दुमका(DUMKA): संताल परगना प्रमंडल के बोरियो विधान क्षेत्र में झामुमो की मजबूत कड़ी लोबिन हेम्ब्रम आखिरकार कमल पर सवार हो गए. हरियाली को दरकिनार कर केसरिया रंग में रंग गए. बगावती तेवर के लोबिन हेम्ब्रम अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में झामुमो सुप्रीमो शीबू सोरेन के अनुयायी रहे. संघर्ष के बदौलत सत्ता तक पहुंचे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी लोबिन हेम्ब्रम के भाजपा जॉइन करने पर सवाल उठ रहे हैं कि झामुमो में रहकर जिन सवालों को लेकर लोबिन अपनी ही सरकार को सड़क से सदन तक आईना दिखाते रहे क्या वह सवाल भाजपा में रहकर उठा पाएंगे?
5 बार बोरियो से विधायक रहे लोबिन हेम्ब्रम ने दूसरी बार की है झामुमो से बगावत
संयुक्त बिहार में पहली बार झामुमो ने लोबिन हेम्ब्रम को बोरियो विधानसभा से अपना प्रत्याशी बनाया. लोबिन ने भी अपने राजनीतिक गुरु पार्टी सुप्रीमो को निराश नहीं किया. लोबिन चुनाव जीतकर विधायक बन गए. 1995 में जब पार्टी ने इन्हें टिकट नहीं दिया तो बगावती तेवर अपनाते हुए निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े. क्षेत्र की जनता ने लोबिन को अपना नेता माना और वह चुनाव जीत गए. बाद में झामुमो ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया.
वर्ष 2000 से अब तक लोबिन और ताला के बीच चलता रहा शह और मात का खेल, अब दोनों है एक मंच पर
वर्ष 2000 का चुनाव लोबिन झामुमो के टिकट पर जीते. 2004 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी से हार का सामना करना पड़ा. 2009 में एक बार फिर लोबिन हेम्ब्रम ने चुनाव जीत कर ताला से हार का बदला चुकाया. दोनों के बीच जीत हार का खेल चलता रहा. 2013 में भाजपा प्रत्याशी ताला मरांडी तो 2019 में झामुमो प्रत्याशी लोबिन हेम्ब्रम बोरियो से विधायक निर्वाचित हुए.
अपनी ही सरकार को सड़क से लेकर सदन तक घेरते रहे लोबिन
2019 में झामुमो के सत्ता में आने के बाद से ही लोबिन हेम्ब्रम सड़क से सदन तक अपनी ही सरकार को घेरते रहे. शिबू सोरेन को अपना आदर्श मानने वाले लोबिन सीएम हेमंत सोरेन को झामुमो का चुनावी घोषणा पत्र याद दिलाते रहे. हालिया सम्पन्न लोक सभा चुनाव में दूसरी बार पार्टी से बगावत कर राजमहल लोक सभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ गए. चुनाव में पराजय मिली वहीं झामुमो ने पार्टी से निष्कासित किया और इनकी विधानसभा की सदस्यता भी चली गयी.
क्या थे मुद्दे जिसको लेकर अपनी ही सरकार को दिखाते थे आईना
लोबिन हेम्ब्रम 1932 का खतियान लागू करने, खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति लागू करने, जल, जंगल, जमीन और आदिवासी की रक्षा करने, एसपीटी और सीएनटी एक्ट को कड़ाई से लागू करने की मांग को लेकर सड़क से लेकर सदन तक सरकार को घेरते रहे. समय समय पर बड़े ही बेबाकी से सीएम हेमंत सोरेन को झामुमो का चुनावी घोषणा पत्र याद दिलाते रहे. शराब नीति पर सरकार की बखिया उधेड़ते नजर आए थे.
भाजपा में रहकर इन मुद्दों को उठा पाएंगे लोबिन या फिर सिद्धांत को ताख पर रख कर करेंगे राजनीति!
लोबिन हेम्ब्रम तीर धनुष छोड़ कर कमल का दामन थाम लिया है. संताल परगना प्रमंडल के चौक चौराहे पर इसकी चर्चा हो रही है. चर्चा यह भी हो रही है कि जिस तरह झामुमो में रहकर लोबिन सड़क से सदन तक आदिवासी हित के मुद्दों को प्रमुखता से उठाते रहे थे, चाहे सीएनटी एसपीटी एक्ट का मामला हो या फिर 1932 के खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति की मांग हो, क्या उसी प्रमुखता से भाजपा में रहकर उठा पाएंगे? हमेशा नीति और सिद्धांत की बात करने वाले लोबिन क्या भाजपा में भी अपने सिद्धांत पर कायम रहेंगे या फिर सिद्धांत को ताख पर रख कर राजनीति करेंगे?
संथाल परगना में JMM छोड़ BJP का दामन थमने वालों ने देर सबेर की है घर वापसी
संथाल परगना प्रमंडल को झामुमो का गढ़ माना जाता है. अब तक कई नेताओं ने पार्टी से नाराज होकर झामुमो छोड़ भाजपा का दामन थामा है. झारखंड आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले सुरज मंडल को छोड़ कर अधिकांश नेताओं ने घर वापसी कर राजनीति की दूसरी पारी खेली. इसमे साइमन मरांडी, प्रो स्टीफन मरांडी, हेमलाल मुर्मू सरीखे कई नेताओं का नाम शामिल है. इस स्थिति में लोबिन हेम्ब्रम का राजनीतिक भविष्य भाजपा में कितना सुरक्षित है यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.वैसे भी उनके बगाबती तेवर को किसी से छिपी नही है.
रिपोर्ट-पंचम झा
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