अनाज दिलाने जैसी कई समस्या सामने आ गई लेकिन इन सभी चुनौतियों को पार करते हुए हेमंत सोरेन ने राज्य को मुसीबत से निकाला. कोरोना महामारी के दौरान हेमंत सोरेन ने अपने आप को साबित कर दिखाया. लेकिन जैसे ही कोरोना खत्म हुआ राज्य में ईडी, सीबीआई, सरकार को गिराने की साजिश जैसे तमाम कवायत शुरू हो गई. लेकिन हर वार का हेमंत सोरेन में जमकर सामना किया.
इस शाह-मात की खेल को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि हेमंत सोरेन के पास इससे पहले बतौर मुख्यमंत्री का केवल छह महीने का अनुभव था. ऐसा कहा जा सकता है कि विपक्ष ने उन्हें सियासी तौर पर कच्चा समझा था, लेकिन सीएम हेमंत सोरेन विपक्ष की हर वार को पार कर आगे निकलते गए और विपक्ष के वार का मुंहतोड़ जवाब देते गए.
लिफाफे की कार्रवाई बाद एक्शन में हेमंत सोरेन
बता दें कि सीएम हेमंत सोरेन पर माइनिंग लीज का मामला जब चला और ऐसा लगने लगा कि हेमंत सोरेन की सदस्यता चली जायेगी. इस दौरान भी सरकार और हेमंत सोरेन ने हार नहीं मानी. उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और कई ऐसे एतिहासिक फैसले लिए कि केंद्र सरकार से लेकर राज्य की विपक्ष दोनों शांत हो गए. सियासत में कच्चे कहे जाने वाले हेमंत एका-एक देश के सबसे प्रभावित नेता बन गए. झारखंड और उनके मूल निवासियों के लिए सीएम एका-एक सबसे चहेते चेहरे बन गए और विपक्ष के पास इसके जबाव में कुछ नहीं बचा.
1932 खतियान और 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण
इस सियासी दांव-पेंच के बीच हेमंत सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाई और राज्य वासियों के लिए कई ऐसे फैसले लिए, जिसका स्वागत इस राज्य के सभी मूल वासियों ने किया. 14 सितंबर को हेमंत सोरेन ने कैबिनेट बैठक की और राज्य वासियों को लिए 1932 आधारित खतियान और 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को मंजूरी दी गई. इसके पास होते ही विपक्ष मुद्दा विहीन हो गई और सत्ता पर काबिज हेमंत सरकार की हर जगह तारीफ होने लगी. वहीं, 11 नवंबर 2022 को हेमंत सोरेन की सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया और दोनों विधेयक सदन से पास करा लिया.
हेमंत सरकार विपक्ष पर हो गई हावी
दोनों विधेयक के पास होते ही बैकफूट में दिख रही सरकार विपक्ष पर ही हावी हो गई. सरकार दोनों बिल को पास कराने के बाद पूरे राज्य में खुशियां मना रही थी. वहीं, हेमंत सोरेन को अब एक मजबूत नेता के तौर पर देखा जाने लगा है. राज्य की विपक्ष भाजपा प्रदेश में मुद्दा विहीन हो गई है.
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